Constitution Day: क्यों मनाया जाता है 26 नवंबर को संविधान दिवस? जानें इतिहास, महत्व और रोचक तथ्य

26 नवंबर को भारत में संविधान दिवस इसलिए मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन 1949 में संविधान को आधिकारिक रूप से अपनाया गया था। यह दिन नागरिकों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों की याद दिलाता है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर पर कर्तव्य-पालन को लोकतंत्र की शक्ति बताया।

Post Published By: Tanya Chand
Updated : 26 November 2025, 12:35 PM IST
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New Delhi: भारत में हर वर्ष 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाया जाता है। इस दिन 1949 को भारतीय संविधान को आधिकारिक रूप से अंगीकृत किया गया था, जो दो महीने बाद 26 जनवरी 1950 से लागू हुआ। यह दिवस नागरिकों को उनके संवैधानिक अधिकारों, कर्तव्यों और लोकतांत्रिक मूल्यों की याद दिलाता है। लेकिन हर युवा के दिमाग में यह बड़ा सवाल जरूर आता होगा कि 26 नवंबर को ही क्यों संविधान दिवस मनाया जाता है।

26 नवंबर को ही क्यों मनाया जाता है संविधान दिवस?

26 नवंबर को भारत में संविधान दिवस इसलिए मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन 1949 में भारतीय संविधान को संविधान सभा ने आधिकारिक रूप से अपनाया था। यह दिन नागरिकों को उनके संवैधानिक अधिकारों और कर्तव्यों की याद दिलाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस अवसर पर कर्तव्य पालन और लोकतंत्र में सक्रिय भागीदारी पर जोर देते हैं। संविधान दिवस छात्रों और युवाओं में लोकतांत्रिक जागरूकता बढ़ाने का भी अवसर है।

प्रधानमंत्री मोदी का संदेश

संविधान दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों से अपील की कि वे अपने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन करें, क्योंकि यही एक मजबूत लोकतंत्र की नींव है। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी हमेशा मानते थे कि अधिकारों की उत्पत्ति कर्तव्यों से होती है। पीएम मोदी ने विशेष रूप से मतदान के महत्व पर जोर दिया और शिक्षण संस्थानों से आग्रह किया कि वे पहली बार वोट करने वाले युवाओं को सम्मानित कर संविधान दिवस मनाएं।

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संविधान निर्माण की पूरी कहानी

भारत को एक संपूर्ण, सर्वभौम और लोकतांत्रिक ढांचा देने के लिए 1935 के भारत सरकार अधिनियम के बाद एक नई कानूनी संरचना की आवश्यकता महसूस हुई। बता दें कि दिसंबर 1946 में संविधान सभा का गठन हुआ। डॉ. राजेंद्र प्रसाद इसके अध्यक्ष बनाए गए और बाद में वे भारत के पहले राष्ट्रपति बने। सभा में कुल 389 सदस्य थे, जिनमें डॉ. बी.आर. अंबेडकर, सरदार पटेल, जवाहरलाल नेहरू और अन्य प्रमुख नेता शामिल थे।

संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई। डॉ. अंबेडकर को संविधान का प्रारूप तैयार करने का दायित्व सौंपा गया। करीब तीन वर्षों की मेहनत के बाद मसौदा 1948 में प्रस्तुत किया गया। दो वर्षों की गहन चर्चाओं और संशोधनों के बाद 26 नवंबर 1949 को संविधान अपनाया गया।

तीन साल की मेहनत का नतीजा है देश का संविधान

भारत का संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं बल्कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की आत्मा है। संविधान निर्माण में 299 सदस्यों ने हिस्सा लिया। लगभग तीन वर्षों में 11 सत्र हुए और 2,000 से अधिक बार चर्चाएँ हुईं। 284 सदस्यों ने अंतिम दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए, जबकि हजारों लोग दर्शक दीर्घा से बहसें सुनते रहे। डॉ. बी.आर. अंबेडकर को संविधान का मुख्य शिल्पकार माना जाता है और वे ‘भारतीय संविधान के जनक’ कहलाते हैं।

संविधान को मिला आधिकारिक रूप

संविधान की मौलिक संरचना और रोचक तथ्य

भारत का संविधान दुनिया के सबसे विस्तृत और व्यापक संविधानों में से एक है। शुरुआत में इसमें 395 अनुच्छेद, 22 भाग और 8 अनुसूचियां थीं। आज यह कई संशोधनों के बाद और अधिक विस्तृत हो चुका है। मूल संविधान को प्रेम बिहारी नारायण रैज़ादा ने अपने हाथों से सुंदर कलिग्राफी में लिखा। शांति निकेतन के कलाकारों ने इसे सजाया और अलंकृत किया।

भारत के संविधान में कई देशों की संवैधानिक व्यवस्थाओं का समावेश किया गया, जिसमें ब्रिटेन से संसदीय प्रणाली, अमेरिका से मौलिक अधिकार, आयरलैंड से राज्य नीति के निदेशक तत्व और कनाडा और ऑस्ट्रेलिया से संघीय ढांचा शामिल है।

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संविधान दिवस का महत्व

संविधान दिवस केवल एक औपचारिक आयोजन नहीं बल्कि लोकतांत्रिक जागरूकता का अवसर है। इसका उद्देश्य नागरिकों विशेषकर युवाओं और छात्रों को यह बताना है कि संविधान कैसे राष्ट्र की दिशा तय करता है और हर नागरिक की भूमिका इसमें कितनी महत्वपूर्ण होती है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि संविधान केवल कानूनों का संग्रह नहीं, बल्कि देश की आत्मा, लोकतंत्र का आधार और भारत की विविधता में एकता का प्रतीक है।

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  • New Delhi

Published : 
  • 26 November 2025, 12:35 PM IST