उत्तराखंड के लोकपर्व इगास बग्वाल की धूम परदेश तक, जानिए इसके पौराणिक और ऐतिहासिक कारण

उत्तराखंड का लोकपर्व इगास बग्वाल शनिवार को धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस पर्व की पूरे देश में धूम है। इसे बूढ़ी दिवाली या इगास बग्वाल के नाम भी कहते है।इगास बग्वाल केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि उत्तराखंड की लोक संस्कृति का प्रतीक है। दीपावली के 11 दिन बाद इस पर्व को मनाने के पीछे प्राचीन मान्यता है।

Post Published By: Jay Chauhan
Updated : 1 November 2025, 3:35 PM IST
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New Delhi: उत्तराखंड में इगास पर्व की धूम हैं। प्रदेश में दीपावली के 11 दिन बाद मनाये जाने वाली छोटी दीपावली शनिवार को बडे़ धूमधाम के साथ मनायी जा रही है। यह पहाड़ी संस्कृति का प्रतीक है। इस दिन घरों को सजाया जाता है, विशेष पकवान बनते हैं, और लोक नृत्य व संगीत का आयोजन होता है। पूरे क्षेत्र में उत्सव का माहौल रहता है और लोग आपस में खुशियां बांटते हैं।

उत्तराखंड का लोकपर्व इगास बग्वाल गढ़वाल संसदीय क्षेत्र से सांसद एवं भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख अनिल बलूनी के नई दिल्ली स्थित आवास पर शुक्रवार को पर्व की पूर्व संध्या पर हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस दौरान लोक कलाकारों ने पारंपरिक लोकनृत्य और लोकगायन से समां बांध दिया।कार्यक्रम में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह समेत उत्तराखंड मूल के अधिकारी व हस्तियां ईगास पूजन में शामिल रहे।

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उत्तराखंड में इगास पर्व की धूम

 

पहाड़ों में दिवाली कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इसे बूढ़ी दिवाली कहते हैं। वहीं पहाड़ों में इसे इगास बग्वाल के नाम से जाना जाता है। इगास का अर्थ है ग्यारह, या एकादशी। इस तरह इगास बग्वाल, कार्तिक एकादशी का अर्थ लिए हुए है।

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सांसद अनिल बलूनी के आवास पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ईगास पर्व की पूर्व संध्या पर

गढ़वाल सांसद अनिल बलूनी ने कहा कि उत्तराखण्ड में यह त्यौहार दीपावली के 11 दिन बाद आता है। गढ़वाल में इसे इगास-बगवाल के नाम से जानते है तो कुमाउं में बूढ़ी दिवाली के नाम से जाना जाता है।

उन्होंने कहा कि इसकी पहली पौराणिक मान्यता है कि ऐसा माना जाता है कि जब भगवान राम के अयोध्या लौटने की सूचना दिवाली के 11 दिन बाद उत्तराखंड पहुँची, तोस्थानीय लोगों ने अपने तरीके से दिवाली मनाई।

वहीं दूसरी मान्यता है कि गढ़वाली योद्धा माधव सिंह भंडारी की दापाघाटी में तिब्बत पर विजय का जश्न मनाती है, जिसे समुदाय द्वारा एकता और वीरता के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।

बलूनी ने कहा कि इगास पर्व उत्तराखण्ड की लोकसंस्कृति और परम्पराओं का सजीव प्रतीक है। यह पर्व हमें अपनी जड़ों से जुड़े रहने और सांस्कृतिक एकता को बनाए रखने का संदेश देता है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार पारंपरिक पर्वों और सांस्कृतिक आयोजनों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए कोशिश हो रही है।

ऐसे मनाते हैं बग्वाल

दीपावली के बाद आने वाली एकादशी को इगास बग्वाल को मनाया जाता है। जिसमें लकड़ियों का गट्ठर बनाकर उन्हें जलाकर भेलों खेला जाता है। इस दौरान लोग पारंपरिक वेशभूषा में नजर आते हैं और पारंपरिक पकवान बनाए जाते हैं। इस दिन सुबह से ढोल और दमाऊं (एक पारंपरिक वाद्य) की आवाज गूंजने लगती है, जिसे देवता को जगाने का माध्यम बताया जाता है। वहीं घरों में पकवान बनाए जाते हैं और भोग देवताओं को लगता है। इगास फिर महिला-पुरुष अपनी पहाड़ी पारंपरिक वेश-भूषा में तैयार होते हैं।  घरों में, चौक-चबारों में और हर कोने-कोने में दीपक जलाए जाते हैं। देवताओं के स्थानों को भी दीप मालिकाओं से प्रकाशित किया जाता है।

इगास बग्वाल की आधुनिक प्रासंगिकता
आज इगास बग्वाल न केवल उत्तराखंड की संस्कृति और परंपराओं को संजोता है बल्कि युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों से जुड़ने और सामुदायिक एकता का महत्व समझने का भी अवसर देता है। हर साल पहाड़ों में भैलो की रोशनी और लोकगीतों की गूंज से यह पर्व जीवंत हो उठता है।

इस दौरान कार्यक्रम में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव, केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, एनएसए अजीत डोभाल, बाबा बागेश्वर धाम, बालीवुड गायक जुबिन नौटियाल समेत उत्तराखंड के  कई लोग मौजूद रहे।

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  • New Delhi

Published : 
  • 1 November 2025, 3:35 PM IST