PM केपी ओली के इस्तीफे के बाद आगे क्या होगा नेपाल में? क्या और बढ़ेगी अस्थिरता और हिंसा

नेपाल इन दिनों एक गहरे राजनीतिक और सामाजिक संकट से गुजर रहा है। हालिया घटनाएं बताती हैं कि देश एक बार फिर अस्थिरता की ओर बढ़ रहा है, जहां जनआंदोलन, सत्ता का गिरना और जन असंतोष एक बार फिर राजनीतिक व्यवस्था को चुनौती दे रहे हैं।

Post Published By: Poonam Rajput
Updated : 9 September 2025, 3:40 PM IST
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Nepal: प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे का नेपाल पर असर बहुत व्यापक और गहरा होने वाला है।  न सिर्फ राजनीतिक स्तर पर, बल्कि सामाजिक और संस्थागत स्तर पर भी।  केपी शर्मा ओली नेपाल की राजनीति में एक मज़बूत और ध्रुवीकृत चेहरा रहे हैं। उनके इस्तीफे का मतलब है कि सरकार के मौजूदा ढांचे का गिर जाना। इससे सत्ता में शून्यता बनी है और नए नेतृत्व की तलाश एक बार फिर शुरू हो गई है। नेपाल में अक्सर सत्ता परिवर्तन नई अस्थिरता को जन्म देता है, क्योंकि राजनीतिक दलों में आपसी सहयोग की जगह टकराव अधिक होता है।

गठबंधन राजनीति और जोड़-तोड़ फिर से शुरू

केपी शर्मा ओली का इस्तीफा नई सत्ता संरचना बनाने के लिए गठबंधन की राजनीति को सक्रिय कर सकता है। नेपाल में बहुदलीय व्यवस्था में सरकारें अक्सर अस्थिर गठबंधनों पर टिकी होती हैं। अब विभिन्न दल अपनी-अपनी शर्तों पर गठजोड़ की कोशिश कर सकते हैं, जिससे राजनीतिक अनिश्चितता और बढ़ सकती है। छोटे दल सत्ता संतुलन में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं, जिससे सरकार कमजोर हो सकती है।

अंतरराष्ट्रीय प्रभाव और संबंध

नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता पर भारत, चीन और अन्य पड़ोसी देश भी नजर रख रहे हैं। ओली का झुकाव चीन की ओर माना जाता था। उनके हटने से भारत के साथ संबंधों में नया अध्याय शुरू हो सकता है, या फिर अनिश्चितता और बढ़ सकती है, यदि नया नेतृत्व स्पष्ट विदेश नीति नहीं अपनाता।

सोशल मीडिया बैन बना चिंगारी

बता दें कि  सरकार की ओर से 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगाने का फैसला उस चिंगारी की तरह सामने आया जिसने देशभर में युवा वर्ग को उबाल पर ला दिया। सरकार का तर्क था कि ये प्लेटफ़ॉर्म्स "राष्ट्र विरोधी गतिविधियों" और "गलत सूचना" फैला रहे हैं, लेकिन जनता ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला माना। सबसे ज़्यादा प्रतिक्रिया युवाओं की ओर से आई, जिन्हें ‘Gen Z आंदोलन’ कहा जा रहा है।

19 लोगों की मौत और देशभर में आक्रोश

जैसे ही विरोध प्रदर्शन तेज़ हुए, पुलिस और सुरक्षाबलों की ओर से बल प्रयोग भी उतना ही कठोर होता गया। कई जगहों पर गोलियां चलीं, जिससे कम से कम 19 प्रदर्शनकारियों की जान चली गई। यह आंकड़ा ही काफी था जनता को यह महसूस कराने के लिए कि सरकार न तो सुन रही है और न ही मान रही है।

इस्तीफों की राजनीति ने बदला सत्ता का समीकरण

इन हिंसक घटनाओं और जनदबाव के बीच के.पी. शर्मा ओली ने पीएम पद से  इस्तीफा दे दिया। उनके साथ-साथ गृह मंत्री रमेश लेखक और दो अन्य वरिष्ठ मंत्रियों कृषि और संचार विभाग के प्रमुखों ने भी पद छोड़ दिए। यह सरकार की विफलता को दर्शाता है, जिसने राजनीतिक प्रणाली को अस्थिर कर दिया।

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अब आगे क्या? लोकतंत्र का पुनर्निर्माण या नई अस्थिरता?

प्रधानमंत्री के इस्तीफे के बाद फिलहाल कार्यवाहक सरकार जिम्मेदारी संभाल रही है, लेकिन यह स्थिति स्थायी नहीं हो सकती। या तो सभी दल मिलकर सर्वदलीय सरकार का गठन करें, या फिर देश को नए चुनाव की ओर ले जाएं। जनता अब सिर्फ नेतृत्व परिवर्तन से संतुष्ट नहीं होगी। वह पारदर्शिता, जवाबदेही और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी चाहती है।

 संकट में छिपा है अवसर

अब ऐसे में नेपाल एक नाजुक मोड़ पर खड़ा है। यदि राजनीतिक नेतृत्व इस संकट से सबक ले और लोकतांत्रिक मूल्यों को मज़बूत करने की दिशा में काम करे, तो यह आंदोलन देश के भविष्य को नया रास्ता दिखा सकता है। लेकिन अगर संवाद की जगह दमन चुना गया, तो नेपाल फिर उसी अस्थिरता के गर्त में जा सकता है, जिससे वह बार-बार निकलने की कोशिश करता रहा है।

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संविधान और लोकतंत्र की परीक्षा

केपी ओली का इस्तीफा केवल एक पद छोड़ने की घटना नहीं, बल्कि यह नेपाल के संविधान और लोकतांत्रिक संस्थानों की परीक्षा भी है। अब यह देखना होगा कि राष्ट्रपति, संसद और अन्य संस्थान कैसे काम करते हैं क्या वे निष्पक्षता और पारदर्शिता से देश को स्थिरता की ओर ले जाएंगे, या राजनीतिक रस्साकशी में और उलझाएंगे।

 

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