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देश और दुनिया में हर क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग लगातार बढ़ता जा रहा है। कानूनी प्रणाली में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की भूमिका (“Role of Artificial Intelligence in Legal System) पर मंगलवार को आयोजित एक सेमिनार में सर्वोच्च न्यायालय में जज न्यायमूर्ति राजेश बिंदल ने एआई के उपयोग को लेकर बेहद महत्वपूर्ण बातें कही।
दीप प्रज्वलित कर सेमिनार का उद्घाटन करते हुए मुख्य अतिथि जस्टिस राजेश बिंदल
New Delhi: सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ न्यायमूर्ति जस्टिस राजेश बिंदल ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया में तेजी और दक्षता लाने में एआई (Artificial Intelligence) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि एआई के बढ़ते इस्तेमाल से डेटा सुरक्षा और गोपनीयता सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। एआई के बढ़ते उपयोग के बीच कानूनी याचिकाओं में झूठे उद्धरण (False Citations) की बढ़ती कुप्रथा पर भी उन्होंने गहरी चिंता जतायी और एआई के इस्तेमाल को लेकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता पर बल दिया।
जस्टिस राजेश बिंदल ने यह बातें मंगलवार को ऑल इंडिया लॉयर्स’ फोरम (AILF) और इंडियन लॉ इंस्टीट्यूट (ILI) के संयुक्त तत्वावधान में “कानूनी प्रणाली में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की भूमिका” विषय पर आयोजि राष्ट्रीय सेमिनार में बतौर मुख्य अतिथि कही। इस सेमिनार में विभिन्न उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश, एजीआई, शीर्ष विधि विशेषज्ञ, वरिष्ठ अधिवक्ता, शोधकर्ता, तकनीक विशेषज्ञ और बड़ी संख्या में छात्र शामिल रहे।
सेमिनार में उपस्थित अतिथियों को फूलों का गुलदस्ता देकर सम्मानित किया गया
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति राजेश बिंदल ने कहा कि एआई के इस्तेमाल से न्याय व्यवस्था में सकारात्मक बदलाव हो सकते है। लेकिन इसके साथ ही डेटा सुरक्षा और गोपनीयता भी बड़ी चुनौती है। उन्होंने फॉल्स साइटेशन की बढ़ती समस्या पर गंभीर चिंता व्यक्त की और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के लिए डीपीएसपी (Directive Principles) के पालन की आवश्यकता बताई। साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट ई-फाइलिंग सिस्टम को एआई से और मजबूत बनाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
जस्टिस बिंदल ने कहा का न्यायिक प्रणाली समेत इससे जुड़े हर क्षेत्र में एआई के उपयोग के लिये वैज्ञानिक दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों (Directive Principles of State Policy) को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
सेमिनार को सम्मानित अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने कहा कि एआई के उपयोग के दौरान विचार की स्वतंत्रता (Freedom of Reflection) प्रभावित हो सकती है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से गहराई से जुड़ा मुद्दा है। उन्होंने तकनीकी नवाचार और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के बीच संतुलन बनाए रखने की सलाह दी।
सेमिनार के अध्यक्ष के रूप में आईएलआई के निदेशक और सीनियर प्रो. डॉ. वीके आहूजा ने एआई को बौद्धिक संपदा कानून (IPR) और साइबर कानून से जोड़ते हुए कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए। उन्होंने कहा कि विधि शिक्षकों और शोधकर्ताओं की जिम्मेदारी है कि वे उभरती तकनीकों पर नीति निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दें।
सेमिनार का संबोधित करते हुए जस्टिस राजेश बिंदल
एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड व पूर्व एएजी हरियाणा विकास वर्मा ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कभी भी मानव बुद्धि का पूर्ण विकल्प नहीं बन सकता क्योंकि उसमें भावनात्मक चेतना (Emotive Consciousness) का अभाव है। उन्होंने एआई के व्यावहारिक और कानूनी प्रभावों पर विस्तृत चर्चा की।
सभी उपस्थित गणमान्य लोगों ने इस सेमिनार की सराहना की और इसे भारतीय न्याय प्रणाली में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के भविष्य की दिशा तय करने वाला एक महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हुआ।
सेमिनार में सभी अतिथियों को स्मृति-चिह्न प्रदान किए गए और सभी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र जारी किए जाएंगे।