नाबालिग से दुष्कर्म और हत्या के दोषी को नहीं मिलेगी सजा-ए-मौत? जानें क्यों सुप्रीम कोर्ट करेगा पुनर्विचार

सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिग से दुष्कर्म और हत्या के दोषी वसंत संपत दुपारे की मौत की सजा पर दोबारा विचार करने के लिए सहमति दी है। याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि सजा सुनाते समय कोर्ट द्वारा निर्धारित मानदंडों का पालन नहीं किया गया।

Post Published By: Mrinal Pathak
Updated : 27 August 2025, 5:23 PM IST
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New Delhi: नाबालिग से दुष्कर्म और हत्या के मामले में दोषी वसंत संपत दुपारे की मौत की सजा पर सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार के लिए सहमति जताई है। वसंत संपत दुपारे को 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन याचिकाकर्ता ने यह चुनौती दी है कि उस समय निर्धारित मानदंडों का पालन नहीं किया गया। इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ के समक्ष हुई।

क्यों होगा सजा पर पुनर्विचार?

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने याचिकाकर्ता की दलील को स्वीकार करते हुए कहा कि यदि सजा सुनाते समय कोर्ट द्वारा 2022 में तय किए गए सजा संबंधी दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया गया, तो सजा के पुनर्विचार का रास्ता खुला रहेगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मृत्युदंड पाने वाले व्यक्ति को समानता और निष्पक्ष प्रक्रिया के मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता। यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत सभी को प्राप्त है।

नाबालिग से संगीन अपराध

यह मामला 2008 का है, जब नागपुर के वसंत संपत दुपारे ने चार साल की एक बच्ची से दुष्कर्म किया और फिर उसकी हत्या कर दी। अभियोजन पक्ष के अनुसार, दुपारे ने बच्ची को चॉकलेट का लालच देकर उसके साथ अपराध किया और बाद में उसकी पहचान छिपाने के लिए उसका चेहरा बिगाड़ दिया था।

मौत की सजा (Img: Internet)

सजा की पुष्टि और पुनर्विचार याचिका

सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में वसंत संपत दुपारे की सजा को बरकरार रखा था। बाद में उनकी पुनर्विचार याचिका को 2017 में खारिज कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने राज्यपाल और राष्ट्रपति से दया याचिका भी दायर की, जो 2022 और 2023 में निरस्त हो गईं।

न्यायालय ने मामले के लिए निर्देश भेजे

हालांकि, अब सुप्रीम कोर्ट ने सजा के संबंध में 2017 में प्रस्तुत किए गए दृष्टिकोण को फिलहाल खारिज कर दिया है और मामले को उचित दिशा-निर्देशों के लिए मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण के पास भेज दिया है। कोर्ट ने मनोज बनाम मध्य प्रदेश मामले (2022) का हवाला देते हुए कहा कि निचली अदालतों को मृत्युदंड देने से पहले अभियुक्त के मानसिक और मनोवैज्ञानिक परीक्षण की रिपोर्ट प्राप्त करनी चाहिए।

अनुच्छेद 32 के तहत पुनर्विचार का अधिकार

पीठ ने 25 अगस्त को कहा, "भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 इस अदालत को अधिकार देता है कि वह उन मामलों में मृत्युदंड के फैसले को पुनर्विचार करे जहां अभियुक्त को उचित प्रक्रियात्मक सुरक्षा नहीं दी गई।" यह कदम मृत्युदंड से जुड़े मामलों में न्यायिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से उठाया गया है।

 

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  • New Delhi

Published : 
  • 27 August 2025, 5:23 PM IST