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गोरखपुर के शहीद अशफाक उल्ला खां प्राणी उद्यान में कुछ महीनों के भीतर सात बड़े जानवरों की रहस्यमयी मौतों से हड़कंप मच गया है। हाल ही में बाघिन मेलानी की मृत्यु के बाद चिड़ियाघर प्रबंधन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठे हैं।
गोरखपुर चिड़ियाघर में बाघिन की मौत
Gorakhpur: कभी बच्चों और पर्यटकों की पसंदीदा जगह रहा गोरखपुर का शहीद अशफाक उल्ला खां प्राणी उद्यान आज अपनी बदहाल व्यवस्थाओं और जानवरों की लगातार हो रही मौतों के कारण सुर्खियों में है। बीते कुछ महीनों में सात बड़े वन्य जीवों की मौत ने न केवल प्रबंधन पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि वन्यजीव संरक्षण की दिशा में प्रदेश सरकार के दावों की सच्चाई भी उजागर कर दी है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, बुधवार को चिड़ियाघर में बाघिन मेलानी की मौत ने पूरे स्टाफ को झकझोर कर रख दिया। मेलानी की मृत्यु के बाद कर्मचारियों ने शोकसभा आयोजित कर श्रद्धांजलि दी, लेकिन यह कोई पहली घटना नहीं थी। इस साल की शुरुआत से लेकर अब तक कई दुर्लभ प्रजातियों के जानवरों की असमय मौतें हो चुकी हैं।
मार्च में पीलीभीत से रेस्क्यू कर लाए गए बाघ केसरी की रहस्यमयी मौत के बाद 5 मई को मादा भेड़िया भैरवी ने दम तोड़ दिया। उसके ठीक दो दिन बाद 7 मई को बाघिन शक्ति और 8 मई को तेंदुआ मोना की मौत ने सबको चौंका दिया। 23 मई को कॉकटेल पक्षी की जान चली गई, 5 अक्टूबर को इटावा लायन सफारी से लाए गए शेर भरत की मौत ने स्थिति और गंभीर कर दी। अब बाघिन मेलानी के निधन ने प्रबंधन की पोल खोल दी है।
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वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि इतने कम समय में इतने बड़े जानवरों का मरना सामान्य नहीं हो सकता। यह या तो स्वास्थ्य निगरानी में भारी चूक का परिणाम है या चिड़ियाघर के वातावरण और आहार प्रबंधन में गंभीर गड़बड़ी का। विशेषज्ञों ने यह भी सवाल उठाया कि अगर सभी मौतें “स्वाभाविक” हैं, तो क्या चिड़ियाघर के चिकित्सा मानक इतने कमजोर हैं कि हर बार जानवरों को बचाया नहीं जा पा रहा?
स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ता और वन्यजीव प्रेमी इसे चिड़ियाघर प्रबंधन की घोर लापरवाही बता रहे हैं। उनका कहना है कि करोड़ों रुपये के बजट के बावजूद जानवरों की देखभाल में कोताही बरती जा रही है। कई संगठनों ने मांग की है कि जानवरों की मौतों की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए और जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हो।
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शहरवासियों का कहना है कि चिड़ियाघर का उद्देश्य संरक्षण और संवर्धन है, न कि लापरवाही और मौतों का अड्डा बनना। अब सवाल यह है कि आखिर इतनी मौतों के बावजूद प्रशासन चुप क्यों है? इस बीच, वन विभाग ने बाघिन मेलानी की मौत के बाद पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट मंगवाई है और अन्य मामलों की संयुक्त जांच टीम गठित करने की बात कही है। हालांकि वन्यजीव प्रेमियों को अब इस जांच के परिणाम से ज्यादा उम्मीद नहीं है, क्योंकि पूर्व की जांचें भी बिना किसी ठोस कार्रवाई के ठंडे बस्ते में चली गई।