

भारतीय रिजर्व बैंक ने रुपया को वैश्विक करेंसी बनाने की दिशा में साहसिक कदम उठाते हुए सीमापार व्यापारिक लोन की मंजूरी दे दी है। इससे भारत के साथ भूटान, नेपाल और श्रीलंका जैसे देशों में रुपये में लेनदेन बढ़ेगा। यह योजना डॉलर पर निर्भरता कम कर।
'रुपया' की गूंज
New Delhi: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने 1 अक्टूबर को मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक के दौरान एक ऐसा निर्णय लिया, जिससे भारतीय रुपया अंतरराष्ट्रीय मुद्रा प्रणाली में एक मजबूत उपस्थिति दर्ज कर सकता है। यह कदम सीमापार लोन, वास्त्रो अकाउंट और रुपये में व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिए उठाया गया है।
RBI की इस नई योजना के तहत अब भारतीय बैंक भूटान, नेपाल और श्रीलंका के गैर-निवासियों को व्यापारिक लोन दे सकेंगे। यह लोन केवल सीमापार व्यापार (cross-border trade) के लिए अनुमन्य होगा। इससे इन देशों के साथ व्यापारिक लेन-देन में भारतीय रुपये का उपयोग बढ़ेगा और डॉलर जैसी विदेशी मुद्राओं पर निर्भरता घटेगी।
'रुपया' की गूंज
RBI के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा कि "आज के वैश्विक अस्थिरता भरे माहौल में भारत एक मजबूत मैक्रोइकनॉमिक स्थिति के साथ खड़ा है, $700 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार, सशक्त सेवा निर्यात और घटता चालू खाता घाटा।" ऐसे में यह निर्णय भारतीय रुपये को स्थिर और विश्वसनीय करेंसी के रूप में स्थापित कर सकता है।
RBI ने यह भी घोषणा की कि SRVA (Special Rupee Vostro Account) के तहत बचे हुए फंड्स का उपयोग अब कॉरपोरेट बॉन्ड और कमर्शियल सर्टिफिकेट में निवेश के लिए किया जा सकेगा। इसका मकसद रुपये में होने वाले लेनदेन को और अधिक लिक्विड और आकर्षक बनाना है।
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RBI ने यह स्पष्ट किया है कि भारतीय रुपया आधारित इंटरनेशनल लेन-देन को सुगम बनाने के लिए पारदर्शी विनिमय दरें (transparent exchange rates) लागू की जाएंगी। इससे विदेशी कारोबारियों और निवेशकों के बीच विश्वास बढ़ेगा और अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपया अधिक प्रतिस्पर्धी मुद्रा बन पाएगा।
RBI का यह कदम केवल आर्थिक नहीं बल्कि भूराजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। भारत अपने पड़ोसी देशों भूटान, नेपाल और श्रीलंका के साथ वैकल्पिक मुद्रा संबंध बनाकर उन्हें डॉलर के मुकाबले रुपया अपनाने के लिए प्रेरित कर रहा है। इससे दक्षिण एशियाई क्षेत्र में भारतीय मुद्रा की पकड़ मजबूत होगी।
अंतरराष्ट्रीय लेन-देन में अब तक डॉलर की भूमिका प्रमुख रही है। RBI की यह रणनीति डॉलर के वर्चस्व को चुनौती देने और रुपये को एक स्वतंत्र व्यापारिक विकल्प के रूप में प्रस्तुत करने की दिशा में बड़ा बदलाव है। इससे भारत मौद्रिक संप्रभुता को भी मजबूत कर सकेगा।
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इस बैठक में RBI ने रेपो रेट को 5.5% पर स्थिर बनाए रखा, जिससे यह स्पष्ट है कि मौद्रिक नीति में फिलहाल कोई बड़ा बदलाव नहीं किया गया है। लेकिन फाइनेंशियल स्ट्रक्चर को ग्लोबल करने की रणनीति जरूर अपनाई जा रही है, जो दीर्घकालीन दृष्टिकोण से बेहद प्रभावशाली मानी जा रही है।