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रुद्रप्रयाग के ढिंगनी गांव में 70 वर्षीय बिमला देवी अकेली जीवन जी रही हैं। गांव में सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा की कमी के कारण लोग पलायन कर चुके हैं। बिमला देवी और गांववाले जंगली जानवरों के खौफ के बीच जीने को मजबूर हैं।
70 वर्षीय बिमला देवी का संघर्ष
Rudraprayag: रुद्रप्रयाग जिले के अगस्त्यमुनि विकास खंड में स्थित ढिंगनी गांव आज एक दर्दनाक तस्वीर पेश कर रहा है। जहां 15-20 परिवार कभी सुख-शांति से रहते थे, वही आज 70 वर्षीय बिमला देवी अकेली इस गांव में जीवन जीने को मजबूर हैं। इस गांव का अब लगभग पूरा पलायन हो चुका है और लोग सुविधाओं के अभाव में शहरों की ओर रुख कर चुके हैं। यह एक ऐसा गांव है जहां आज भी सड़कों की कमी, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का घोर अभाव है।
कभी यह गांव खुशहाली से भरा हुआ था, लेकिन अब यह जंगलों के बीच एक वीरान सा स्थान बनकर रह गया है। बिमला देवी जैसे लोग, जो अपने गांव में पूरी जिंदगी जी चुके हैं, आज भी सड़कों, स्वास्थ्य केंद्रों और शिक्षा की सुविधाओं के लिए उम्मीद लगाए बैठे हैं। लेकिन अब तक सरकार की उदासीनता ने इस गांव को सिसकते हुए छोड़ दिया है।
ढिंगनी गांव में दो-तीन दशक पहले तक हरियाली और खुशहाली का आलम था। घरों के आंगन में गोशालाएं, पशुधन और खेती-बाड़ी की समृद्धि थी। लोग जीवन में खुशहाल थे, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, यह गांव सुविधाओं के अभाव में तंग होता गया। सड़कों की कमी के कारण लोग इस गांव को छोड़ने लगे।
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स्थानीय लोगों का कहना है कि सड़क निर्माण का वादा कई बार हुआ, लेकिन 78 साल बाद भी यह गांव सड़क से नहीं जुड़ सका। सरकारें बदलती रहीं, लेकिन ढिंगनी गांव की स्थिति जस की तस रही। शिक्षा और स्वास्थ्य की कोई सुविधा नहीं थी, और फिर परिवारों ने शहरों की ओर रुख किया। आज बिमला देवी जैसी महिलाएं इस गांव में अकेली रह गई हैं, जिनकी ज़िंदगी जंगलों और जंगली जानवरों के साए में गुजर रही है।
बिमला देवी ने अपनी पीड़ा साझा करते हुए कहा, “मेरे बच्चे तो शहर में रहते हैं, लेकिन मेरा दिल यहीं बसता है। जब भी बीमार होती हूं, मुझे कोई नहीं देखता। अस्पताल यहां से चार किलोमीटर दूर है और आने-जाने के रास्ते भी नहीं हैं। यहाँ जंगलों के बीच रहने का डर भी हमेशा सताता है, क्योंकि दिन-रात भालू और गुलदार जैसे जंगली जानवरों का आतंक बना रहता है।”
सड़क और सुविधाओं की कमी में अकेला जीवन
बिमला देवी की जैसी स्थिति में न सिर्फ वह अकेली महिला हैं, बल्कि अन्य गांववाले भी दिन-रात इस डर में जीते हैं। गांव के निवासी लक्ष्मण सिंह रौथाण और कलम सिंह चौधरी ने बताया कि अब गांव में चारों ओर भालू और गुलदार का आतंक है। अगर कोई जंगल के रास्ते से आता है, तो उसे डर का सामना करना पड़ता है। ऐसे में बिमला देवी का अकेला रहना और भी मुश्किल हो जाता है। पीटूसी निवासी हरेन्द्र नेगी ने भी कहा, “हम सब जानते हैं कि बिना सड़क के यहां जीवन जीना मुश्किल है। बच्चों को शहर भेज दिया है, लेकिन मेरी मां अब भी यहीं रहती हैं। कोई उनकी मदद करने के लिए नहीं आता।”
सड़क की कमी और जंगली जानवरों का खौफ गांव के लोगों के लिए बड़ी समस्या बन गई है। बिमला देवी और अन्य गांववाले चाहते हैं कि सरकार इस गांव की समस्याओं को समझे और यहां की जनता के लिए सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराए। इस समय बिमला देवी के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती है कि वह कैसे अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करें और एक जंगली इलाके में अकेले जीने का साहस रखें।
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बिमला देवी ने कहा, “मेरे बच्चे मुझे शहर बुलाते हैं, लेकिन मुझे अपना गांव छोड़ना नहीं है। मेरा दिल यहीं लगता है। यहां अकेले रहकर मैं डर के साए में जीवन जी रही हूं। अगर कोई सुविधा होती, तो शायद जीवन थोड़ा आसान होता। लेकिन क्या करूं, मेरी किस्मत में यही लिखा है।” इस गांव के अधिकांश लोग अब शहरों में बस गए हैं, लेकिन बिमला देवी जैसे लोग आज भी अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं। यह तस्वीर न केवल ढिंगनी गांव की है, बल्कि देश के कई दूरदराज इलाकों की है, जहां बुनियादी सुविधाओं की कमी आज भी एक बड़ा मुद्दा है।