

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जनहित याचिकाओं में दिए जाने वाले अंतरिम आदेशों के खिलाफ अपील की सीमा स्पष्ट की। कोर्ट ने यह भी बताया कि जब तक आदेश किसी पक्ष के मौलिक अधिकारों को प्रभावित न करें या मामले के किसी पहलू का निपटान न हो, तब तक विशेष अपील नहीं दी जा सकती।
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Img: Google)
Prayagraj: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जनहित याचिकाओं के संदर्भ में अंतरिम आदेशों के खिलाफ अपील के दायरे को लेकर अहम निर्णय दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अगर कोई आदेश केवल प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से जारी किया गया हो, तो ऐसे आदेशों के खिलाफ अपील का अधिकार नहीं होता। कोर्ट ने यह भी कहा कि जब तक आदेश सीधे तौर पर किसी पक्ष के मौलिक अधिकारों को प्रभावित नहीं करते या मामले के किसी पहलू का अंतिम निपटान नहीं करते, तब तक उन आदेशों के खिलाफ विशेष अपील नहीं दी जा सकती।
एकल न्यायाधीश द्वारा दिया आदेश खारिज
यह आदेश न्यायमूर्ति शेखर बी सराफ और न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरि की खंडपीठ ने दिया है। खंडपीठ ने यह भी कहा कि जनहित याचिका में एकल न्यायाधीश द्वारा जारी आदेश के खिलाफ अपील को खारिज कर दिया जाए, खासकर जब अपील याची द्वारा न होकर विपक्षी पक्ष द्वारा दायर की गई हो। इस मामले में अपील केसर सिंह ने दायर की थी, जबकि मूल याचिका किसी अन्य व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत की गई थी।
कोर्ट ने जानकारी दी कि एकल न्यायाधीश ने याचिका में लगे गंभीर आरोपों के कारण याचिका वापस लेने की अनुमति नहीं दी। अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि याची को विपक्ष से दबाव और धमकी मिलने के कारण याचिका वापस करनी पड़ी। आरोपी पक्ष के संबंध में बताया गया कि वह आपराधिक पृष्ठभूमि से जुड़ा है और ग्रामसभा की जमीन पर अवैध कब्जा बनाए हुए है।
प्रशासनिक अधिकारियों से रिपोर्ट तलब
इस संदर्भ में कोर्ट ने प्रशासनिक अधिकारियों से रिपोर्ट तलब करने और विपक्षी पक्ष से शपथ पत्र दाखिल कराने के आदेश भी जारी किए हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह आदेश केवल तथ्यों की जांच और रिकॉर्ड की स्पष्टता के लिए दिए गए थे, न कि किसी पक्ष के अधिकारों का अंतिम निर्धारण करने के लिए। इस आदेश में न तो किसी पक्ष को नुकसान पहुंचाया गया है और न ही अधिकारों का अंतिम निर्णय हुआ है।
महत्वपूर्ण बात यह रही कि विशेष अपील स्वयं याची द्वारा नहीं, बल्कि विपक्षी व्यक्ति द्वारा दायर की गई थी, जिस पर याचिका में गंभीर आरोप लगाए गए थे। इस कारण अपील की पोषणीयता पर कोर्ट ने सवाल उठाया और उसे संदेह के घेरे में रखा।