मिलिये उन मूर्तिकारों से..जिनकी मेहनत से गणेश चतुर्थी पर घरों में विराजते हैं गणपति

भक्त हो या फिर मूर्तिकार..हर कोई गणेश चतुर्थी के मौके पर गणपति के स्वागत की तैयारियों में जुटा हुआ है। गणपति को घर-घर में विराजमान कराने का श्रेय ऐसे कई कलाकारों और हुनरमंद लोगों को भी जाता है, जिनकी मेहनत की कहानी से हर कोई अनभिज्ञ है। डाइनामाइट न्यूज़ की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में पढ़ें ऐसे मुर्तिकारों की अनसुनी दास्तां

Post Published By: डीएन ब्यूरो
Updated : 10 September 2018, 4:24 PM IST
google-preferred

नई दिल्लीः गणेश चतुर्थी को लेकर बाजार पूरी तरह से सज चुके हैं। भक्तगण गणपति को घर पर लाने के लिए जोर-शोर से तैयारियां कर रहे हैं। इस बार गणेश चतुर्थी 13 सितंबर को है। यह दस दिन तक चलने वाला त्यौहार है, जिसे भक्तगण गणेश जी के जन्मोत्सव मनाते है।

गणेश जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुआ था इसलिए हर साल इस दिन गणेश चतुर्थी धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन भगवान गणेश को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के रूप में पूजा जाता है। इस बार 13 सितंबर को शुक्ल चतुर्थी का दिन है।  

यह भी पढ़ेंः गधा, घोड़ा, बैल, बाइक भी भारत बंद में..

 ऐसे हमारे घरों में विराजते हैं गणपति

दिल्ली के झंडेवालान स्थित पंचकुईयां रोड पर रखी गई गणेश की प्रतिमाओं को अपने घरों में विराजमान करने के लिए भक्तों का तांता लगना शुरू हो गया है। वहीं डाइनामाइट न्यूज की टीम ने गणेश की सुंदर और अद्भुत मूर्तियों को बनाने वाले इन मूर्तिकारों से बातचीत कर जाना इसके पीछे का सच। मूर्तिकारों ने हमारी टीम को बताया कि किस तरह से मूर्तियां बनाई जाती है व इस पर कितनी मेहनत व लागत लगती है।   

मूर्तिकारों ने बताया, इस तरह बनाई जाती है मूर्तियां, आती है इतनी लागत

1. कई वर्षों से मूर्तियां बनाने वाली ललीता कहती हैं कि वह राजस्थान के जोधपुर की रहने वाली है। राजस्थान में पानी की किल्लत रहती है, इसलिए उनका परिवार दिल्ली में यहीं पंचकुईंया रोड के पास मूर्तियां बनाता है।

मूर्ति में लगने वाले कच्चे मैटीरिलय को लेकर वह कहती हैं कि भारत में केरल समेत कई जगहों से कच्चा माल लाया जाता है। वहीं भूटान व पेरिस से भी सामान आता है। ललीता बताती है कि वह मूर्तियों को बनाने में इतना रम जाती है कि उन्हें खाने तक की फुर्सत नहीं रहती है।  

2.  मूर्तिकार मोहर सिंह बताते हैं कि उनका भी परिवार राजस्थान से दिल्ली आया है। मूर्तियां बनाने को लेकर वे रात-दिन इसे बनाने में मेहनत करते हैं। इस दौरान होने वाली बारिश से उन्हें परेशानी होती है। गणेश चतुर्थी को लेकर उनका कहना है कि हर बार की तरह इस बार ग्राहक आ रहे है।  वहीं मोहर सिंह का कहना है कि वह तो गणपति की सेवा में लगे हुए है अब ये ग्राहकों पर निर्भर करता है कि वे इस सेवा का कितना फल उन्हें देते हैं। 

3. मूर्तियां बनाने वाले मुकेश कहते हैं कि उनकी मर्तियां मुंबई, कोलकाता व मद्रास से आती है। दिल्ली में रहते- रहते उन्हें कई साल बीत चुके है। उनका परिवार राजस्थान के मारवाड़ से यहां आया है। पंचकुईंया रोड पर फुटपाथ पर वे मूर्तियां बनाते हैं और यहीं इन्हें भक्त लेने के लिए पहुंचते है। 

उनकी मेहनत ग्राहकों पर निर्भर करती है कि वे कैसे उनकी बनाई मूर्तियों के दाम लगाते हैं। उन्होंने अपने हाथ से बनाई एक मूर्ति भी दिखाई जिसकी कीमत उन्होंने 55 हजार रुपए बताई। इस पर उनका कहना था कि इसे बनाने में 50 हजार लागत लगी है। वहीं मूर्ति का खाका तैयार करने में उन्हें तीन दिन लगते हैं। उसके बाद उसकी रंगाई-पुताई में 15 दिन लगते है, तब जाकर मूर्तियां तैयार हो पाती है।

यह भी पढ़ेंः DN Exclusive: जीवनदायी हिमालय से खिलवाड़ नहीं रुका तो भविष्य होगा और मुश्किल

4. इन मूर्तिकारों का कहना है कि उनके पास दिल्ली का निवासी होने के नाम पर न तो आधार कार्ड है और न ही वोटर कार्ड। वे पंचकुईंया रोड पर 20 सालों से भी ज्यादा समय से रह रहे हैं। कभी- कभार पुलिस फुटपाथ पर रखी मूर्तियों को लेकर उन्हें टोकती भी है। लेकिन वे इसे भगवान की माया बताकर पुलिस से पीछा छुड़ाते हैं। 
 

No related posts found.