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कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय उसवा बाबू में हालात लगातार उलझते जा रहे हैं। गरीब परिवारों की बेटियों के भविष्य से जुड़ा यह संस्थान इन दिनों अव्यवस्थाओं, आरोपों और सवालों की पगडंडी पर खड़ा दिखाई दे रहा है। सोमवार से छात्राओं के साथ कई सहायक शिक्षिकाएं भी छुट्टी पर चली गईं।
गांधी आवासीय विद्यालय
Gorakhpur: गोरखपुर के कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय उसवा बाबू में हालात लगातार उलझते जा रहे हैं। गरीब परिवारों की बेटियों के भविष्य से जुड़ा यह संस्थान इन दिनों अव्यवस्थाओं, आरोपों और सवालों की पगडंडी पर खड़ा दिखाई दे रहा है। सोमवार से छात्राओं के साथ कई सहायक शिक्षिकाएं भी छुट्टी पर चली गईं, जिसके चलते पूरे विद्यालय का संचालन केवल वार्डेन के भरोसे लटका हुआ है। स्थानीय लोगों में इस स्थिति को लेकर गंभीर चिंता और रोष दोनों दिखाई दे रहा है।
विद्यालय में वास्तविक उपस्थिति को लेकर विरोधाभासी दावे सामने आ रहे हैं। स्थानीय सूत्र विद्यालय में मात्र 30 छात्राओं के होने की बात कह रहे हैं, जबकि खंड शिक्षा अधिकारी खजनी सावन दुबे ने स्पष्ट किया कि “वर्तमान में लगभग 50 छात्राएं उपस्थित हैं। कुछ शिक्षिकाएं अवकाश पर हैं, लेकिन गुरुवार तक विद्यालय में उपस्थिति सुनिश्चित हो जाएगी। विद्यालय पूरी तरह शांतिपूर्ण माहौल में संचालित है।”
इस बयान ने यह तो साफ किया कि शिक्षिकाओं की अनुपस्थिति अस्थायी है, लेकिन फिर भी मूल समस्या जस की तस बनी हुई है।
सबसे बड़ा प्रश्न यही खड़ा है कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में शिक्षिकाएं एक साथ छुट्टी पर कैसे चली गईं? क्या यह महज संयोग है या किसी अंदरूनी विवाद की आहट? अभिभावकों का आरोप है कि बच्चियों के मन में लगातार असुरक्षा का माहौल बन रहा है, जिससे कई छात्राएं विद्यालय छोड़ने को मजबूर हो रही हैं। कुछ बच्चे कथित तौर पर किसी प्रकार के मानसिक दबाव के कारण विद्यालय वापस आने में झिझक महसूस कर रहे हैं।
वार्डेन अर्चना पांडेय, जो पिछले 12 वर्ष से विद्यालय की वार्डेन हैं, पर भी सवाल उठने लगे हैं। उनके कार्यकाल में पिछले एक वर्ष से लगातार असंतोष बढ़ने की बातें सामने क्यो आ रही हैं। स्थानीय अभिभावकों का कहना है कि “पिछले वर्ष कुछ छात्राओं ने वार्डेन पर प्रताड़ना के आरोप लगाए थे, जिसके बाद कई बच्चियों को विद्यालय से बाहर कर दिया गया था। लेकिन जांच के नाम पर कुछ भी ठोस नहीं हुआ।”अब जब स्थिति फिर से वैसी ही बनती दिखाई दे रही है, तो लोगों के मन में पुरानी घटनाएँ ताज़ा हो उठी हैं।
वार्डेन ने मीडिया को फोनिक वर्जन में बताया कि “विद्यालय में वर्तमान में 50 छात्राएं हैं। कोर्ट के आदेश पर ज्वाइनिंग हुई है। दो शिक्षिकाएं पहले से छुट्टी पर थीं और दो ज्वाइनिंग के दौरान अवकाश पर चली गई हैं।” उनका यह बयान विवादों को शांत करने का प्रयास जरूर करता है, लेकिन कई मुद्दों के जवाब अब भी हवा में तैर रहे हैं।
स्थानीय जनों का कहना है कि कस्तूरबा विद्यालय जैसे संस्थान गरीब बेटियों की शिक्षा का आधार हैं। यदि यहाँ ही मनमानी, राजनीति और अव्यवस्था हावी होगी, तो नुकसान केवल उन बच्चियों का होगा जिनके भविष्य को सुरक्षित बनाने का दावा सरकार करती है।
अभिभावकों ने शिक्षा विभाग से त्वरित जांच की मांग की है, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि छात्राओं का पलायन क्यों हो रहा है, शिक्षिकाओं की सामूहिक अनुपस्थिति का कारण क्या है, और वार्डेन पर लगने वाले लगातार आरोपों की सच्चाई क्या है। यदि समय रहते स्थिति नियंत्रण में नहीं लाई गई, तो यह विवाद एक बड़े आंदोलन का रूप ले सकता है।