

पाकिस्तान आज भले ही एक इस्लामी गणराज्य हो, लेकिन उसकी धरती कभी वैदिक मंत्रों, बौद्ध करुणा और हिंदू संस्कृति की प्रतीक थी। यह रिपोर्ट पाकिस्तान के धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिवर्तन की उस गहरी यात्रा को दिखाती है, जिसमें धर्म ने सत्ता को बदला और इतिहास ने पहचान।
पाकिस्तान में मंदिर
New Delhi: जिस ज़मीन पर कभी वेदों का उच्चारण गूंजता था, जहां बुद्ध ने करुणा का संदेश दिया और संस्कृत ने पहली बार अपनी ध्वनि दी, वही धरती आज इस्लामी गणराज्य पाकिस्तान कहलाती है। यह सवाल चौंकाता है, क्या पाकिस्तान कभी हिंदू राष्ट्र था? अगर नहीं तो वह इस्लामी देश कैसे बना? इस सवाल का उत्तर इतिहास, धर्म और राजनीति के जटिल ताने-बाने में छिपा है।
वैदिक भूमि से शुरुआत
आज का पाकिस्तान वही भूभाग है जिसे वेदों में सप्तसिंधु प्रदेश कहा गया है। सिंधु घाटी सभ्यता, हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, तक्षशिला जैसे केंद्र यहीं फले-फूले। यही वह भूमि है जहां ऋषियों ने यज्ञ किए, बौद्ध धर्म का उदय हुआ और भारत की सांस्कृतिक चेतना ने आकार लिया।
8वीं शताब्दी में अरब सेनापति मुहम्मद बिन क़ासिम ने सिंध पर आक्रमण कर राजा दाहर को हराया और पहली बार इस्लाम का आगमन इस क्षेत्र में हुआ। इसके बाद ग़जनवी, गौरी, लोधी और मुगलों का शासन आया और इस्लामी संस्कृति इस क्षेत्र में गहराई तक समा गई।
उपनिवेशवाद और दो राष्ट्र सिद्धांत
ब्रिटिश राज के दौरान हिंदू और मुसलमान साथ रहते हुए भी मानसिक रूप से दूर हो चुके थे। 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना और 1940 के लाहौर प्रस्ताव ने “दो राष्ट्र सिद्धांत” को जन्म दिया, जिसके तहत यह दावा किया गया कि मुस्लिमों को अलग राष्ट्र चाहिए।
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मोहम्मद अली जिन्ना ने इसे इस्लामिक अस्मिता का सवाल बना दिया, जबकि महात्मा गांधी और नेहरू जैसे नेता अखंड भारत की बात करते रहे। 1947 में देश विभाजित हुआ और पंजाब-बंगाल जैसे क्षेत्र दंगों की आग में झुलस गए। लगभग 10 लाख लोग मारे गए और 1 करोड़ से अधिक विस्थापित हुए।
जनसंख्या और पहचान में बदलाव
विभाजन से पहले पाकिस्तान के हिस्से में आने वाले इलाकों सिंध, पंजाब, बलूचिस्तान में हिंदू आबादी लगभग 15% थी। 1951 तक यह घटकर 2% से भी कम रह गई। मंदिर खामोश हो गए और अज़ान की आवाजें गूंजने लगीं। 1956 में पाकिस्तान ने खुद को इस्लामी गणराज्य घोषित कर धर्मनिरपेक्षता को संवैधानिक रूप से नकार दिया। जनरल ज़िया-उल-हक़ के शासन में शरीयत लागू हुई और इस्लाम देश की राजनीति, न्याय और प्रशासन का आधार बन गया।
आज का पाकिस्तान
आज पाकिस्तान में हिंदू आबादी सिर्फ 1.8% रह गई है, जो ज्यादातर सिंध के थरपारकर और मीरपुरखास में केंद्रित है। पूजा की स्वतंत्रता सीमित है और धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले आम हैं।
मिट्टी वही, पहचान बदली
पाकिस्तान कभी "हिंदू राष्ट्र" नहीं था, लेकिन वह निश्चित ही हिंदू संस्कृति की भूमि थी। वहां की मिट्टी में वेदों की गूंज, बुद्ध की करुणा और संस्कृत की ध्वनि थी। पर समय, सत्ता और सिद्धांतों ने उस पहचान को मिटा दिया।
मनुस्मृति में कहा गया है
“धर्म एव हतो हंति, धर्मो रक्षति रक्षितः।” जो धर्म का नाश करता है, वह स्वयं नष्ट होता है। पाकिस्तान का इतिहास इसी श्लोक का उदाहरण है। कभी दीप जलता था, अब अज़ान की गूंज है- यही है पाकिस्तान का ऐतिहासिक विरोधाभास।