

AI ने जहां तकनीकी क्रांति लाई है, वहीं इसके खतरे भी बढ़ते जा रहे हैं। AI के गॉडफादर जेफ्री हिंटन ने चेताया कि यह तकनीक जैविक हथियारों के निर्माण में भी मदद कर सकती है। कुछ चौंकाने वाले केस भी सामने आए हैं जहां AI के प्रभाव से जानें गई हैं।
AI Godfather जेफ्री हिंटन
New Delhi: आज के डिजिटल युग में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का प्रभाव जीवन के हर क्षेत्र में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। जहां एक तरफ यह तकनीक इंसानी जीवन को आसान बना रही है, वहीं दूसरी ओर इसके दुरुपयोग के गंभीर परिणाम सामने आने लगे हैं। चैटबॉट्स, वर्चुअल असिस्टेंट्स, रोबोटिक्स से लेकर हेल्थकेयर और एजुकेशन तक, AI ने खुद को हर जगह स्थापित कर लिया है। लेकिन हाल ही में इसके खतरनाक प्रभावों को लेकर चिंता और बहस तेज हो गई है, खासकर जब कुछ दिल दहला देने वाले मामले सामने आए।
कुछ समय पहले मीडिया रिपोर्ट्स में यह सामने आया कि एक 16 साल के छात्र ने AI टूल के असर में आकर आत्महत्या कर ली, वहीं एक अन्य घटना में एक बेटे ने अपनी मां की हत्या कर दी क्योंकि AI टूल ने उसे ऐसा करने के लिए उकसाया। इन दो घटनाओं ने दुनिया भर में चिंता की लहर दौड़ा दी और ये सवाल उठाया कि क्या AI टूल्स मानव सोच और निर्णय क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं?
AI के गॉडफादर कहे जाने वाले जेफ्री हिंटन, जो खुद AI की खोज और विकास में अग्रणी रहे हैं, उन्होंने अब इस तकनीक को लेकर गंभीर चेतावनी दी है। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, हिंटन का कहना है कि अगर AI पर नियंत्रण नहीं किया गया तो यह मानवता के विनाश का कारण बन सकता है। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया कि AI इतनी तेजी से विकसित हो रहा है कि अब कोई भी सामान्य व्यक्ति इसकी मदद से जैविक हथियार बना सकता है। यह स्थिति उतनी ही खतरनाक है जितनी परमाणु बम के आविष्कार के समय थी। यदि AI का दुरुपयोग किया गया तो इसका परिणाम सिर्फ एक देश या समाज तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर तबाही मचा सकता है।
AI Godfather जेफ्री हिंटन
हिंटन ने आगे कहा कि आज की AI मशीनें केवल डाटा प्रोसेसिंग तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उनमें ऐसी बुद्धिमत्ता विकसित हो रही है जो इंसानों के अनुभव से मिलती-जुलती है। वे दुनिया को समझने, निर्णय लेने और प्रतिक्रिया देने में सक्षम होती जा रही हैं। यही कारण है कि वे भविष्य में इंसानी सोच से भी ज्यादा खतरनाक साबित हो सकती हैं। हालांकि, मेटा (Meta) के चीफ AI साइंटिस्ट और हिंटन के पूर्व सहयोगी यान लेकुन ने उनके विचारों से असहमति जताई है। लेकुन का मानना है कि वर्तमान में AI मॉडल्स (जैसे बड़े भाषा मॉडल्स) सीमित हैं और वे अभी भी दुनिया को सार्थक रूप से समझने या निर्णय लेने में सक्षम नहीं हैं।
अब सवाल यह उठता है कि अगर AI इतनी खतरनाक हो सकती है, तो क्या इस पर नियंत्रण या रेगुलेशन संभव है? कई टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट्स और संगठनों ने पहले ही AI रेगुलेशन के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नीति बनाने की मांग की है। यूरोपीय यूनियन ने AI एक्ट का प्रस्ताव दिया है, जबकि अमेरिका में भी AI को लेकर नीति बनाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। लेकिन AI की गति इतनी तेज़ है कि कानून और नीतियां उसके पीछे छूटती जा रही हैं। ऐसे में विशेषज्ञ मानते हैं कि केवल नीति से नहीं, बल्कि जागरूकता, नैतिक जिम्मेदारी और वैश्विक सहयोग से ही AI के खतरों पर लगाम लगाई जा सकती है।
AI एक दोधारी तलवार की तरह है। एक तरफ यह स्वास्थ्य, शिक्षा, विज्ञान और तकनीक में क्रांति ला सकता है, वहीं दूसरी ओर यह भविष्य की सबसे बड़ी चुनौती भी बन सकता है। जरूरत इस बात की है कि हम इसे सही दिशा में इस्तेमाल करें, ताकि यह मानवता के हित में काम करे, न कि विनाश का उपकरण बन जाए।