हिंदी
जयपुर के नीरजा मोदी स्कूल में 9 वर्षीय छात्रा अमायरा ने चौथी मंजिल से कूदकर अपनी जान दे दी। इस दर्दनाक घटना ने बच्चों में बढ़ते मानसिक दबाव और पढ़ाई के तनाव पर गंभीर सवाल उठाए हैं। क्या बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर पर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है?
अमायरा ने क्यों चुना इतना दर्दनाक रास्ता?
Jaipur: राजधानी जयपुर के मानसरोवर स्थित नीरजा मोदी स्कूल में शनिवार दोपहर को एक बड़ी घटना घटी। चौथी कक्षा में पढ़ने वाली 9 वर्षीय छात्रा अमायरा ने स्कूल की चौथी मंजिल से कूदकर अपनी जान दे दी। इस हादसे में छात्रा की मौत हो गई, जिसके बाद स्कूल प्रशासन पर आरोप लगे कि उसने सबूतों को मिटाने की कोशिश की। इस घटना ने समाज में एक गंभीर सवाल उठाया है, कि आखिर इतनी छोटी उम्र में एक बच्ची को आत्महत्या जैसा कदम उठाने पर क्या मजबूर कर सकता है?
यह घटना केवल एक हादसा नहीं है, बल्कि यह बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और पढ़ाई के बढ़ते दबाव के बारे में एक गहरी और चिंताजनक चर्चा को जन्म देती है। क्या बच्चों को इतनी छोटी उम्र में अत्यधिक पढ़ाई का दबाव देना सही है? क्या परिवार और स्कूल बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर गंभीर हैं? यह सवाल आज की व्यवस्था और समाज को झकझोर रहा है।
आजकल के बच्चों में बढ़ता मानसिक दबाव किसी से छिपा नहीं है। स्कूलों में बच्चों से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद की जाती है, लेकिन क्या किसी ने कभी यह सोचा है कि क्या इन अपेक्षाओं का बच्चों पर क्या असर हो रहा है? बच्चों को न केवल बेहतर अंक लाने के लिए प्रेरित किया जाता है, बल्कि अक्सर उनके अंदर यह दबाव भी होता है कि वे हमेशा सर्वश्रेष्ठ बनें।
Jaipur Road Accident: जयपुर में 12 घंटे बाद दूसरा भयानक सड़क हादसा, करीब 8 लोगों की मौत
विशेषज्ञों का कहना है कि आज के बच्चों में मानसिक तनाव की बढ़ती दर मुख्य रूप से दो कारणों से है: एक, शिक्षा प्रणाली का अत्यधिक प्रतिस्पर्धी माहौल और दूसरा, परिवारों का बच्चों पर अधिक दबाव डालना। छोटे बच्चों को यह महसूस कराया जाता है कि अगर वे अच्छे अंक नहीं लाते, तो वे किसी से कम हैं।

आज के समय में बच्चों के लिए केवल अच्छे अंक लाना ही सबसे बड़ी सफलता मानी जाती है। लेकिन इस बढ़ते दबाव के कारण बच्चों की मानसिक स्थिति कमजोर हो रही है। इसके चलते, कई बच्चे अवसाद और तनाव का शिकार हो रहे हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी करना एक खतरनाक कदम हो सकता है। उनके मानसिक विकास की सही दिशा में देखभाल करने की जरूरत है, ताकि वे अपनी भावनाओं और दबावों को अच्छे से समझ सकें और उन्हें ठीक से प्रबंधित कर सकें।
स्कूलों का प्रमुख कार्य बच्चों को शिक्षा देना है, लेकिन क्या यह केवल पढ़ाई तक ही सीमित होना चाहिए? मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने के बिना बच्चों की शिक्षा अधूरी है। मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं को छुपाना, नज़रअंदाज़ करना या उन पर चर्चा न करना समस्या का समाधान नहीं हो सकता।
Rajasthan: जयपुर में केरोसिन ऑयल के गोदाम में लगी भीषण आग, धमाकों से उड़ी छत
स्कूलों को चाहिए कि वे बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी एक प्रणाली विकसित करें, जिसमें वे अपनी भावनाओं को स्वतंत्र रूप से व्यक्त कर सकें और आवश्यकता होने पर काउंसलिंग जैसी सेवाओं का लाभ उठा सकें।