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भारत 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाता है, जिस दिन 1949 में संविधान को अपनाया गया था। यह दिन डॉ. आंबेडकर और संविधान निर्माताओं की मेहनत को सम्मान देने और लोकतांत्रिक मूल्यों को याद करने का अवसर है। जानें इतिहास और महत्व।
संविधान दिवस
New Delhi: भारत हर साल 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाता है, जिसे “संविधान दिवस” या “सम्विधान दिवस” के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन उन महान नेताओं के सम्मान में मनाया जाता है जिन्होंने भारत के संविधान को तैयार किया और देश की लोकतांत्रिक नींव मजबूत की। 26 नवंबर 1949 को संविधान को आधिकारिक रूप से अपनाया गया था, और यह भारत के उपनिवेशी शासन से स्वशासन की दिशा में एक ऐतिहासिक बदलाव का प्रतीक है। यह दिन नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के उन मूल्यों की याद दिलाता है, जो संविधान में शामिल हैं।
भारत में संविधान निर्माण का सफर ब्रिटिश शासन के अंत की ओर शुरू हुआ। 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट के बाद यह समझ बढ़ी कि देश को एक ऐसा ढांचा चाहिए जो इसे एक संप्रभु और लोकतांत्रिक गणराज्य बनाए। इसी दिशा में दिसंबर 1946 में संविधान सभा का गठन किया गया।
संविधान सभा में कुल 389 सदस्य थे, जिनमें देश के प्रमुख नेताओं जैसे डॉ. भीमराव आंबेडकर, सरदार वल्लभभाई पटेल, जवाहरलाल नेहरू सहित कई महत्वपूर्ण व्यक्तित्व शामिल थे। सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई और डॉ. राजेंद्र प्रसाद को इसका अध्यक्ष चुना गया, जो आगे चलकर भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने।
संविधान का मसौदा तैयार करने की जिम्मेदारी डॉ. भीमराव आंबेडकर को सौंपी गई। उन्होंने करीब तीन वर्षों की मेहनत के बाद 1948 में मसौदा प्रस्तुत किया। इस मसौदे पर 11 सत्रों में विस्तृत चर्चा की गई, जिसमें कई संशोधन किए गए। अंततः 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकार किया गया।
संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ और यही कारण है कि हर साल 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाया जाता है।
संविधान दिवस हमें यह याद दिलाता है कि भारत की प्रगति और लोकतांत्रिक यात्रा संविधान में निहित सिद्धांतों पर आधारित है। यह दिन नागरिकों को अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक करता है और संविधान निर्माताओं की दूरदृष्टि और त्याग का सम्मान करने का मौका देता है।
यह अवसर नई पीढ़ी को भी प्रेरित करता है कि देश की एकता, अखंडता और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करना हम सभी की जिम्मेदारी है।
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संविधान दिवस केवल ऐतिहासिक महत्व का दिन नहीं है, बल्कि यह देश की लोकतांत्रिक पहचान का प्रतीक है। यह हमें याद दिलाता है कि भारत का संविधान सिर्फ एक दस्तावेज नहीं, बल्कि देश की आत्मा है।