महामारी ने छीनी ब्रज की पावन भूमि की रौनक, धार्मिक आयोजनों पर लगा कोरोना का पहरा

डीएन ब्यूरो

ब्रजभूमि के मंदिरों में तड़के चार बजे से घंटे घड़ियाल बजने की प्रतिध्वनि गूंजने लगती थी तथा धार्मिक आयोजनों की होड़ लग जाती थी, कोरोना संक्रमण ने उस पावन भूमि की रौनक छीन ली है। स्पेशल रिपोर्ट..

धार्मिक आयोजनों के बंद होने से सभी मायूस
धार्मिक आयोजनों के बंद होने से सभी मायूस


मथुरा: ब्रजभूमि के मंदिरों में तड़के चार बजे से घंटे घड़ियाल बजने की प्रतिध्वनि गूंजने लगती थी तथा धार्मिक आयोजनों की होड़ लग जाती थी, लेकिन कोरोना संक्रमण ने उस पावन भूमि की रौनक छीन ली है।

विश्रामघाट के पंडे रसगुल्ली चौबे ने कहा कि सामान्यतय: सावन का महीना आते ही यमुना पूजन करने की लाइन लग जाती थी और कभी कभी तो एक दिन में यमुना पूजन के दो तीन बड़े आयोजन हो जाया करते थे। चुनरी मनोरथ यमुना जी का दूसरा प्रमुख उत्सव है जो बड़ों के लिए धार्मिकता से भरा हुआ तथा बच्चों के लिए मनोरंजक दृश्य होता है जिसमें यमुना जी को 51 साड़ियां पहनाई जाती हैं।

बाजे गाजे के साथ इसमें जजमान विश्राम घाट पर अपने बंधु बांधवों के साथ आता है तथा पूजन के बाद चुनरी मनोरथ और फिर ब्राह्मण भोजन तथा बाद में जजमान द्वारा आधी चुनरियों को अपने पंडे को देने से जो वातावरण बनता था उस पर फिलहाल विराम लग गया है जबकि यह पर्व इतना पावन है कि जिसे चुनरी मिल जाती है वह अपने को भाग्यशाली मानता है।करोना ने इन सभी पर पानी फेर दिया है।

सावन में मंदिरों की सजावट तो देेखते ही बनती है, साथ ही हिंडोला उत्सव अपनी अलग पहचान रखता है। राधा दामोदर मंदिर के सेवायत बलराम गोस्वामी ने बताया कि कोरोना वायरस के कारण तीन महीने से अधिक समय से मंदिर बन्द हैं तथा मंदिर कब खुलेंगे इसका भी कुछ पता नही है, अन्यथा तो सावन में हिंडोला उत्सव एवं भगवान श्रीकृष्ण द्वाराब्रह्मलीन संत सनातन गोस्वामी को दी गई शिला की परिक्रमा करने तथा अन्य आयोजन से मंदिर का कोना कोना कृष्णभक्ति से भर जाता हेै आज उस मंदिर में अन्दर सेवा पूजा भले हो रही हो पर करोना ने भक्त और भगवान के बीच की दूरी बढ़ा दी है। रामानन्द आश्रम गोवर्धन के महंन्त शंकरलाल चतुर्वेदी ने बड़े दुःखी मन से कहा कि सावन आते ही जहां गोवर्धन की परिक्रमा करने की ऐसी होड़ लगती थी कि एकादशी से पूर्णिमा तक गोवर्धन में एक प्रकार से सूर्यास्त नही होता था तथा पांच दिन तक 24 घंटे परिक्रमा चलती थी। बंदरों और गायों को इतना खाने को मिलता था कि वे खा नही पाते थे उसी परिक्रमा मार्ग में आज कोरोनावायरस के कारण वीरानगी छाई्र हुई है।

उन्होने कहा कि ब्रजवासियों से कहीं कहीं जाने में या अनजाने में चूक हुई है जिससे ब्रज के भी मंदिर बन्द पड़े हैं लेकिन भरोसा है कि कान्हा ब्रजवासियों का अहित नही होने देगा और कोरोनावायरस के संक्रमण से ब्रजवासियों को बचाएगा।

दानघाटी मंदिर गोवर्धन के सेवायत रामेश्वर कौशिक ने बताया कि कोरोनावायरस के कारण मंदिरों के बंद होने से बहुत ऐसे लोग निराश हो गए हैं जो रोज मंगला करके ही अन्नजल ग्रहण करते थे या ठाकुर की संध्या आरती में गिरिराज जी के दर्शन कर ब्यालू करते थे कोरोना ने उनकी दिनचर्या को अस्तव्यस्त कर दिया है। ब्रजयात्रा ब्रज का ऐसा प्रमुख पर्व है जो भावात्मक एकता का अनुपम उदाहरण है। सामान्यतय: एक ब्रजयात्रा में दस से 12 हजार तीर्थयात्री एक साथ 84 कोस की परिक्रमा करते हैं। संरक्षक माथुर चतुर्वेद परिषद नवीन नागर ने बताया कि चातुर्मास होते ही उसकी तैयारी शुरू हो जाती थी। ब्रजयात्रा में भाग लेनेवाला तीर्थयात्री भी चातुर्मास शुरू होने के पहले ब्रज में जाता था। वह सावन का आनन्द लेने के साथ जन्माष्टमी भी यहीं करता था तथा राधाष्टमी या उसके बाद शुरू होनेवाली 45 दिवसीय 84 कोस की ब्रजयात्रा में शामिल हो जाया करता था। इससे उसका चातुर्मास भी ब्रज में हो जाता था तथा वह 84 कोस की परिक्रमा भी कर लेता था। कोरोना के कारण आज तीर्थयात्री इस धार्मिक आनन्द से वंचित हो गया है।

ब्रज में दालबाटी वर्षा ऋतु का महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। समाजसेवी सर्वेश कुमार शर्मा एडवोकेट ने बताया कि दालबाटी और बरसात एक दूसरे के पर्यायवाची से हैं। ब्रज में इसे पर्व के रूप में मनाते हैं तथा चाहे मुठिया की बाटी हो या धूधरबाटी चूरमा हो या इसमें किया गया मामूली परिवर्तन हो - सभी कार्यक्रम ठाकुर को समर्पित होते हैं तथा ठाकुर का प्रसाद लगाकर ही इसे ग्रहण किया जाता है। उन्होंने बताया कि चूंकि यह गरिष्ठ प्रसाद है इसलिए इसका आयोजन इस प्रकार किया जाता है कि प्रसाद ग्रहण करने वाला दिन में एक बार ही भोजन कर सके। ब्रज में इसका आयोजन प्रायः हनुमान जी के रोट के रूप में होता है तथा इसे बाद में प्रसादस्वरूप भक्तों में वितरित किया जाता है। कोरोना के कारण भंडारों का आयोजन बिल्कुल बन्द है अन्यथा तीर्थयात्री इसे केवल प्रसाद स्वरूप ग्रहण करता था बल्कि इसके कारण उसके खाने की समस्या का भी निराकरण हो जाता था।

ब्रज में मथुरा, वृन्दावन, गोवर्धन, गहवरवन बरसाना, बल्देव आदि में परिक्रमा करने का विशेष महत्व है। कोरोना के कारण इनमें भी ग्रहण लग गया है तथा धार्मिक भावना से ओतप्रोत ब्रजभूमि के निवासी भी मन मसोस कर बैठे हैं। ब्रज में आयोजनों की कमी नही है कुनबाड़ा से लेकर छप्पन भोग तक ऐसे कई आयोजन है जिन पर कोरोना ने विराम लगा दिया है। राजा ठाकुर मंदिर गोकुल के सहायक महंत भीखू महराज ने कहा कि जिस गोकुल में 24 घंटे भक्ति अनवरत नृत्य करते थे, आज कोरोना ने उसमें जबर्दस्त वीरानगी पैदा कर दी है बल्लभकुल संप्रदाय के मंदिरों में नित्य ठाकुर से करोनावायरस के संक्रमण को दूर करने की पूरी श्रद्धा से जिस प्रकार आराधना की जा रही है वह चमत्कार दिखाएगी इसमें संदेह नही है। (वार्ता)










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