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WHO की नई रिपोर्ट के अनुसार भारत में 30% महिलाएं इंटीमेट पार्टनर वायलेंस का शिकार हुई हैं, जबकि वैश्विक स्तर पर 84 करोड़ महिलाएं पार्टनर द्वारा यौन या अन्य हिंसा झेल चुकी हैं। 2030 तक महिलाओं पर हिंसा समाप्त करने का लक्ष्य फंडिंग की कमी और धीमी प्रगति के कारण मुश्किल दिखाई दे रहा है।
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New Delhi: महिलाओं के खिलाफ हिंसा को लेकर वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) की नई रिपोर्ट ने एक बार फिर चौंकाने वाले आंकड़े सामने रखे हैं। रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 30% महिलाएं इंटीमेट पार्टनर वॉयलेंस (IPV) का शिकार हुई हैं। यानी अपने पति या पार्टनर द्वारा मानसिक, आर्थिक या यौन हिंसा का सामना कर चुकी हैं। यह आंकड़ा बताता है कि घरेलू हिंसा भारत में अब भी एक गंभीर सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य संकट बना हुआ है।
WHO की यह रिपोर्ट 168 देशों के 2000 से 2023 तक के डेटा पर आधारित है। इसमें बताया गया कि भारत में 15 से 49 वर्ष की उम्र की हर पांचवीं महिला किसी न किसी रूप में पार्टनर वायलेंस झेल चुकी है।
वहीं, वैश्विक स्तर पर स्थिति और भी भयावह है- दुनिया भर की लगभग 84 करोड़ महिलाओं ने जीवन में एक बार इंटीमेट पार्टनर की ओर से यौन शोषण या हिंसा का अनुभव किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2000 के बाद से इन आंकड़ों में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ है।
रिपोर्ट में नॉन-पार्टनर वायलेंस पर भी आंकड़े दिए गए हैं। दुनिया में 15-49 साल की उम्र की 8.4% महिलाएं किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा यौन हिंसा का शिकार हुई हैं जो उनका पार्टनर नहीं है। वहीं भारत में यह आंकड़ा लगभग 4% है, यानी देश में हर 25वीं महिला ने कभी न कभी किसी बाहरी व्यक्ति के माध्यम से यौन हिंसा झेली है।
WHO ने यह रिपोर्ट 25 नवंबर को मनाए जाने वाले ‘अंतरराष्ट्रीय दिवस महिलाओं के खिलाफ हिंसा समाप्त करने’ से पहले जारी की है, जिससे इस वैश्विक मुद्दे को लेकर सरकारों, संस्थाओं और समाज तक गंभीर संदेश पहुंचाया जा सके। रिपोर्ट के मुताबिक, महिलाओं पर हिंसा खत्म करने का लक्ष्य 2030 तक हासिल कर लेना अत्यंत मुश्किल है, क्योंकि सुधार की गति बेहद धीमी है।
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चौंकाने वाली बात यह है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा रोकने के लिए दिए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय फंड में भी भारी कमी आई है। रिपोर्ट बताती है कि 2022 में ग्लोबल डेवलेपमेंट रिलीफ फंड का सिर्फ 0.2% हिस्सा ही इस मुद्दे पर काम करने वाले कार्यक्रमों के लिए दिया गया।
वर्ष 2025 में यह फंडिंग और भी कम कर दी गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि फंडिंग में कमी का सीधा असर उन संगठनों और कार्यक्रमों पर पड़ रहा है जो महिलाओं की सुरक्षा, पुनर्वास और कानूनी सहायता के लिए काम करते हैं।