

एक ऐसी महिला, जो 25 साल तक भारत की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई, इंटरपोल और प्रवर्तन निदेशालय की नजरों से बचती रही। अब भारत की एजेंसियों ने उसे अमेरिका से गिरफ्तार कर वापस ला दिया है
मोनिका कापूर गिरफ्तार
नई दिल्ली: एक ऐसी महिला, जो 25 साल तक भारत की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई, इंटरपोल और प्रवर्तन निदेशालय की नजरों से बचती रही। जिसने एक नहीं, कई शहरों में सैकड़ों लोगों से करोड़ों की ठगी की और फिर देश छोड़कर गायब हो गई। और अब जब दुनिया को लगा कि यह मामला इतिहास के अंधेरे में खो गया है, ठीक उसी वक्त भारत की एजेंसियों ने उसे अमेरिका से गिरफ्तार कर वापस ला दिया है। मोनिका कपूर की — भारत की मोस्ट वांटेड आर्थिक अपराधियों में से एक नाम, जो अब 25 साल बाद कानून के शिकंजे में है।मोनिका कपूर कौन है? और क्यों उसका नाम आर्थिक अपराधों की सबसे चौंकाने वाली कहानियों में गिना जा रहा है? उसके फरार होने से लेकर अब तक की कहानी किसी थ्रिलर फिल्म से कम नहीं है।
वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश नें अपने चर्चित शो The MTA Speak में मोनिका कपूर को लेकर ये जानकारी दी है।
1999 का साल। भारत में उदारीकरण की लहर चल रही थी। शेयर बाजारों और रियल एस्टेट सेक्टर में तेजी का माहौल था। लोग निवेश के नए-नए विकल्प तलाश रहे थे और उन्हीं सपनों को भुनाने के लिए आई थी ‘Vibrant Investment and Trading Pvt. Ltd.’ नाम की एक निजी कंपनी। इस कंपनी की डायरेक्टर थीं मोनिका कपूर, जो दिल्ली के पॉश साउथ एक्सटेंशन इलाके में रहती थीं। उनकी प्रोफाइल हाई-प्रोफाइल थी — फैशन शो, सोशल नेटवर्किंग, और विदेशी संपर्क।
कंपनी का दावा था कि वह निवेशकों को हर तीन महीने में 15% से 20% तक का रिटर्न देगी। उनके पास रियल एस्टेट, जेम्स एंड ज्वेलरी, माइनिंग और अंतरराष्ट्रीय ट्रेडिंग में हाथ आज़माने वाले भारी-भरकम प्रोजेक्ट्स थे — ऐसा प्रचार किया गया।
जांच हुई तो सामने आया
कंपनी ने दिल्ली, मुंबई, जयपुर, चंडीगढ़, भोपाल और इंदौर जैसे शहरों में ग्लैमर भरे सेमिनार आयोजित किए। पांच सितारा होटलों में रजिस्ट्रेशन कैंप लगे, टीवी और अखबारों में विज्ञापन छपे और लोगों से मोटी रकम जमा करवाई गई। शुरुआती निवेशकों को कुछ रिटर्न मिले भी, जिससे स्कीम का भरोसा बढ़ा और देखते-देखते हज़ारों लोगों ने ₹5,000 से लेकर ₹50 लाख तक के निवेश किए। लेकिन जैसे ही पर्याप्त पूंजी इकट्ठा हो गई, एक दिन अचानक कंपनी का ऑफिस बंद मिला। मोनिका कपूर गायब थीं। निवेशकों के चेक बाउंस होने लगे और शिकायतें बढ़ती गईं। जब जांच हुई तो सामने आया कि करीब ₹84 करोड़ की ठगी की जा चुकी थी। यह रकम उस दौर के हिसाब से बेहद बड़ी थी — आज के हिसाब से इसकी कीमत 500 करोड़ रुपये से अधिक हो सकती है।
इंस्टाग्राम अकाउंट पर लाखों व्यूज
CBI ने इस मामले को 2000 में टेकओवर किया। तब तक मोनिका कपूर नेपाल के रास्ते भारत से बाहर निकल चुकी थी। आगे वह सिंगापुर, फिर हांगकांग, और अंततः अमेरिका पहुंच गई। उसने न सिर्फ पासपोर्ट और पहचान पत्र बदले, बल्कि अपने डिजिटल ट्रेस तक मिटा दिए। दिल्ली पुलिस, फिर इंटेलिजेंस ब्यूरो और अंत में सीबीआई ने उसके खिलाफ लुकआउट सर्कुलर और रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया। 2003 में अदालत ने उसे भगोड़ा घोषित किया। लेकिन हर बार, वह पकड़ से बच निकलती रही।
अमेरिका में उसने खुद को ‘Monica K. D’ के नाम से पेश किया। वह शिकागो में बस गई और खुद को एक ‘Financial Energy Healer’ और ‘Spiritual Wellness Coach’ के रूप में स्थापित किया। उसकी कार्यशालाओं में “अंदर की ऊर्जा से पैसा खींचने की कला”, “कर्मा रीकंस्ट्रक्शन” और “फाइनेंशियल डिटॉक्सिफिकेशन” जैसे वादे किए जाते थे। उसके यूट्यूब चैनल और इंस्टाग्राम अकाउंट पर लाखों व्यूज थे। उसने वहां भी नई पहचान के साथ नया कारोबार खड़ा कर लिया — लेकिन उसकी असली पहचान CBI की नजर से नहीं बच सकी।
मोनिका कपूर को शिकागो से गिरफ्तार
2022 के अंत में, सीबीआई की नई साइबर इंटेलिजेंस यूनिट ने उसके डिजिटल एक्टिविटी को ट्रैक किया। उनके शक की पुष्टि तब हुई जब एक पुराने भारतीय निवेशक ने उसके सोशल मीडिया वीडियो में उसकी आवाज और हाव-भाव पहचान लिए। उसके बाद इंटरपोल और अमेरिका की FBI के साथ प्रत्यर्पण प्रक्रिया शुरू हुई। कई महीनों की बातचीत और दस्तावेज़ी कार्यवाही के बाद आखिरकार मई 2025 में मोनिका कपूर को शिकागो से गिरफ्तार किया गया। 6 जुलाई को उसे भारत लाया गया और अब दिल्ली की एक अदालत के समक्ष पेश कर उसे न्यायिक हिरासत में भेजा गया है।
प्रवर्तन निदेशालय ने भी जांच शुरू..
मोनिका पर भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी), 406 (आपराधिक विश्वासघात), 120-B (आपराधिक साजिश) के साथ-साथ कई गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज है। प्रवर्तन निदेशालय ने भी जांच शुरू कर दी है और अब इस मामले को मनी लॉन्ड्रिंग के एंगल से देखा जा रहा है। शुरुआती जांच में यह भी सामने आया है कि मोनिका ने मारीशस, दुबई और बेलीज जैसे टैक्स हेवन देशों में भी शेल कंपनियाँ बनाई थीं, जिनके जरिए उसने फंड ट्रांसफर किए।
क्या मोनिका अकेली थी?
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या मोनिका अकेली थी? क्या उसके साथ कोई और भारतीय नागरिक या कारोबारी भी मिला हुआ था? क्या किसी बैंक अधिकारी, किसी राजनेता या किसी सरकारी कर्मचारी की मदद से उसने यह घोटाला अंजाम दिया? और सबसे अहम — क्या पीड़ितों का पैसा अब कभी वापस मिल पाएगा? देश के बड़े आर्थिक अपराधियों में मोनिका कपूर का नाम अब उन लोगों की कतार में जुड़ गया है, जो एक तयशुदा रणनीति के साथ देश की वित्तीय व्यवस्था को लूटकर विदेश भाग गए।
विदेशी प्रक्रियाओं में उलझकर देश से दूर
नीरव मोदी, विजय माल्या, मेहुल चोकसी — इन सबकी तरह मोनिका भी लंबे समय तक कानूनी पेंचों और विदेशी प्रक्रियाओं में उलझकर देश से दूर रही। लेकिन फर्क यह है कि बाकी मामलों में राजनीतिक चर्चा हुई, संसद तक गरमाई, लेकिन मोनिका कपूर का मामला हमेशा दबा रहा — शायद इसलिए क्योंकि वह एक महिला थी? या इसलिए कि उसके खिलाफ शिकायतें गरीब और मध्यमवर्गीय निवेशकों की थीं?
मोनिका की गिरफ्तारी
CBI की हालिया कार्रवाई दिखाती है कि अब भारत की एजेंसियाँ पुराने मामलों को भी नए सिरे से खोल रही हैं। साइबर तकनीक, डिजिटल ट्रेसिंग और इंटरनेशनल कोऑर्डिनेशन के जरिए अब वह अपराधियों को ढूंढ़ निकालने में पहले से ज्यादा सक्षम हो गई हैं। लेकिन यह भी उतना ही ज़रूरी है कि भारत सरकार ऐसे मामलों से सबक ले और मजबूत निवेश सुरक्षा प्रणाली बनाए। आज भी भारत में हजारों लोग ऐसे स्कीम्स के जाल में फंस रहे हैं जो वैध नहीं हैं, लेकिन भारी रिटर्न का झांसा देकर उन्हें लुभाती हैं। सेबी और आरबीआई जैसे नियामक संस्थाओं को और सक्रिय होना होगा। मोनिका की गिरफ्तारी एक प्रतीकात्मक जीत है। लेकिन असली न्याय तभी होगा जब ठगे गए लोगों की पूंजी वापस मिले, दोषियों को सज़ा मिले और ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।