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उत्तर प्रदेश में कोडीनयुक्त कफ सिरप की जालसाजी की जांच में तेजी से काम हो रहा था, लेकिन अब विभाग की कार्रवाई में काफी धीमी रफ्तार देखने को मिल रही है। 42 फर्मों पर प्राथमिकी दर्ज की गई है, लेकिन अभी तक केवल 12 फर्मों का लाइसेंस निरस्त किया जा सका है।
कफ सिरप केस
Varanasi: कोडीनयुक्त कफ सिरप की जालसाजी मामले की जांच अक्तूबर से शुरू हुई थी और शुरूआत में कार्रवाई की रफ्तार बहुत तेज थी। लेकिन अब ढाई माह बाद यह जांच अपेक्षाकृत धीमी हो गई है। ड्रग विभाग ने इस मामले में 42 फर्मों पर प्राथमिकी दर्ज करवाई है, लेकिन अब तक सिर्फ 12 फर्मों का लाइसेंस निरस्त किया गया है। इस स्थिति ने उन सभी अधिकारियों और नागरिकों को चिंतित किया है, जो जालसाजी में शामिल लोगों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई की उम्मीद कर रहे थे।
जांच की शुरुआत वाराणसी से हुई थी, लेकिन अब यह गोरखपुर, प्रयागराज और पूर्वांचल के अन्य जिलों तक फैल चुकी है। वाराणसी में विशेष रूप से बड़ी संख्या में कोडीनयुक्त कफ सिरप की खरीद-बिक्री की जालसाजी की गई। हैरान करने वाली बात यह है कि इन फर्मों ने कागज पर फर्म बना कर कफ सिरप की आपूर्ति की, लेकिन किसी ने भी यह साबित नहीं किया कि सिरप को वास्तव में बेचा गया था। झारखंड के रांची से कफ सिरप मंगाए गए थे, और यह एक बड़ा धोखाधड़ी का मामला बन चुका है।
जांच को लेकर गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि खुद लखनऊ से खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन की आयुक्त रौशन जैकब वाराणसी तक पहुंची थीं। उनके नेतृत्व में नवंबर के अंत में एडिशनल कमिश्नर रेखा एस चौहान ने 28 फर्मों के खिलाफ जांच शुरू की थी, जिससे यह मामला और भी खुलासा हुआ। हालांकि, अब तक जो कार्रवाई की गई है, उसमें बहुत अधिक बदलाव नहीं हुआ है। कई फर्मों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज होने के बावजूद, उनका लाइसेंस निरस्त करना एक लंबी प्रक्रिया बन चुकी है।
जांच की रफ्तार धीमी हो जाने के बाद, अधिकारियों के खिलाफ कई सवाल उठने लगे हैं। अब तक 30 फर्मों का लाइसेंस निरस्त नहीं किया जा सका है, जबकि जांच में इनकी जालसाजी की पुष्टि हो चुकी है। जुनाब अली, जो कि ड्रग इंस्पेक्टर हैं, उन्होंने कहा, "जांच की प्रक्रिया तेजी से चल रही है। अधिकारियों के आदेश पर कार्रवाई की जाएगी," लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि कब कार्रवाई की जाएगी, इस पर कोई स्पष्ट समय सीमा नहीं दी जा सकती।
जांच में सबसे चौंकाने वाली बात यह सामने आई है कि कुछ फर्मों ने केवल कागजों पर फर्म बनाकर कोडीनयुक्त कफ सिरप की आपूर्ति की थी। इन फर्मों ने बिना किसी वास्तविक वितरण के सिरप का विक्रय किया, और इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिला कि सिरप वाकई में खरीदी या बेची गई थी। यह जांच के लिए एक गंभीर संकेत है कि धोखाधड़ी और जालसाजी के अन्य मामलों को भी अब सामने लाना होगा।
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यह स्थिति अब कई सवाल खड़े कर रही है कि जांच में तेजी क्यों नहीं आई और अधिकारी इस मामले को गंभीरता से क्यों नहीं ले रहे हैं। स्थानीय अधिकारियों का दावा है कि वे कार्रवाई कर रहे हैं, लेकिन कार्रवाई की गति बहुत धीमी है। इसके कारण फर्मों की बढ़ती संख्या के खिलाफ आरोपित व्यक्ति आज भी खुले में घूम रहे हैं, जबकि उन्हें तत्काल गिरफ्तार करने की जरूरत है।
कुछ आरोपियों को तत्काल गिरफ्तार किया जा सकता था, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। अब जबकि जांच की दिशा स्पष्ट हो चुकी है, फिर भी यह देखा जा रहा है कि आरोपियों को लेकर कार्रवाई में देरी हो रही है। इस देरी के कारण यह सवाल उठता है कि क्या विभाग या प्रशासनिक अधिकारी इस मामले को दबाना चाहते हैं, या फिर यह मामला सिस्टम की कमजोरियों को उजागर करता है?