

GST काउंसिल ने टैक्स ढांचे को सरल बनाते हुए अब सिर्फ दो स्लैब 5% और 18% रखने का निर्णय लिया है। इससे रोजमर्रा की चीजें सस्ती होंगी, लेकिन सरकार को सालाना कितने तक का राजस्व नुकसान हो सकता है, पढे़ं यहां।
GST स्लैब में कटौती
New Delhi: जीएसटी काउंसिल ने टैक्स सिस्टम को और सरल बनाते हुए आम लोगों को बड़ी राहत दी है। अब जीएसटी की चार दरों की जगह केवल दो मुख्य स्लैब- 5% और 18% लागू होंगे। इस फैसले के बाद टूथपेस्ट, साबुन, शैंपू, सीमेंट, छोटी कारें और कई इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद सस्ते हो जाएंगे। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने काउंसिल की बैठक के बाद इसकी घोषणा की और बताया कि यह बदलाव 22 सितंबर से लागू होगा।
15 अगस्त 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस भाषण में इसका ऐलान किया था। इसे उन्होंने 'दिवाली बोनांजा' करार दिया। इसके बाद वित्त मंत्रालय ने GST स्लैब को सरल बनाने का प्रस्ताव रखा, जिसे काउंसिल ने मंजूरी दे दी।
नई टैक्स व्यवस्था के तहत अब 28% स्लैब में आने वाली चीजें जैसे फ्रीज, वॉशिंग मशीन, 1200 सीसी तक की कारें, टीवी आदि को 18% स्लैब में लाया गया है। इससे इनकी कीमतों में कमी आएगी। रोजमर्रा में उपयोग होने वाली चीजें जैसे साबुन, शैंपू, टूथपेस्ट और सीमेंट अब सस्ती हो जाएंगी, जिससे आम उपभोक्ता को सीधा फायदा होगा।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण
सरकार ने कुछ आवश्यक वस्तुओं को टैक्स से पूरी तरह बाहर कर दिया है। रोटी, पराठा, डेयरी उत्पादों और निजी बीमा सेवाओं पर अब कोई जीएसटी नहीं लगेगा। इससे आम नागरिक को राहत तो मिलेगी ही, साथ ही गरीब और मध्यम वर्ग की जेब पर बोझ भी कम होगा।
तंबाकू, गुटखा, सिगरेट और शराब जैसी वस्तुओं को 'सिन गुड्स' श्रेणी में रखा गया है और इन पर अब 40% तक टैक्स लगेगा। इससे एक ओर इनकी खपत पर नियंत्रण होगा और दूसरी ओर सरकार को इनसे अतिरिक्त राजस्व मिलेगा।
मौजूदा जीएसटी ढांचे में सबसे ज्यादा यानी करीब 65% राजस्व 18% स्लैब से आता है। वहीं, 28% से 11%, 12% से 5% और 5% से 7% राजस्व मिलता है। अनुमान है कि 12% और 28% स्लैब को खत्म कर 5% और 18% में शिफ्ट करने से सरकार को सालाना लगभग 1.1 से 1.8 लाख करोड़ रुपये तक का नुकसान हो सकता है।
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हालांकि, विशेषज्ञ मानते हैं कि टैक्स कम होने से चीजें सस्ती होंगी, जिससे खपत में बढ़ोतरी होगी। इससे ज्यादा लोग जीएसटी के दायरे में आएंगे और टैक्स कलेक्शन में वृद्धि हो सकती है। सिन गुड्स पर बढ़े टैक्स से भी कुछ हद तक इस नुकसान की भरपाई संभव है।
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सरकार का यह फैसला आम आदमी को सीधा फायदा देने वाला है, लेकिन इसके साथ ही राजस्व में संभावित गिरावट एक बड़ी चुनौती है। आने वाले समय में देखा जाएगा कि यह कदम आर्थिक गतिविधियों को कितना गति देता है और सरकार इस घाटे की भरपाई कैसे करती है।