सुप्रीम कोर्ट ने ठुकराई तेलंगाना सरकार की याचिका: चुनावों में नहीं मिलेगा बढ़ा हुआ ओबीसी कोटा, जानें क्यों?

सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें पंचायत और नगरपालिका चुनावों में 67 प्रतिशत आरक्षण पर हाई कोर्ट की रोक हटाने की मांग की गई थी। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि कुल आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती। अब राज्य सरकार को अपनी बात हाई कोर्ट में ही रखनी होगी।

Post Published By: Mayank Tawer
Updated : 16 October 2025, 2:51 PM IST
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New Delhi: तेलंगाना सरकार को पंचायत और नगरपालिका चुनावों में ओबीसी आरक्षण बढ़ाने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका मिला है। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली बेंच ने स्पष्ट कर दिया कि वह हाई कोर्ट द्वारा लगाई गई रोक को हटाने के पक्ष में नहीं है। इस प्रकार 67 प्रतिशत आरक्षण व्यवस्था पर फिलहाल रोक बरकरार रहेगी।

तेलंगाना सरकार ने बढ़ाया था ओबीसी कोटा

तेलंगाना सरकार ने 2024 की शुरुआत में स्थानीय निकाय चुनावों के लिए पिछड़ा वर्ग (OBC) के आरक्षण को बढ़ाकर 42% कर दिया था। राज्य सरकार के इस निर्णय के बाद कुल आरक्षण 67% हो गया था। जिसमें एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग शामिल हैं। सरकार का तर्क था कि पिछड़े वर्ग की जनसंख्या के अनुपात में उन्हें राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। लेकिन इस फैसले पर कानूनी अड़चन तब आई जब तेलंगाना हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का हवाला देते हुए इस आरक्षण पर रोक लगा दी।

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क्या है आरक्षण की 50% सीमा?

भारत में आरक्षण की सीमा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 1992 के इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार केस में ऐतिहासिक फैसला दिया था, जिसमें यह कहा गया था कि आरक्षण की कुल सीमा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए, जब तक कि विशेष परिस्थितियां न हों। हाई कोर्ट ने भी इसी फैसले का हवाला देते हुए तेलंगाना सरकार के आदेश पर रोक लगाई थी और कहा था कि 67% आरक्षण संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है।

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सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

तेलंगाना सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की याचिका को खारिज करते हुए कहा, "आपको जो कहना है, वह हाई कोर्ट के समक्ष कहिए। हम हाई कोर्ट की रोक हटाने में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।" इस टिप्पणी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि उसे इस मामले में हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं है, और अब गेंद पूरी तरह से हाई कोर्ट के पाले में है।

तेलंगाना सरकार का पक्ष

राज्य सरकार का कहना था कि ओबीसी समुदाय की स्थानीय निकायों में हिस्सेदारी उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति को देखते हुए बढ़ाना जरूरी है। राज्य सरकार ने यह भी तर्क दिया कि उन्होंने वैज्ञानिक जनगणना और सामाजिक सर्वेक्षण के आधार पर यह फैसला लिया है, लेकिन कोर्ट ने इन दलीलों को इस स्तर पर सुनने से इनकार कर दिया और निर्देश दिया कि इन्हें हाई कोर्ट में ही रखा जाए, जहां मामले की सुनवाई पहले से चल रही है।

राजनीतिक हलकों में हलचल

इस फैसले के बाद तेलंगाना की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। विपक्षी दलों ने राज्य सरकार पर आरोप लगाया है कि उसने बिना कानूनी प्रक्रिया को पूरा किए जनसंख्या के आंकड़ों के आधार पर मनमानी से आरक्षण बढ़ा दिया। वहीं, राज्य सरकार का दावा है कि वह पिछड़े वर्ग के हक के लिए लड़ रही है और उन्हें उनका वाजिब प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।

स्थानीय निकाय चुनावों पर असर

चुनाव आयोग की तैयारी लगभग पूरी है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद स्थानीय निकाय चुनावों की तारीखों में देरी हो सकती है। जब तक आरक्षण व्यवस्था स्पष्ट नहीं होती, तब तक चुनाव कराना मुश्किल हो सकता है।

आरक्षण बनाम संविधान की बहस फिर से गर्म

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से आरक्षण बनाम संविधान की बहस एक बार फिर से चर्चा में आ गई है। यह मामला इस बात को रेखांकित करता है कि राजनीतिक प्रतिनिधित्व के नाम पर संवैधानिक सीमाएं लांघना संभव नहीं है। वहीं, पिछड़ा वर्ग के संगठन इसे सामाजिक न्याय का मुद्दा मानकर सरकार के साथ खड़े हैं।

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Published : 
  • 16 October 2025, 2:51 PM IST