37 साल पुराना मामला: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूछा- जज को धमकी देने वाला एसपी अभी जीवित है या नहीं?

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ललितपुर के 37 वर्ष पुराने मामले में तत्कालीन एसपी बी.के. भोला के खिलाफ की गई गंभीर टिप्पणियों को पुनर्जीवित करते हुए डीजीपी से पूछा है कि वह आज जीवित हैं या नहीं और उन पर क्या कार्रवाई की गई। कोर्ट ने कहा- समय बीत जाने भर से न्यायिक गरिमा पर हमले को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।

Post Published By: Mayank Tawer
Updated : 4 December 2025, 4:52 AM IST
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Lucknow: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 37 साल पुराने एक संवेदनशील और विवादित प्रकरण में उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) से महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण मांगा है। अदालत ने पूछा है कि वर्ष 1988 में जिला जज को कथित तौर पर थाने में घसीटने की धमकी देने वाले ललितपुर के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक (एसपी) बी.के. भोला आज जीवित हैं या नहीं। यदि जीवित हैं तो उनका वर्तमान पता, सेवा की स्थिति, सेवानिवृत्ति और पेंशन संबंधी विवरण अदालत के समक्ष रखा जाए। साथ ही यह भी स्पष्ट किया जाए कि उस समय सत्र न्यायाधीश द्वारा की गई गंभीर संस्तुतियों के अनुपालन में उनके खिलाफ क्या कदम उठाए गए थे। अदालत ने डीजीपी को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। इस मामले की अगली सुनवाई 9 दिसंबर को निर्धारित है।

कोर्ट ने केस को नजरअंदाज से किया इंकार

न्यायमूर्ति जेजे मुनीर और न्यायमूर्ति संजीव कुमार की खंडपीठ ने यह आदेश वर्ष 1988 में दायर एक आपराधिक अपील पर सुनवाई के दौरान दिया। यह अपील बृंदावन और अन्य आरोपितों से संबंधित एक हत्या के मामले से जुड़ी है। दिलचस्प बात यह है कि करीब चार दशक बीत जाने के बावजूद अदालत ने उन घटनाओं को नजरअंदाज करने से इनकार कर दिया, जिन्हें ट्रायल कोर्ट के सत्र न्यायाधीश ने अपने फैसले में दर्ज किया था।

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एसपी का “गुंडे जैसा आचरण”

हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी उच्च पुलिस अधिकारी द्वारा न्यायालय की गरिमा को चुनौती देना, न्यायिक प्रक्रिया में बाधा डालने की धमकी देना और न्यायाधीश को डराने का प्रयास करना “गुंडे जैसे आचरण” की श्रेणी में आता है और सिर्फ समय बीत जाना इस गंभीर मुद्दे को अप्रासंगिक नहीं बना देता। अदालत ने जोर देकर कहा कि न्यायिक संस्थानों की स्वतंत्रता और उनके प्रति सम्मान किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था की मूल आत्मा है। इसलिए ऐसे मामलों में तथ्यात्मक स्थिति को स्पष्ट करना आवश्यक है, चाहे घटना कितनी भी पुरानी क्यों न हो।

एसपी ने जज को क्या धमकी दी थी?

खंडपीठ ने 30 अप्रैल 1988 को सत्र न्यायाधीश एल.एन. राय द्वारा पारित निर्णय के प्रस्तर 190 और 191 का उल्लेख किया, जिनमें तत्कालीन एसपी बी.के. भोला के खिलाफ बेहद कठोर टिप्पणियां की गई थीं। सत्र न्यायाधीश ने लिखा था कि पुलिस अधीक्षक ने न केवल असहयोगपूर्ण व्यवहार किया, बल्कि स्पष्ट रूप से चेतावनी दी कि यदि अदालत पुलिस रिकॉर्ड, वायरलेस संदेश या उनसे संबंधित किसी दस्तावेज़ को तलब करती है या उन्हें गवाह के रूप में उपस्थित होने का आदेश देती है, तो जज को थाने में घसीटकर ले जाया जाएगा।

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हाईकोर्ट ने अपने आदेश में सत्र न्यायाधीश की इस टिप्पणी को उद्धृत करते हुए कहा कि ऐसी धमकी न केवल न्यायालय के अधिकार का अपमान थी, बल्कि विधि के शासन के विपरीत एक गंभीर अनुशासनहीनता भी थी। अदालत ने स्पष्ट किया कि पुलिस सेवा में इस प्रकार के आचरण को किसी भी परिस्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने यह भी पूछा कि सत्र न्यायाधीश द्वारा की गई टिप्पणियों के आधार पर उस समय पुलिस विभाग ने क्या कार्रवाई की थी, और यदि कोई कार्रवाई नहीं हुई तो उसके कारण क्या थे। अदालत ने डीजीपी को व्यक्तिगत रूप से विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है, ताकि तथ्य पूरी तरह स्पष्ट हो सकें।

Location : 
  • Lucknow

Published : 
  • 4 December 2025, 4:52 AM IST