Patna High Court: विष्णुपद मंदिर धार्मिक सार्वजनिक ट्रस्ट है, न कि ब्राह्मणों की निजी संपत्ति

डीएन ब्यूरो

पटना उच्च न्यायालय ने कहा है कि बिहार के गया में स्थित भगवान विष्णु को समर्पित प्राचीन हिंदू मंदिर विष्णुपद मंदिर एक धार्मिक सार्वजनिक ट्रस्ट है, न कि स्थानीय गयावाल ब्राह्मणों के वंशजों की नीजि संपत्ति, जो स्थानीय पुजारी हैं। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

विष्णुपद मंदिर धार्मिक सार्वजनिक ट्रस्ट
विष्णुपद मंदिर धार्मिक सार्वजनिक ट्रस्ट


पटना: पटना उच्च न्यायालय ने कहा है कि बिहार के गया में स्थित भगवान विष्णु को समर्पित प्राचीन हिंदू मंदिर विष्णुपद मंदिर एक धार्मिक सार्वजनिक ट्रस्ट है, न कि स्थानीय गयावाल ब्राह्मणों के वंशजों की नीजि संपत्ति, जो स्थानीय पुजारी हैं।

पटना उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सुनील दत्त मिश्रा की एकल पीठ ने गयावाल पंडों के एक समूह की ओर से दायर दूसरी अपील को शुक्रवार को खारिज कर दिया।

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अदालत ने कहा, ‘‘तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए विशेष रूप से मंदिर की उत्पत्ति और पूजा के संबंध में श्रद्धालुओं द्वारा प्रयोग किए जाने वाले अधिकार, प्रकृति और जनता द्वारा दिए गए उपहार-योगदान की सीमा और निर्धारित आदेश के अनुसार, इसमें संदेह नहीं कि विष्णुपद मंदिर गयावाल ब्राह्मणों की निजी संपत्ति नहीं बल्कि एक धार्मिक सार्वजनिक ट्रस्ट है ।’’

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डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार कानूनी प्रतिनिधियों के माध्यम से एम सिद्दीक (मृत) बनाम महंत सुरेश दास और अन्य (अयोध्या फैसला के नाम से चर्चित) के मामले में उच्चतम न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की पीठ के फैसले का हवाला देते हुए खंडपीठ ने माना कि हिंदू अनुयायियों की आस्था उनके प्राचीन धर्मग्रंथों पर आधारित है और गया क्षेत्र (विष्णुपद) जाने तथा पूर्वजों के मोक्ष के लिये तर्पण करने की उनकी सदियों पुरानी प्रथा से इसकी पुष्टि होती है, जो इस तथ्य का प्रमाण है कि बड़े पैमाने पर आम जनता विष्णुपद मंदिर के लाभार्थी हैं।

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अदालत के आदेश में कहा गया है कि प्रथम अपीलीय अदालत द्वारा भी रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री पर विचार किया गया था और माना था कि वादी ठोस और विश्वसनीय स्रोतों के माध्यम से विष्णुपद मंदिर पर अपना विशेष अधिकार, स्वामित्व और कब्ज़ा साबित करने में बुरी तरह विफल रहे हैं।

प्रथम अपीलीय अदालत ने बिहार हिंदू धार्मिक ट्रस्ट अधिनियम 1950 के प्रासंगिक प्रावधानों और विष्णुपद मंदिर के संबंध में इसकी प्रयोज्यता पर भी चर्चा की और निष्कर्ष निकाला कि विष्णुपद मंदिर एक सार्वजनिक ट्रस्ट है और बिहार हिंदू धार्मिक ट्रस्ट अधिनियम 1950 के प्रावधान स्वचालित रूप से लागू होंगे।

पटना उच्च न्यायालय के इस फैसले के साथ विष्णुपद मंदिर के नियंत्रण को लेकर स्थानीय पुजारियों और बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड (बीएसबीआरटी) के बीच वर्षों पुरानी कानूनी लड़ाई समाप्त हो गई है।

गयावाल पंडों द्वारा स्थानीय गया अदालत में 1977 में एक दीवानी मुकदमा दायर किया गया था जिसमें यह मांग की गई थी कि विष्णुपद मंदिर एक निजी ट्रस्ट है और वायु पुराण के श्लोकों के अनुसार, भगवान ब्रह्मा द्वारा निर्धारित इसके प्रबंधन पर पुजारियों का पूर्ण नियंत्रण है।

मुकदमें का फैसला वादी पुजारियों के पक्ष में सुनाया गया जिसके खिलाफ बीएसबीआरटी जिला न्यायाधीश, गया की अदालत में अपील (प्रथम) में गया।

अपीलीय अदालत ने मंदिर को सार्वजनिक ट्रस्ट और बोर्ड की सामान्य अधीक्षण शक्तियों के लिए उत्तरदायी मानते हुए निचली अदालत के फैसले को पलट दिया।

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कन्हैया लाल गुरदा के नेतृत्व में गयावाल पुजारियों के एक समूह ने विष्णुपद भगवान के अगले मित्र के रूप में दावा करते हुए पटना उच्च न्यायालय के समक्ष यह दूसरी अपील दायर की थी।

बोर्ड के वकील ने दस्तावेजी साक्ष्यों का हवाला दिया जिसमें फ्रांसिस बुकानन की पुस्तक ‘‘एंटीक्विटीज, टोपोग्राफी एंड स्टैटिस्टिक्स ऑफ ईस्टर्न इंडिया’’ और रानी अहिल्या बाई होल्कर (वर्तमान विष्णुपद मंदिर की निर्माता) के ग्रंथ और पी वी केन की पुस्तक (धर्मशास्त्र का इतिहास) शामिल हैं।

अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘‘विष्णुपद मंदिर बिहार हिंदू धार्मिक ट्रस्ट बोर्ड अधिनियम 1950 की धारा 2(1) और धारा तीन के अर्थ के तहत एक सार्वजनिक धार्मिक ट्रस्ट है, इस आधार पर कि विष्णुपद मंदिर भारत के सभी वैष्णव मंदिर में सबसे पवित्र में से एक है और इस मंदिर में श्री विष्णु के पैर की एक पवित्र छाप है। लाखों की संख्या में हिंदू अपने पूर्वजों को पिंडदान करने के लिए भारत के कोने-कोने से यहां आते हैं।’’

रानी अहिल्या बाई द्वारा मंदिर का स्वीकृत निर्माण गयावाल ब्राह्मणों के लिए नहीं था बल्कि उनके एक भक्त के रूप में और सामान्य हिंदू के लिए था जो निर्णायक रूप से साबित करता है कि विष्णुपद मंदिर एक सार्वजनिक संपत्ति है और गयावाल ब्राह्मणों की विशेष संपत्ति नहीं है।

प्रत्येक हिंदू को मंदिर में जाने का जन्मसिद्ध अधिकार है और यह गयावाल की कृपा पर निर्भर नहीं है।










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