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उज्जैन की 200 साल पुरानी तकिया मस्जिद गिराए जाने के खिलाफ 13 नमाज़ियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि मध्य प्रदेश सरकार ने महाकाल मंदिर पार्किंग विस्तार के लिए मस्जिद को अवैध बताकर ध्वस्त कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट
New Delhi: मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित 200 साल पुरानी तकिया मस्जिद के ध्वस्तीकरण का मामला अब सुप्रीम कोर्ट की दहलीज़ पर पहुंच गया है। मस्जिद में नमाज़ पढ़ने वाले 13 लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी है जिसमें मस्जिद गिराए जाने की कार्रवाई को सही ठहराया गया था। याचिकाकर्ताओं ने मांग की है कि हाईकोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक (stay) लगाई जाए और मस्जिद गिराए जाने की निष्पक्ष जांच कराई जाए।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि मध्य प्रदेश सरकार ने महाकाल मंदिर परिसर का विस्तार और पार्किंग क्षेत्र बढ़ाने के लिए तकिया मस्जिद को तोड़ दिया। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि मस्जिद लगभग 200 साल पुरानी थी और 1985 में वक्फ संपत्ति के रूप में नोटिफाई की गई थी। इसके बावजूद जनवरी 2024 में सरकार ने इसे “अवैध निर्माण” बताते हुए गिरा दिया। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि प्रशासन ने न तो मस्जिद प्रबंधन समिति से बातचीत की और न ही कोई नोटिस जारी किया, सीधा ध्वस्तीकरण कर दिया गया।
1. पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991- जिसके तहत 15 अगस्त 1947 से पहले के पूजा स्थलों की धार्मिक स्थिति बदली नहीं जा सकती।
2. वक्फ अधिनियम, 1995- जिसके अनुसार किसी भी वक्फ संपत्ति को बिना कानूनी प्रक्रिया के अधिग्रहित नहीं किया जा सकता।
3. भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापना में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013- जो प्रभावित पक्षों को उचित मुआवजा और सुनवाई का अधिकार देता है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि मस्जिद की भूमि को अधिग्रहित करने की प्रक्रिया अनियमित और मनमानी रही। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि सरकार ने वास्तविक धार्मिक स्थल को अवैध बताकर मुआवजा उन लोगों को दिया जो अतिक्रमणकारी या गैर-प्रमाणित कब्जेदार थे। उन्होंने आरोप लगाया कि यह एक “झूठा भूमि अधिग्रहण मामला” तैयार कर, धार्मिक स्थल को नुकसान पहुंचाने की साजिश थी।
मस्जिद में नमाज़ अदा करने वाले 13 लोगों ने पहले मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। उन्होंने मस्जिद को फिर से बनवाने और ध्वस्तीकरण को अवैध घोषित करने की मांग की थी। हालांकि, हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के पक्ष में फैसला सुनाते हुए याचिका खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि मस्जिद अवैध कब्जे की भूमि पर स्थित थी और सरकार को सार्वजनिक सुविधा के लिए उसे हटाने का अधिकार है। इसके बाद, याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।
1. अंतरिम राहत (स्टे)- ताकि राज्य सरकार मस्जिद वाली भूमि पर कोई नया निर्माण कार्य न कर सके।
2. निष्पक्ष जांच- मस्जिद के ध्वस्तीकरण की परिस्थितियों और भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया की स्वतंत्र जांच कराई जाए।
याचिकाकर्ताओं के अनुसार, मस्जिद को वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज किए जाने के बाद मध्य प्रदेश वक्फ बोर्ड की सहमति के बिना कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती थी। इसके बावजूद प्रशासन ने वक्फ बोर्ड को कोई सूचना या नोटिस नहीं दिया। याचिका में कहा गया कि यह कदम न केवल वक्फ अधिनियम का उल्लंघन है, बल्कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के भी खिलाफ है।
राज्य सरकार की ओर से पहले दायर हलफनामे में कहा गया था कि तकिया मस्जिद का कोई “विधिक स्वामित्व” सिद्ध नहीं किया जा सका। सरकार का तर्क है कि संबंधित भूमि महाकाल विस्तार योजना के अंतर्गत आती है और वहां अवैध निर्माण खड़ा किया गया था। प्रशासन ने दावा किया था कि किसी भी धार्मिक गतिविधि में बाधा नहीं आई और क्षेत्र के विकास के लिए यह कदम आवश्यक था।