

मार्च 2025 की होली की रात जली हुई नकदी ने देश की न्यायिक व्यवस्था में भूचाल ला दिया। जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से मिली रकम ने उन्हें कठघरे में ला खड़ा किया। अब सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सवाल उठाए हैं—क्या ये सिर्फ आग थी या उसके पीछे कोई गहरी साजिश?
जस्टिस यशवंत वर्मा (सोर्स इंटरनेट)
New Delhi: दिल्ली की एक ठंडी रात, आग की एक लपट, और राख में छुपा था वो सच जिसने भारत की न्यायपालिका को हिला दिया। मामला है जस्टिस यशवंत वर्मा से जुड़ा, जो मार्च 2025 में अचानक सुर्खियों में आ गए जब होली की रात उनके सरकारी आवास में आग लगी और फायर ब्रिगेड की टीम को जली हुई नकदी मिली। ये महज एक दुर्घटना नहीं, बल्कि एक संभावित भ्रष्टाचार का विस्फोटक संकेत था।
सूों के अनुसार, कैश कांड के बाद CJI संजीव खन्ना ने इस गंभीर मामले की जांच के लिए एक तीन सदस्यीय आंतरिक समिति गठित की, जिसमें शीला नागू (C.J. पंजाब-हरियाणा), जीएस संधवालिया (C.J. हिमाचल), और अनु शिवरामन (जज, कर्नाटक हाईकोर्ट) शामिल थे। इस समिति ने अपनी जांच के बाद जस्टिस वर्मा को कदाचार का दोषी ठहराया और उन्हें पद से हटाने की सिफारिश राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से की गई।
इस सिफारिश के खिलाफ जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। बुधवार को हुई सुनवाई में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से इस जांच समिति की रिपोर्ट को अमान्य करार देने की मांग की। उनका तर्क था कि उन्हें व्यक्तिगत रूप से सुनवाई का मौका नहीं दिया गया, और समिति ने एकतरफा निष्कर्ष निकालते हुए उन्हें दोषी ठहराया।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह शामिल थे, ने जस्टिस वर्मा से कई तीखे सवाल पूछे। कोर्ट ने पूछा कि अगर वे रिपोर्ट से असहमत थे तो आंतरिक समिति के सामने अपनी आपत्ति क्यों नहीं जताई? उन्होंने इसे सुप्रीम कोर्ट में ही क्यों चुनौती दी?
जस्टिस वर्मा की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल पेश हुए और उन्होंने कोर्ट में जोर दिया कि यह कार्यवाही संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि इस तरह की रिपोर्ट के आधार पर किसी जज को हटाना खतरनाक मिसाल बन सकती है।
इस हाई-प्रोफाइल सुनवाई के अंत में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। अब पूरे देश की नजर इस पर टिकी है कि क्या वाकई में जस्टिस वर्मा निर्दोष साबित होंगे, या उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।
याचिका में यह भी मांग की गई है कि CJI द्वारा 8 मई को भेजी गई सिफारिश को रद्द किया जाए, क्योंकि वह पूर्वाग्रहपूर्ण और असंवैधानिक है।