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बाराबंकी का बनकोट-अमरवल किरसिया संपर्क मार्ग, जो कभी विकास का प्रतीक था, अब मौत के कुएं में बदल गया है। स्कूली बच्चे, मरीज और ग्रामीण रोज दांव पर लगा रहे हैं जान। 20 साल से इंतजार, लेकिन अब तक सिर्फ वादे। क्या कोई सुनेगा ग्रामीणों की पुकार?
सड़क हुई जर्जर राहगीरों को हो रही परेशानी
Barabanki: बाराबंकी जिले के ग्रामीण आज भी उसी सड़क से गुजरते हैं, जो कभी 2001 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री और देश के मौजूदा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के कार्यकाल में बनी थी। बनकोट मजरे अमरवल किरसिया को जोड़ने वाला यह संपर्क मार्ग कभी विकास की उम्मीदों से बना था, लेकिन आज यह उम्मीदें गहरे गड्ढों में डूब चुकी हैं।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक, लगभग दो किलोमीटर लंबा यह मार्ग आज पूरी तरह से टूट-फूट चुका है। जगह-जगह गहरे गड्ढे, बरसात में जलभराव और फिसलन ने इसे आम रास्ता नहीं, बल्कि एक दुर्घटना-पथ बना दिया है। स्थानीय लोग बताते हैं कि हल्की सी बारिश में यह सड़क तालाब में तब्दील हो जाती है पानी और कीचड़ का ऐसा मिश्रण, जिसमें ना गाड़ी चल सकती है, ना पांव।
अमरवल किरसिया के ग्रामीण दीपू सिंह, दुर्गा बक्स, अमित, प्रहलाद सिंह और अन्य बताते हैं कि यह सड़क केवल रास्ता नहीं, उनकी रोजमर्रा की जिंदगी की रीढ़ है। स्कूली बच्चों के वाहन यहां अक्सर फंस जाते हैं। कई बार ग्रामीणों को कीचड़ में उतरकर धक्का लगाकर वाहन निकालने पड़ते हैं। इससे ना सिर्फ बच्चों की पढ़ाई पर असर पड़ रहा है, बल्कि आपात स्थिति में मरीजों को अस्पताल ले जाना भी किसी चुनौती से कम नहीं।
सबसे बड़ा सवाल यह है क्या विकास सिर्फ शहरी आंकड़ों में दिखता है? ग्रामीण बताते हैं कि इस मार्ग की स्थिति कई बार जनप्रतिनिधियों और संबंधित विभागों को बताई गई, पर हर बार सिर्फ आश्वासन मिला। कोई स्थायी समाधान नहीं हुआ।
20 साल बीत गए लेकिन सड़क वहीं की वहीं, और हालात पहले से भी बदतर। ऐसा नहीं है कि ग्रामीणों ने चुप्पी साध ली है। उन्होंने बार-बार आवाज उठाई, हस्ताक्षर कर ज्ञापन दिए, यहां तक कि **जिलाधिकारी बाराबंकी से भी इस बार पुनर्निर्माण की मांग की है।
दीपू सिंह कहते हैं, “यह सड़क अब रास्ता नहीं, रोज का खतरा बन चुकी है। हमें तो अब डर लगता है बच्चों को स्कूल भेजने में भी।”
यदि प्रशासन अब भी नहीं जागा, तो आने वाले समय में यह मार्ग सिर्फ गड्ढों का नहीं, बल्कि जनता के धैर्य और विश्वास का कब्रिस्तान बन जाएगा। समय की मांग है कि इस सड़क का पुनर्निर्माण न सिर्फ तात्कालिक जरूरत है, बल्कि ग्रामीणों के जीवन और सम्मान का सवाल भी।