

उत्तराखंड के आपदाग्रस्त क्षेत्रों में हाल ही हुई तबाही के बाद शासन ने बड़े फैसले लिए हैं। वैज्ञानिकों की रिपोर्ट जल्द आने वाली है, जो तय करेगी आगे क्या कदम होंगे। वहीं नदियों और पहाड़ियों की हालत जानकर आप सब चौंक जाएंगे, क्या हालत हैं जानने के लिए बने रहें।
उत्तराखंड में भूस्खलन से भारी नुकसान (सोर्स- गूगल)
Nainital: उत्तराखंड में हाल ही में हुए भूस्खलन और भू धंसाव ने नदियों सहित आसपास के क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर गंभीर ढांचागत नुकसान पहुंचाया है। इस आपदा ने न केवल पर्यावरण को प्रभावित किया है, बल्कि हजारों लोगों की जिंदगी और प्रदेश की आर्थिक गतिविधियों पर भी असर डाला है। ऐसे में प्रशासन ने आपदा प्रभावित इलाकों के उपचार कार्यों को लेकर वैज्ञानिक अध्ययन को प्राथमिकता दी है।
शासन ने उत्तरकाशी, नैनीताल और चमोली जिलों में विशेषज्ञ संस्थानों के माध्यम से वैज्ञानिक अध्ययन कराने का निर्णय लिया है। सिंचाई विभाग की ओर से भी विशेषज्ञों की रिपोर्ट के बाद नदियों के चैनलाइजेशन सहित अन्य उपचार कार्यों की डीपीआर (डिज़ाइन पेपर रिपोर्ट) तैयार की जाएगी।
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नैनीताल की प्रसिद्ध झील और माल रोड के आसपास की पहाड़ियों की सुरक्षा के लिए भी वैज्ञानिक अध्ययन जारी है। यहां की कमजोर और संवेदनशील भू-स्थिति को देखते हुए, विशेषज्ञ भूवैज्ञानिक टीम ने माल रोड के धंसाव और आसपास के क्षेत्र का निरीक्षण किया है। रिपोर्ट आने के बाद ही स्थायी और टिकाऊ ट्रीटमेंट किया जाएगा।
नैनीताल पहुंचे सिंचाई सचिव युगल किशोर पंत ने बताया कि इस बार आई आपदा से नदियों को भी गंभीर नुकसान हुआ है। नदियों में गाद और सील्ट जम गया है, जिससे नदी का प्राकृतिक चैनल बदल गया है। नदी के सही मार्ग को पुनः स्थापित करने के लिए आईआईटी रुड़की, एफआरआइ, एनआइएच और अन्य विशेषज्ञ संस्थानों के माध्यम से गहन अध्ययन किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि जिला स्तर पर जनप्रतिनिधियों से प्रस्ताव प्राप्त किए जा रहे हैं, जिनका परीक्षण कर योजनाएं बनाई जाएंगी। सिंचाई नहरों को हुए नुकसान का भी आंकलन किया जा रहा है।
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नैनीताल के प्रसिद्ध भू विज्ञानी प्रोफेसर सीसी पंत ने स्पष्ट कहा है कि नैनीताल की धारण क्षमता समाप्त हो चुकी है। उनके अनुसार, सरकार को नैनीताल से 20-25 किलोमीटर दूर पहाड़पानी, मोरनौला जैसे इलाकों में नया स्मार्ट शहर बसाना चाहिए।
प्रो. पंत ने बताया कि नैनीताल का सात नंबर क्षेत्र भूगर्भीय दृष्टि से बेहद संवेदनशील है। चट्टानें कमजोर हैं और यह क्षेत्र भूस्खलन के प्रति अतिसंवेदनशील है। इस वजह से उचित ड्रेनेज सिस्टम बेहद जरूरी है। माल रोड सहित ऊपरी पहाड़ियां खिसक रही हैं और नयना पीक पहाड़ी से दस से अधिक झरने बह रहे हैं, जो इस क्षेत्र की संवेदनशीलता को दर्शाता है।