

यमुना को दिल्ली की जीवनरेखा कहा जाता है, लेकिन यही नदी जब अपना रौद्र रूप दिखाती है तो पूरी राजधानी को संकट में डाल देती है। हर साल बरसात के मौसम में यही चिंता लोगों को सताने लगती है कि कहीं यमुना उफान पर न आ जाए। और इस साल भी वही हो रहा है। लगातार हो रही बारिश और हथिनीकुंड बैराज से छोड़े गए पानी के चलते यमुना का जलस्तर खतरे के निशान को पार कर चुका है। देखिये वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश के साथ देखिये यमुना और दिल्ली में बाढ़ के खतरे पर खास विश्लेषण
New Delhi: दिल्ली और यमुना का रिश्ता सदियों पुराना है। यमुना को दिल्ली की जीवनरेखा कहा जाता है, लेकिन यही नदी जब अपना रौद्र रूप दिखाती है तो पूरी राजधानी को संकट में डाल देती है। हर साल बरसात के मौसम में यही चिंता लोगों को सताने लगती है कि कहीं यमुना उफान पर न आ जाए। और इस साल भी वही हो रहा है। लगातार हो रही बारिश और हथिनीकुंड बैराज से छोड़े गए पानी के चलते यमुना का जलस्तर खतरे के निशान को पार कर चुका है।
देखिये वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश के साथ खास शो The MTA Speaks में देखिये यमुना और दिल्ली में बाढ़ के खतरे पर खास विश्लेषण
केंद्रीय जल आयोग के मुताबिक, यमुना का खतरे का निशान 205.33 मीटर है और 206 मीटर पर पहुँचने पर बड़े पैमाने पर लोगों को हटाना पड़ता है। 18 अगस्त को जलस्तर 205.79 मीटर तक जा पहुँचा, जिससे निचले इलाकों में पानी भरने लगा। मौसम विभाग ने अगले तीन दिनों तक उत्तराखंड और हिमाचल में भारी बारिश का अलर्ट जारी किया है, जिसका सीधा असर हथिनीकुंड बैराज और फिर दिल्ली पर पड़ सकता है। यही वजह है कि प्रशासन हाई अलर्ट पर है।
इन इलाकों में बढ़ा खतरा
बुराड़ी, वजीराबाद, संत नगर और जगतपुर जैसे इलाकों से लोगों को सुरक्षित ठिकानों पर ले जाया जा रहा है। लेकिन आँकड़े बताते हैं कि यमुना के बाढ़ क्षेत्र में आज भी करीब 40 हज़ार से ज्यादा लोग बसे हुए हैं। इनमें बड़ी संख्या मजदूरों, रिक्शा चालकों, सब्ज़ी उगाने वाले किसानों और उनके परिवारों की है। हजारों लोग अब भी यमुना के किनारे डटे हैं क्योंकि उनके घर, रोज़गार और मवेशी वहीं हैं।
हथिनीकुंड बैराज से इस हफ्ते 1.78 लाख क्यूसेक से ज्यादा पानी छोड़ा गया था, जो 36 से 48 घंटे के भीतर दिल्ली पहुँचता है। इसका सीधा असर राजधानी के जलस्तर पर हुआ। नदी में उफान देखते ही पुराने लोहे के पुल और उसके आसपास के घाटों पर पानी भर गया। मयूर विहार और यमुना खादर की बस्तियाँ सबसे पहले डूबीं। किसानों की पूरी फसल जलमग्न हो गई, जिनमें सब्ज़ियाँ और धान की रोपाई शामिल थी। यह केवल एक आपदा नहीं है बल्कि किसानों और मज़दूरों के लिए रोज़ी-रोटी का संकट है।
2023 की भयावह बाढ़ अभी भी दिल्ली की यादों में ताज़ा है। तब 11 जुलाई को यमुना का जलस्तर 208.66 मीटर तक पहुँच गया था, जो अब तक का सबसे ऊँचा रिकॉर्ड है। उस बाढ़ ने पुराने लोहे के पुल को बंद करने पर मजबूर कर दिया था। दिल्ली-यूपी के बीच ट्रैफिक ठप हो गया था और करीब तीन लाख से ज्यादा लोगों को विस्थापित होना पड़ा था। संसद सत्र तक बाधित हुआ था और राष्ट्रीय राजधानी हफ्तों तक अस्त-व्यस्त रही थी। लोग आज भी उस तबाही की याद से काँप उठते हैं। इसी वजह से इस साल पानी बढ़ते ही लोगों के मन में वही डर लौट आया है।
संकट के बीच राजनीति का पहलू
इस संकट के बीच राजनीति का पहलू भी जुड़ गया है। पिछले साल 2023 की बाढ़ के समय दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार थी। उस वक्त भाजपा ने सवाल उठाए थे कि क्यों बाढ़ से निपटने की तैयारी नहीं की गई। लेकिन इस बार हालात अलग हैं। अब दिल्ली में भाजपा की सरकार है और मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता खुद प्रभावित इलाकों का दौरा कर रही हैं। वहीं हरियाणा में भी भाजपा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी हैं, जिनके अधीन हथिनीकुंड बैराज है। यानी इस बार जिम्मेदारी दोनों ही सरकारों पर है। विपक्ष पूछ रहा है कि अगर इस बार भी हालात काबू में नहीं आए तो जवाबदेही किसकी होगी?
यह है बड़ा सवाल
लोगों के मन में एक और सवाल है—क्यों हर साल बाढ़ की समस्या से जूझना पड़ता है? पर्यावरणविदों का कहना है कि असली वजह केवल बारिश और बैराज से छोड़ा गया पानी नहीं है, बल्कि यमुना के किनारे का अतिक्रमण और नदी की उपेक्षा है। यमुना के बाढ़ क्षेत्र पर बड़ी संख्या में निर्माण हो गए हैं, जिससे नदी का प्राकृतिक बहाव रुक गया है। ऊपर से गाद और प्रदूषण का जमाव इतना बढ़ गया है कि थोड़ी सी बारिश भी तबाही ला देती है।
दिल्ली उच्च न्यायालय और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने कई बार चेतावनी दी है कि यमुना के बाढ़ क्षेत्र को संरक्षित किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने भी साफ कहा है कि यमुना के किनारे अतिक्रमण हटाना सरकार की जिम्मेदारी है। लेकिन राजनीतिक खींचतान और वोट बैंक की राजनीति के कारण कभी ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई।
क्या है सरकार का दावा
सरकार की ओर से दावा है कि बचाव और राहत कार्य तेज़ी से चल रहे हैं। अस्थायी राहत शिविर बनाए गए हैं, खाने-पीने का इंतजाम किया गया है और मेडिकल सुविधाएँ भी मुहैया कराई जा रही हैं। दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने 12 कंट्रोल रूम बनाए हैं और एनडीआरएफ की टीमें भी तैनात की गई हैं। लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि अभी भी कई परिवार खुले आसमान के नीचे रात गुज़ार रहे हैं। राहत शिविरों तक पहुँचने के लिए नावों और ट्रैक्टरों का सहारा लेना पड़ रहा है। बच्चे और बुज़ुर्ग सबसे ज्यादा मुश्किल में हैं।
यमुना बाढ़ का असर केवल बस्तियों और फसलों तक सीमित नहीं है। दिल्ली की सड़कों पर जगह-जगह पानी भरने से ट्रैफिक ठप है। दफ्तर जाने वालों को घंटों जाम झेलना पड़ रहा है। कई इलाकों में स्कूलों को बंद करना पड़ा है। बिजली और पेयजल सप्लाई भी बाधित हो रही है। कई पंपिंग स्टेशन डूबने की कगार पर हैं, जिससे दिल्ली को पेयजल संकट का सामना करना पड़ सकता है। यह सब मिलकर राजधानी की ज़िंदगी को थाम देते हैं।
विशेषज्ञों की राय
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर दीर्घकालिक समाधान पर तुरंत काम नहीं किया गया तो दिल्ली हर साल बाढ़ की चपेट में आती रहेगी। समाधान के तौर पर तीन बड़े सुझाव हैं—पहला, यमुना के बाढ़ क्षेत्र से अतिक्रमण हटाना और वहाँ हरियाली बहाल करना। दूसरा, हथिनीकुंड बैराज से छोड़े जाने वाले पानी का वैज्ञानिक प्रबंधन करना। और तीसरा, दिल्ली के ड्रेनेज सिस्टम को आधुनिक और सक्षम बनाना।
जनता की नाराज़गी साफ दिख रही है। लोगों का कहना है कि हर साल नेता और अफसर बयान देते हैं, लेकिन स्थायी समाधान नहीं निकालते। बाढ़ केवल एक प्राकृतिक आपदा नहीं रह गई, यह अब दिल्ली की प्रशासनिक अक्षमता और राजनीतिक खींचतान का आईना बन चुकी है।
यमुना का यह उफान हमें याद दिलाता है कि प्रकृति से छेड़छाड़ का नतीजा कितना भयावह हो सकता है। जब तक सरकारें विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन नहीं बनाएंगी, तब तक दिल्ली हर साल बाढ़ और राजनीति का शिकार होती रहेगी।
अब बड़ा सवाल यही है कि इस बार क्या होगा? क्या हालात फिर से बिगड़ेंगे या प्रशासन और राजनीति मिलकर सचमुच दिल्ली को बाढ़ से बचा पाएंगे? जनता की आँखें इंतज़ार कर रही हैं।