मिट्टी में सना उत्सव… जिसमें दिखती है खेती, पिथौरागढ़ की अनोखी हिलजात्रा, जानें इस त्योहार की खासियत

पिथौरागढ़ की हिलजात्रा एक अनूठा लोक उत्सव है, जिसमें ग्रामीण कीचड़ में मुखौटे पहनकर नृत्य करते हैं। यह त्योहार खेती, वर्षा और लोकपौराणिक कथाओं से जुड़ा है और शिव गण लखिया भूत की पूजा की जाती है।

Post Published By: Tanya Chand
Updated : 7 September 2025, 4:33 PM IST
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Pithoragarh: उत्तराखंड की सांस्कृतिक विविधता और लोक परंपराओं की बात हो तो हिलजात्रा का नाम विशेष रूप से लिया जाता है। यह ऐसा उत्सव है, जो शायद भारत में और कहीं देखने को नहीं मिलता। यह अनोखा त्योहार केवल पिथौरागढ़ जनपद के कुमौड़ गाँव में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है और इसकी लोकप्रियता धीरे-धीरे पूरे सोर घाटी में फैल चुकी है।

हिलजात्रा दो शब्दों से मिलकर बना है हिल यानी कीचड़ और जात्रा यानी समूह नृत्य या लोकउत्सव। यह उत्सव मुख्य रूप से कृषि और वर्षा ऋतु से जुड़ा हुआ होता है और इसमें अद्भुत मुखौटों के साथ भूत, पालतू पशु और पौराणिक पात्रों की झांकियां दिखाई जाती हैं।

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पारंपरिक नृत्य और मुखौटों में छुपा है समाज का संदेश

हिलजात्रा में भाग लेने वाले ग्रामीण कीचड़ से भरे खेतों में पारंपरिक नृत्य करते हैं। वे अपने शरीर पर मिट्टी मलकर, रंग-बिरंगे मुखौटे पहनकर ऐसे पात्रों का अभिनय करते हैं, जो समाज, कृषि, पशुपालन और लोकजीवन का प्रतिनिधित्व करते हैं। खास बात यह है कि यह सब *बिल्कुल कीचड़ में किया जाता है मानो प्रकृति और संस्कृति का मिलन हो रहा हो।

मुख्य पात्रों में 'लखिया भूत' सबसे चर्चित होता है, जिसे भगवान शिव के गण के रूप में पूजा जाता है। उसे खेतों की रक्षा करने वाला, फसलों को रोग और आपदा से बचाने वाला देवता माना जाता है।

पश्चिम नेपाल से आया पिथौरागढ़ तक यह अद्भुत उत्सव

हिलजात्रा की जड़ें कहीं न कहीं पश्चिमी नेपाल की परंपराओं से जुड़ी हुई मानी जाती हैं। ऐसा कहा जाता है कि यह त्योहार सदियों पहले नेपाल से पिथौरागढ़ की सोर घाटी में आया और फिर विशेष रूप से कुमौड़ गांव में इसे धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्त्व मिला। आज भी यह परंपरा मूल रूप में संरक्षित है। आधुनिकता के इस दौर में जहां बहुत सी लोकसंस्कृतियाँ विलुप्त हो रही हैं, वहीं हिलजात्रा जैसे उत्सव अपनी मौलिकता के साथ जीवित हैं और अगली पीढ़ियों को अपनी संस्कृति से जोड़ रहे हैं।

रोपाई, आस्था और लोकजीवन का प्रतीक

हिलजात्रा सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि लोकजीवन का उत्सव है। यह उस समय मनाया जाता है जब खेतों में रोपाई का कार्य चरम पर होता है। ग्रामीणों की यह मान्यता है कि हिलजात्रा का आयोजन वर्षा को आकर्षित करता है, फसलों को समृद्ध करता है और गांव को आपदाओं से बचाता है। इस त्योहार में अभिनय, संगीत, वाद्ययंत्रों, मुखौटों और लोकनाट्य का ऐसा समावेश होता है, जो किसी भी बाहरी व्यक्ति को मंत्रमुग्ध कर देता है।

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हिलजात्रा: एकता, मनोरंजन और श्रद्धा का संगम

हिलजात्रा न केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि यह*ग्राम्य जीवन की एकता, सहयोग और सामूहिकता का भी प्रतीक है। कीचड़ में नाचते ग्रामीण यह संदेश देते हैं कि चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों, संघर्ष और सहयोग से हर कठिनाई पार की जा सकती है।

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