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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2018 से पुलिस हिरासत से लापता युवक के मामले में यूपी पुलिस की कार्रवाई पर नाराजगी जताते हुए कहा कि “तलाश जारी है” कहना मजाक है। कोर्ट ने पुलिस को 10 दिन का अंतिम समय देते हुए तीन विकल्पों में से स्पष्ट जवाब मांगा। अगली सुनवाई 9 दिसंबर को होगी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट
Lucknow: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वर्ष 2018 से पुलिस हिरासत से गायब युवक के मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि “युवक की तलाश कर रहे हैं” जैसा बयान अदालत के साथ मजाक करने के समान है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यदि युवक के साथ कोई अनहोनी हुई है तो उस समय के पुलिस अधीक्षक (एसपी) को किसी भी हाल में बख्शा नहीं जाएगा। अदालत ने पुलिस को युवक को खोजने के लिए 10 दिनों का अंतिम अवसर दिया है और मामले की अगली सुनवाई 9 दिसंबर को तय की है।
क्या है मामला?
यह गंभीर टिप्पणी न्यायमूर्ति जेजे मुनीर और न्यायमूर्ति संजीव कुमार की खंडपीठ ने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (हैबियस कॉर्पस पेटिशन) पर सुनवाई करते हुए की। यह याचिका बस्ती जिले के पैकौलिया थाना क्षेत्र निवासी शिव कुमार के पिता ने दायर की है, जिनका आरोप है कि पुलिस ने सितंबर 2018 में उनके बेटे को एक लड़की के अपहरण के आरोप में हिरासत में लिया था। तब से आज तक उसका कोई पता नहीं चल सका है।
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पुलिस ने क्यों बोला था झूठ?
याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि पुलिस ने उनके बेटे शिव कुमार को यह कहकर उठाया था कि लड़की का बयान दर्ज होने के बाद उसे घर भेज दिया जाएगा। बाद में लड़की ने मजिस्ट्रेट के समक्ष धारा 164 के तहत बयान दिया कि वह अपनी इच्छा से घर से गई थी और उसका कोई अपहरण नहीं हुआ था। इसके बावजूद युवक को न तो रिहा किया गया और न ही उसके संबंध में कोई ठोस जानकारी दी गई।
यूपी के डीजीपी से नाराज हुए जज साहब
पांच वर्षों से अधिक समय से युवक के गायब होने पर परिवार का आरोप है कि पुलिस ने मामले को दबाने की कोशिश की और अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। अदालत ने 28 नवंबर को डीजीपी राजीव कृष्ण के हलफनामे पर भी असंतोष जताया। डीजीपी ने बताया था कि गोरखपुर जोन के एडीजी के नेतृत्व में एक एसआईटी गठित की गई है, जो युवक की तलाश कर रही है।
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हाईकोर्ट ने इस तर्क को अपर्याप्त और औपचारिक बताते हुए कहा कि इतने वर्षों के बाद “तलाश जारी है” का जवाब स्वीकार्य नहीं है। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि इस मामले में पुलिस को स्पष्ट और ठोस उत्तर देना अनिवार्य है। अदालत ने पुलिस को तीन ही विकल्प सुझाए- बंदी को जीवित अदालत में प्रस्तुत करें, यदि उसकी मृत्यु हो चुकी है तो ठोस और विश्वसनीय प्रमाण दें और यदि उसने देश छोड़ा है तो उसके सबूत प्रस्तुत करें।
बस्ती के पूर्व एसपी पर लटकी कार्रवाई की तलवार
कोर्ट ने साफ कहा कि इन तीन विकल्पों के अलावा कोई चौथा उत्तर अदालत को स्वीकार नहीं होगा। यदि 10 दिनों के भीतर पुलिस इन तीनों में से किसी एक तरीके से स्थिति स्पष्ट नहीं करती है तो संबंधित अधिकारियों विशेषकर 2018 में पद पर रहे एसपी पर कड़ी कार्रवाई की जा सकती है।
दर-दर भटक रहा परिवार
युवक के पिता ने अदालत में कहा कि वह पिछले सात वर्षों से अपने बेटे की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं। परिवार का कहना है कि पुलिस की लापरवाही और उदासीनता के कारण आज तक शिव कुमार का कोई सुराग नहीं मिला, जिससे उनकी पीड़ा लगातार बढ़ती जा रही है। हाईकोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए एसआईटी को कड़े निर्देश दिए हैं कि वह युवक की तलाश तेज करे और 10 दिनों के भीतर प्रगति रिपोर्ट के साथ अदालत में पेश हो। इस मामले ने राज्य की पुलिस कार्यशैली पर फिर एकबारगी बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं।