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बांग्लादेश की पूर्व पीएम शेख हसीना को इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल से मौत की सजा मिलने के बाद देश में हिंसा भड़क गई है। निर्वासित लेखिका तसलीमा नसरीन ने सजा को अन्याय बताते हुए विरोध किया, हालांकि उन्होंने हसीना पर देश को बर्बाद करने के गंभीर आरोप भी लगाए।
शेख हसीना को मौत की सजा पर भड़कीं तसलीमा नसरीन (img source: google)
Dhaka: बांग्लादेश में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल द्वारा मानवता के खिलाफ अपराधों में दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुनाए जाने के बाद देश में उथल-पुथल मची है। इस फैसले ने राजनीतिक माहौल को और अधिक गर्मा दिया है। इस बीच निर्वासित लेखिका और हसीना की कड़ी आलोचक तसलीमा नसरीन ने भी इस फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया दी है।
भले ही तसलीमा लंबे समय से हसीना की नीतियों की मुखर विरोधी रही हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि किसी भी नागरिक या विपक्षी पर होने वाले अन्याय का विरोध करना जरूरी है भले ही वह आपका दुश्मन ही क्यों न हो।
एक्स (Twitter) पर लंबा पोस्ट साझा करते हुए तसलीमा नसरीन ने आरोप लगाया कि शेख हसीना के शासन ने बांग्लादेश की सामाजिक और शैक्षिक व्यवस्था को गहरा नुकसान पहुंचाया है। उन्होंने कहा कि हसीना ने अनगिनत मस्जिदें और मदरसे बनवाए, जिन्हें वे जिहादी फैक्ट्रियां मानती हैं।
Even though Sheikh Hasina has built countless mosques and madrasas — in other words, jihadi factories — and ruined the country,
even though she destroyed the education system by making madrasa degrees equivalent to university degrees,
even though she allowed misogynistic…— taslima nasreen (@taslimanasreen) November 18, 2025
तसलीमा के अनुसार, हसीना सरकार ने शिक्षा व्यवस्था को तहस-नहस कर दिया और मदरसा डिग्री को यूनिवर्सिटी डिग्री के बराबर मान लिया, जिससे हालात और बिगड़ गए। उनका यह भी कहना है कि धार्मिक उग्रवादियों को खुली छूट दी गई, जिन्होंने युवाओं का ब्रेनवॉश किया, जबकि स्वतंत्र विचारकों पर बढ़ते जिहादी हमलों के बावजूद सरकार ने उनकी सुरक्षा के लिए कोई कदम नहीं उठाया।
तसलीमा नसरीन ने आरोप लगाया कि 1999 में अपनी बीमार मां से मिलने बांग्लादेश लौटने के कुछ ही महीनों बाद हसीना सरकार ने उन पर ‘धार्मिक भावनाएं आहत करने’ का केस दर्ज करवा दिया और उन्हें दोबारा देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा।
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उन्होंने कहा कि उनका बांग्लादेशी पासपोर्ट कभी रिन्यू नहीं किया गया और विदेशी पासपोर्ट पर भी उन्हें बांग्लादेश का वीजा देने से मना कर दिया गया। तसलीमा का दावा है कि हसीना के आदेश पर दूतावास ने उनके पावर ऑफ अटॉर्नी दस्तावेज़ को अटेस्ट करने से भी इनकार कर दिया, जिससे उन्हें भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा। उन्होंने यह भी बताया कि उनकी पुरस्कार-विजेता आत्मकथा ‘आमार मेयेबेला’ पर भी हसीना सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था।
अपने निजी और वैचारिक मतभेदों के बावजूद तसलीमा नसरीन ने कहा कि शेख हसीना पर फर्जी मुकदमे दर्ज करना और उन्हें मौत की सजा सुनाना गलत है। उन्होंने लिखा, “इतने अत्याचार झेलने के बाद भी मैं अन्याय के खिलाफ खड़ी हूं। चाहे अन्याय दुश्मन के साथ ही क्यों न हो, उसका विरोध जरूरी है।”
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