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मऊ विधानसभा सीट पर प्रस्तावित उपचुनाव से पहले समाजवादी पार्टी ने बड़ा फैसला लिया है। अखिलेश यादव ने दिवंगत विधायक सुधाकर सिंह के बेटे सुजीत सिंह को पार्टी का उम्मीदवार घोषित कर दिया है, जिससे पूर्वांचल की राजनीति में हलचल तेज हो गई है।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव
Mau: पूर्वांचल की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। मऊ विधानसभा सीट को लेकर सियासी सरगर्मी उस वक्त बढ़ गई, जब समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उपचुनाव से पहले ही बड़ा एलान कर दिया। जिस सीट पर अभी चुनाव आयोग ने तारीखों का ऐलान तक नहीं किया, वहां सपा ने अपना पत्ता खोलते हुए उम्मीदवार घोषित कर दिया है। यह सीट सपा विधायक सुधाकर सिंह के निधन के बाद खाली हुई है और अब पार्टी ने उनके बेटे सुजीत सिंह को मैदान में उतारने का फैसला किया है।
मऊ विधानसभा सीट पर उपचुनाव इसलिए प्रस्तावित है क्योंकि यहां से विधायक रहे सुधाकर सिंह का 20 नवंबर को बीमारी के चलते निधन हो गया था। उनके निधन के बाद यह सीट रिक्त हो गई। सुधाकर सिंह पूर्वांचल की राजनीति में मजबूत पकड़ रखने वाले नेता माने जाते थे और उनकी गिनती सपा के प्रभावशाली विधायकों में होती थी। उनके अचानक चले जाने से न सिर्फ पार्टी को झटका लगा, बल्कि मऊ की राजनीति में भी बड़ा खालीपन पैदा हो गया।
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सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस खालीपन को भरने के लिए राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने का फैसला किया है। उन्होंने सुधाकर सिंह के बेटे सुजीत सिंह को पार्टी का आधिकारिक उम्मीदवार घोषित कर दिया है। अखिलेश का यह कदम साफ तौर पर यह संकेत देता है कि पार्टी इस सीट पर भावनात्मक और संगठनात्मक दोनों समीकरणों को साधना चाहती है। हालांकि अभी तक चुनाव आयोग की ओर से उपचुनाव की तारीखों की घोषणा नहीं की गई है।
गौरतलब है कि यह वही इलाका है जहां घोसी उपचुनाव में सपा ने बड़ी जीत दर्ज की थी। समाजवादी पार्टी से भाजपा में शामिल हुए दारा सिंह चौहान के इस्तीफे के बाद हुए घोसी उपचुनाव में सुधाकर सिंह ने जीत हासिल की थी। अब उनके निधन के बाद एक बार फिर यह सीट सपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है।
सुजीत सिंह कोई नया चेहरा नहीं हैं। वह वर्ष 2015 में मऊ के घोसी क्षेत्र से ब्लॉक प्रमुख चुने गए थे। इसके साथ ही उन्हें ब्लॉक प्रमुख संघ का जिलाध्यक्ष भी बनाया गया था। संगठन और क्षेत्र में उनकी सक्रियता को देखते हुए पार्टी ने उन पर भरोसा जताया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि उपचुनाव में जनता इस राजनीतिक विरासत को कितना समर्थन देती है।