

उत्तराखंड में एक महत्वपूर्ण शैक्षिक पहल की शुरुआत होने वाली है, जो राज्य की शिक्षा व्यवस्था को नई दिशा देने के लिए तैयार है। जुलाई 2026 तक यह नीति लागू हो जाएगी। लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर क्या है वो बदलाव और इसका क्या उद्देश्य है?
सीएम पुष्कर सिंह धामी का बड़ा फैसला (सोर्स- गूगल)
Dehradun: उत्तराखंड के राज्यपाल, लेफ्टिनेंट जनरल गुरमित सिंह (सेवानिवृत्त) ने राज्य में अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक को मंजूरी दे दी है। इस विधेयक के तहत राज्य में संचालित सभी मदरसों को उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण से मान्यता प्राप्त करनी होगी और उत्तराखंड स्कूल शिक्षा बोर्ड से सम्बद्ध होना पड़ेगा।
इसके परिणामस्वरूप मदरसा बोर्ड की समाप्ति की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इस कदम को राज्य के अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली में एकीकृत करने की दिशा में एक अहम पहल माना जा रहा है।
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मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस निर्णय को राज्य में एक समान और आधुनिक शिक्षा प्रणाली बनाने के लिए ऐतिहासिक कदम बताया है। उन्होंने यह घोषणा भी की कि जुलाई 2026 के शैक्षिक सत्र से सभी अल्पसंख्यक स्कूल जो अब तक अपने तौर-तरीकों पर काम कर रहे थे, अब वह राष्ट्रीय पाठ्यक्रम फ्रेमवर्क (NCF) और नई शिक्षा नीति (NEP 2020) को अपनाएंगे। यह कदम राज्य में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार और समानता सुनिश्चित करेगा।
राज्यपाल द्वारा विधेयक पर हस्ताक्षर करने से पहले राज्य सरकार ने अल्पसंख्यक समुदायों के विभिन्न प्रतिनिधियों से व्यापक चर्चा की थी। इस चर्चा में सिख, मुस्लिम, जैन, ईसाई, बौद्ध और अन्य धर्मों के लोग शामिल थे। इन समुदायों के प्रतिनिधियों से विचार-विमर्श करने के बाद ही विधेयक को अंतिम रूप दिया गया। राज्यपाल के अनुमोदन के बाद, अब यह विधेयक लागू किया जाएगा, जिससे मदरसा बोर्ड की समाप्ति की प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू हो जाएगी।
मदरसा बोर्ड समाप्त (सोर्स- गूगल)
इस विधेयक के लागू होने के बाद, राज्य के सभी अल्पसंख्यक स्कूल अब राष्ट्रीय पाठ्यक्रम और नई शिक्षा नीति के दायरे में आएंगे। राज्य सरकार का मानना है कि इस कदम से सभी संस्थाओं में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा और वे मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली से जुड़ेंगे।
उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन जाएगा, जहां मदरसा बोर्ड को समाप्त कर सभी अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली से जोड़ा जाएगा। यह कदम न केवल शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव लेकर आएगा, बल्कि यह राज्य में समाज के विभिन्न वर्गों के बीच बेहतर समरसता और एकता को भी बढ़ावा देगा।
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उत्तराखंड के इस निर्णय से उम्मीद जताई जा रही है कि राज्य में सभी बच्चों को समान शिक्षा का अवसर मिलेगा, चाहे वे किसी भी धर्म या पंथ से संबंध रखते हों। इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित होगा कि किसी भी धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चों को शिक्षा के स्तर पर भेदभाव का सामना न करना पड़े।