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लाल किला ब्लास्ट के सह-आरोपी जासिर बिलाल वानी की वकील से NIA मुख्यालय में मुलाकात की याचिका को दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि आरोपी ट्रायल कोर्ट का कोई लिखित आदेश पेश नहीं कर सका। वानी 10 नवंबर के आत्मघाती विस्फोट मामले में NIA कस्टडी में है।
लाल घेरे में आरोपी जासिर बिलाल वानी
New Delhi: दिल्ली हाई कोर्ट ने लाल किला ब्लास्ट मामले के आरोपी जासिर बिलाल वानी की उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया है, जिसमें उसने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) मुख्यालय में अपने वकील से मुलाकात की अनुमति मांगी थी। अदालत ने स्पष्ट कहा कि आरोपी ट्रायल कोर्ट का कोई ऐसा लिखित आदेश प्रस्तुत नहीं कर सका, जिसमें उसकी अर्जी को खारिज किया गया हो।
यह आदेश शुक्रवार को न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की एकल पीठ ने सुनाया। सुनवाई के दौरान आरोपी के वकील ने दावा किया कि ट्रायल कोर्ट ने उनकी याचिका को मौखिक रूप से खारिज कर दिया था, लेकिन हाई कोर्ट ने कहा कि मौखिक आदेश का कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं होता, इसलिए ऐसी स्थिति में हाई कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकता। अदालत ने टिप्पणी की कि जब तक ट्रायल कोर्ट का कोई आधिकारिक आदेश सामने नहीं आता, तब तक इस प्रकार की याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता।
जसीर बिलाल वानी पर आरोप है कि उसने 10 नवंबर को लाल किला के बाहर हुए आत्मघाती हमले की साजिश में मुख्य आरोपी मोहम्मद उमर का साथ दिया था। इस हमले में 15 लोगों की मौत हो गई थी और कई अन्य घायल हुए थे। घटना के बाद मामले की जांच NIA को सौंपी गई, जिसने आतंकी हमले के कई तकनीकी और साक्ष्य आधारित पहलुओं की जांच शुरू की।
NIA ने वानी को 17 नवंबर को गिरफ्तार किया था। इसके बाद 18 नवंबर को ट्रायल कोर्ट ने उसे 10 दिन की NIA कस्टडी में भेज दिया था, जिससे एजेंसी उससे पूछताछ कर साजिश के पूरे नेटवर्क का पता लगा सके। एजेंसी को संदेह है कि इस हमले से जुड़े कई और लोग अब भी फरार हैं और पूछताछ से उनकी भूमिकाओं का खुलासा संभव है।
सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि जांच एजेंसी के पास यह कानूनी अधिकार है कि वह पूछताछ के दौरान सुरक्षा कारणों से आरोपी की बाहरी लोगों से मुलाकात पर सीमित प्रतिबंध लगा सके। इसलिए जब तक ट्रायल कोर्ट में वकील मुलाकात से जुड़े नियमों पर निर्णय नहीं लेता, तब तक उच्च न्यायालय इस मामले में दखल नहीं दे सकता।
जसिर के वकील ने तर्क दिया कि आरोपी को अपने बचाव की तैयारी के लिए वकील से मिलने का संवैधानिक अधिकार है। हालांकि, अदालत ने कहा कि आरोपी पहले ट्रायल कोर्ट में अपनी मांग को ठीक से प्रस्तुत करे और यदि वहां से कोई प्रतिकूल आदेश जारी होता है, तभी हाई कोर्ट उस पर विचार कर सकता है।