

पंडित छन्नूलाल मिश्र का निधन बनारस के प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीत घराने के लिए बड़ा झटका है। 91 वर्ष की उम्र में उनका जाना एक कलाकार के लिए अपूरणीय क्षति है। अब सवाल यह है कि इस महान परंपरा का अगला वारिस कौन होगा और इसे कैसे बचाया जाए।
पंडित छन्नूलाल मिश्र का निधन
Varanasi/New Delhi: वाराणसी से जुड़े शास्त्रीय संगीत के महान कलाकार पंडित छन्नूलाल मिश्र का निधन 4:15 बजे सुबह हो गया। 91 वर्ष की उम्र में उनका निधन बनारस और पूरे संगीत जगत के लिए गहरा सदमा है। वे लंबे समय से बीमार थे और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में उनका इलाज चल रहा था। उनके जाने से शास्त्रीय संगीत के समृद्ध घराने को बड़ा झटका लगा है, जिससे यह सवाल उठ रहा है कि बनारस के इस महान संगीत घराने का अगला वारिस कौन होगा।
बनारस का संगीत घराना भारतीय शास्त्रीय संगीत की धरोहर में अनमोल माना जाता है। इस घराने की खासियत ठुमरी, दादरा, चैती और भजन जैसे संगीत रूपों में निहित है। पंडित छन्नूलाल मिश्र ने इन संगीत रूपों को न केवल संवारा बल्कि नई ऊंचाइयों तक भी पहुंचाया। उनकी गायकी में भक्ति और शास्त्रीयता का अनोखा मिश्रण था, जिसने विश्व स्तर पर भारतीय संगीत को एक नई पहचान दिलाई। उनकी मधुर और गहरी आवाज में वह मिठास थी जो श्रोताओं के दिलों को छू जाती थी।
पंडित छन्नूलाल मिश्र
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पंडित छन्नूलाल मिश्र के निधन के बाद यह चिंता बढ़ गई है कि बनारस संगीत घराने की परंपरा को आगे कौन ले जाएगा। नए कलाकार आ रहे हैं, लेकिन उनमें पुराने अनुशासन और गहराई की कमी देखी जा रही है। डिजिटल युग में शास्त्रीय संगीत की लोकप्रियता में कमी आई है, वहीं हल्के-फुल्के गीतों का प्रभाव बढ़ रहा है। शास्त्रीय संगीत को संस्थागत समर्थन की भी जरूरत है, जो आज कम होता नजर आ रहा है।
संगीत विशेषज्ञों का मानना है कि शास्त्रीय संगीत की इस विरासत को बचाने के लिए युवा पीढ़ी को न केवल प्रशिक्षण देना होगा, बल्कि उन्हें मंच और अवसर भी प्रदान करने होंगे। इसके साथ ही सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं को मिलकर इस क्षेत्र में ठोस कदम उठाने होंगे। पंडित छन्नूलाल मिश्र का निधन सिर्फ एक कलाकार की क्षति नहीं, बल्कि भारतीय संगीत की उस गहन धरोहर का कमजोर होना है, जिसने सदियों से दुनिया को रस और रागों से मोहित किया है।
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बनारस घराने की परंपरा को बचाना अब सिर्फ संगीतकारों का नहीं, बल्कि पूरे समाज की सामूहिक जिम्मेदारी बन गई है। युवा कलाकारों को बढ़ावा देकर, संगीत की शिक्षा और संरक्षण पर ध्यान देकर ही इस धरोहर को आगे बढ़ाया जा सकता है। पंडित छन्नूलाल मिश्र की विरासत को जीवित रखना हम सबका कर्तव्य है। पंडित छन्नूलाल मिश्र के जाने से बनारस के संगीत घराने के भविष्य को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं।
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