Sharadiya Navratri 2025: फरेंदा में मां लेहड़ा देवी मंदिर में श्रद्धालुओं का उमड़ा सैलाब, गाजे-बाजे के साथ भक्तों ने किए दर्शन

शारदीय नवरात्रि के पहले दिन महराजगंज जिले के फरेंदा क्षेत्र स्थित शक्तिपीठ मां लेहड़ा देवी मंदिर में भक्तों का भारी हुजूम उमड़ पड़ा। गाजे-बाजे के साथ श्रद्धालुओं ने मां के दर्शन कर आशीर्वाद लिया।

Post Published By: Nidhi Kushwaha
Updated : 22 September 2025, 11:06 AM IST
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Pharenda: महाराजगंज जिले के फरेंदा क्षेत्र स्थित शक्तिपीठ मां लेहड़ा देवी मंदिर में शारदीय नवरात्रि के पहले दिन भक्तों का भारी तांता लगा हुआ है। शारदीय नवरात्रि के पहले दिन सुबह से ही श्रद्धालु मां दुर्गा के दर्शन करने के लिए मंदिर में पहुंच रहे हैं और गाजे-बाजे के साथ पूजा-अर्चना की। इस मौके पर दूर-दूर से आए भक्तों का उत्साह देखने लायक है।

दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु

स्थानीय लोगों के मुताबिक मां लेहड़ा देवी मंदिर की ऐसी मान्यता है कि यहां दर्शन मात्र से ही मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। यही वजह है कि दूर-दूर से श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं। मां लेहड़ा देवी मंदिर आज भी लोगों की आस्था का केन्द्र बना हुआ है।

पूरे साल लगा रहता है श्रद्धालुओं का तांता

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता ने जब मंदिर महंत ओम प्रकाश पाण्डेय से बात की तो उनका कहना है कि भक्तों की मां लेहड़ा देवी मंदिर में बहुत आस्था और विश्वास है। यहां सिर्फ शारदीय नवरात्रि, चैत्र नवरात्रि पर ही नहीं बल्कि पूरे साल ऐसे ही भक्तों का तांता लगा रहता है। ऐसी मान्यता है कि यहां दर्शन करने से लोगों के दुःख दूर हो जातें हैं। साथ ही मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। यही वजह है कि यहां घंटों बीत जाने के बाद भी भक्त माता के दर्शन के लिए लाइन में खड़े होकर इंतजार करते हैं।

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नवरात्रि के अवसर पर यहां मेले का भी आयोजन किया जाता है,जहां से लोग अपनी जरूरत का सामान खरीदते हैं।

Crowds of devotees gathered for darshan

दर्शन के लिए लगी श्रद्धालुओं की भीड़

ये हैं मंदिर की पौराणिक कथा

फरेन्दा तहसील मुख्यालय से आठ किमी दूर स्थित लेहड़ा देवी मंदिर के संबंध में कई किवदंतियां है। पौराणिक मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापना पांडवों ने अज्ञातवास के समय की थी। उस समय द्रौपदी ने मां से आंचल फैलाकर आशीर्वाद मांगा था, जिससे उन्हें विजयी होने का आशीर्वाद प्राप्त हुआ था। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि धर्मराज युधिष्ठिर ने इसी स्थान पर यक्ष के प्रश्नों का सही उत्तर देकर अपने चारों भाइयों को पुनर्जीवित किया था। बाद में पांचों भाइयों ने यहां पीठ की स्थापना कर पूजा अर्चना शुरू की थी।

चीनी यात्री ने किया उल्लेख

वहीं अगर बात करें ऐतिहासिक तथ्यों की तो चीनी यात्री ह्वेन सांग ने भी अपने यात्रा वृत्तांत में इस देवी स्थल का उल्लेख किया है। गौतम बुद्ध की माता माया देवी कोलिय गणराज्य की कन्या थीं। बुद्ध का बाल्यकाल इन्हीं क्षेत्रों में व्यतीत हुआ।

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अंग्रेजों ने किया था हमला

बुजुर्गों की मानें तो एक दिन लेहड़ा स्थित सैन्य छावनी के अधिकारी (लगड़ा साहब) शिकार खेलते हुए मंदिर परिसर में पहुंच गए। यहां पर भक्तों की भीड़ देख कर उन्होंने देवी की पिण्डी पर गोलियों की बौछार शुरू कर दी। कुछ ही देर में वहां खून की धारा बहने लगी। खून देख कर भयभीत अंग्रेज अफसर वापस कोठी की तरफ आ रहे थे कि घोड़े सहित उनकी मृत्यु हो गई। उस अंग्रेज अफसर की कब्र मंदिर के एक किमी पश्चिम में स्थित है। इस घटना के बाद लोगों की आस्था लेहड़ा देवी के प्रति और बढ़ गई।

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