

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के गाजा शांति प्रस्ताव को पहले पाकिस्तान का समर्थन मिला था, लेकिन अब जनता के विरोध के बाद शहबाज सरकार पलटती नजर आ रही है। विदेश मंत्री इशाक डार ने प्रस्ताव को अमेरिकी दस्तावेज बताते हुए उसमें संशोधन की मांग की है।
शहबाज-मुनीर और ट्रंप
New Delhi: डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में गाजा में जारी संघर्ष को समाप्त करने के लिए एक 20-सूत्रीय शांति प्रस्ताव पेश किया, जिसे उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्थायित्व के लिए एक जरूरी कदम बताया। इस प्रस्ताव को शुरूआत में पाकिस्तान की ओर से समर्थन मिला, जिसे खुद ट्रंप ने सार्वजनिक रूप से सराहा और कहा कि पाकिस्तान इस प्रस्ताव को 100 फीसदी समर्थन दे रहा है। लेकिन कुछ ही दिनों में पाकिस्तान की जनता ने इस प्रस्ताव का विरोध करना शुरू कर दिया, क्योंकि इसमें कुछ ऐसे बिंदु थे जो फिलिस्तीन की आज़ादी और संप्रभुता पर सवाल खड़े करते हैं।
शुरुआत में प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और सेना प्रमुख आसिम मुनीर को ट्रंप ने "बेहद सक्रिय और सहयोगी विश्व नेता" करार दिया। ट्रंप ने कहा कि ये दोनों शुरुआत से ही शांति प्रस्ताव को लेकर उत्साहित थे और उन्होंने अमेरिका के साथ पूरा सहयोग दिया। ट्रंप के शब्दों में, "पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और फील्ड मार्शल शुरू से ही हमारे साथ थे, यह अविश्वसनीय है।"
शहबाज-मुनीर और ट्रंप
हालांकि अब पाकिस्तानी न्यूज वेबसाइट 'डॉन' की रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने ट्रंप के प्रस्ताव से खुद को अलग करते हुए इसे "अमेरिका का दस्तावेज" बताया है। डार ने साफ कहा कि हमने जो दस्तावेज भेजा था, यह वह नहीं है। इस प्रस्ताव में कई चीजें हैं जो हम जोड़ना चाहते हैं। अगर वे शामिल नहीं हैं, तो उन्हें जोड़ा जाएगा।
पाकिस्तान में फिलिस्तीन को लेकर जनता की भावनात्मक जुड़ाव बेहद गहरा है। जब ट्रंप के प्रस्ताव में फिलिस्तीन की संप्रभुता को कमजोर करने वाले प्रावधान सामने आए, तो देशभर में विरोध शुरू हो गया। सोशल मीडिया पर #RejectTrumpPeacePlan ट्रेंड करने लगा, धार्मिक और छात्र संगठनों ने प्रदर्शन किए। इसका सीधा असर शहबाज सरकार की नीति पर पड़ा और उसे अपना रुख बदलने पर मजबूर होना पड़ा।
ट्रंप का 20-सूत्रीय गाजा शांति प्रस्ताव एक स्वतंत्र टेक्नोक्रेट सरकार की स्थापना की बात करता है, जिसे एक अंतरराष्ट्रीय निगरानी समिति द्वारा संचालित किया जाएगा। इस समिति में मुख्य रूप से फिलिस्तीनी शामिल होंगे, लेकिन अमेरिका और अन्य वैश्विक शक्तियों की निगरानी में।
इस प्रस्ताव को भारत, चीन, रूस और 8 अन्य अरब व मुस्लिम बहुल देशों से समर्थन मिला है। लेकिन पाकिस्तान जैसे देश का यू-टर्न इस पूरे प्रयास की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर सकता है।
कुछ जानकार मानते हैं कि पाकिस्तान के अंदर ही इस प्रस्ताव को लेकर राजनीतिक मतभेद हैं। एक ओर शहबाज शरीफ अंतरराष्ट्रीय मंच पर अमेरिका के साथ खड़ा होना चाहते हैं, वहीं सेना और जनता फिलिस्तीन के पारंपरिक समर्थन से पीछे हटना नहीं चाहते। विश्लेषकों का कहना है कि यह मामला पाकिस्तान की विदेश नीति में संतुलन की विफलता को दर्शाता है।