

काशी विश्वनाथ मंदिर से हटाए गए आचार्य डॉ. देवी प्रसाद द्विवेदी को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बहाल कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि पूजा में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए और उन्हें पूर्ववत सम्मान मिले।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के साथ आचार्य डॉ. द्विवेदी
Varanasi: काशी विश्वनाथ मंदिर के आचार्य डॉ. देवी प्रसाद द्विवेदी को सेवा से हटाए जाने के निर्णय को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है। न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की एकल पीठ ने स्पष्ट किया कि आचार्य की पूजा-अर्चना में कोई बाधा नहीं आनी चाहिए और उन्हें पूर्ववत सम्मान प्राप्त होना चाहिए। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि यदि वे चाहें तो सहायक रख सकते हैं। इस फैसले पर डॉ. द्विवेदी ने कहा, "मैं बाबा विश्वनाथ की सेवा में लौटने को तैयार हूं। कोर्ट ने जो सम्मान लौटाया है, उसके लिए मैं आभारी हूं।"
विवाद की शुरुआत कहां से हुई?
डॉ. द्विवेदी का कहना है कि विवाद की जड़ एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी से टकराव है। यह अधिकारी शिवरात्रि के दिन भगवान विश्वनाथ का सरसों के तेल से अभिषेक करना चाहता था, जिसे डॉ. द्विवेदी ने परंपरा और स्थिति को देखते हुए रोक दिया। उस दिन मंदिर में भारी भीड़ थी। अधिकारियों ने उनसे कहा था कि "आप आचार्य हैं, आप ही समझाइए।" लेकिन समझाने पर वह अधिकारी नाराज़ हो गया और कथित रूप से आचार्य को हटाने की सिफारिश की।
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फिर मामला हाईकोर्ट पहुंचा
इसके बाद आचार्य को मंदिर सेवा से हटा दिया गया। डॉ. द्विवेदी ने बताया कि मुख्य कार्यपालक अधिकारी पर भी तबादले का दबाव बनाया गया और उसी दिन उन्हें सेवा से हटा दिया गया। जब मंदिर कॉरिडोर बना, तब कुछ बातों का विरोध करने पर ट्रस्ट ने बैठक बुलाकर उम्र का हवाला देकर उन्हें सेवा से हटा दिया गया। हटाए जाने के बाद डॉ. द्विवेदी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की। कोर्ट ने आदेश पर स्टे (स्थगन) लगा दिया। अब कोर्ट ने अंतिम निर्णय में उनके हटाने को पूर्वाग्रह से ग्रसित मानते हुए निरस्त कर दिया है।
कोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने साफ किया कि आचार्य कोई पद नहीं बल्कि परंपरागत दायित्व है। 60 वर्ष से अधिक आयु कोई अड़चन नहीं है। ऐसे कोई नियम नहीं हैं कि वृद्ध व्यक्ति पूजा नहीं कर सकता। डॉ. द्विवेदी की तुलना मंदिर के कर्मचारियों से नहीं की जा सकती। उन्हें पूर्व की भांति पूजा-अर्चना का अधिकार और सम्मान मिले। कोई भी कार्यवाही जिससे उनकी सेवा या प्रतिष्ठा को नुकसान हो, प्रतिबंधित की जाए। मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी विश्व भूषण मिश्र ने कहा कि अभी कोर्ट के आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त नहीं हुई है। मिलते ही आदेश का पालन सम्मानपूर्वक किया जाएगा।
कौन हैं डॉ. देवी प्रसाद द्विवेदी?
पद्म भूषण (2017) और पद्म श्री (2011) से सम्मानित। संस्कृत भाषा के मनीषी, सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे। प्रधानमंत्री मोदी के "स्वच्छता अभियान" के 9 रत्नों में से एक। यूपी लोक सेवा आयोग के सदस्य भी रह चुके हैं।