

गुजरात हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर कोई व्यक्ति खुद को धर्म परिवर्तन का ‘पीड़ित’ बताता है, लेकिन बाद में दूसरों पर धर्म बदलने का दबाव डालता है, तो उसके खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
गुजरात हाईकोर्ट
Ahmedabad: गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण आदेश दिया, जिसमें उसने कहा कि अगर कोई व्यक्ति धर्म परिवर्तन का 'पीड़ित' होने का दावा करता है, लेकिन बाद में वही व्यक्ति दूसरों पर धर्म परिवर्तन के लिए दबाव डालता है, तो उस पर भी कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। जस्टिस नीरजर देसाई की अदालत ने यह टिप्पणी 1 अक्टूबर 2025 को कुछ याचिकाएं खारिज करते हुए दी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धर्म परिवर्तन में दबाव डालने या लालच देने की सजा भी तय की जाएगी।
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि वे पहले हिंदू थे और दबाव में आकर इस्लाम धर्म को अपना चुके थे, इसलिए वे पीड़ित थे और आरोपी नहीं हो सकते। हालांकि, अदालत ने यह पाया कि वे ही अब दूसरों को धर्म परिवर्तन के लिए दबाव डाल रहे थे और उनका उद्देश्य दूसरों को भी इस्लाम धर्म में परिवर्तन करने के लिए प्रेरित करना था। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि कोई भी व्यक्ति अगर दूसरे को धर्म परिवर्तन के लिए प्रभावित करता है, तो वह अपराध की श्रेणी में आएगा, चाहे वह पहले खुद को पीड़ित बताता हो।
गुजरात हाईकोर्ट
यह मामला गुजरात के भरूच जिले के आमोद पुलिस थाना क्षेत्र से जुड़ा हुआ है, जहां एफआईआर में आरोप है कि तीन व्यक्तियों ने करीब 37 हिंदू परिवारों के 100 से अधिक लोगों को लालच देकर इस्लाम धर्म में धर्मांतरित किया। इन आरोपों के अनुसार, जब किसी व्यक्ति ने इसका विरोध किया, तो उसे धमकाया गया, जिसके बाद उसने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।
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इस मामले में एक विदेशी नागरिक पर भी आरोप लगाया गया है कि उसने धर्म परिवर्तन के लिए फंडिंग की थी। अदालत ने इस मामले में राहत देने से इनकार कर दिया और कहा कि आरोपी विदेशी नागरिक बार-बार भारत आ चुका है और जांच में सहयोग नहीं कर रहा है। अदालत ने यह भी कहा कि आरोपी ने भारतीय दंड संहिता की धारा 120B (षड्यंत्र), 153B (समुदायों में वैमनस्य फैलाना) और 295A (धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले कृत्य) के तहत अपराध किया है।
गुजरात हाईकोर्ट का यह आदेश धार्मिक स्वतंत्रता और सुरक्षा से जुड़ा महत्वपूर्ण मामला है। अदालत ने अपने आदेश में यह कहा कि किसी भी व्यक्ति को धर्म परिवर्तन के लिए दूसरों को लालच या दबाव डालने की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह फैसला न केवल एक व्यक्ति के व्यक्तिगत धर्म के अधिकार की रक्षा करता है, बल्कि समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाने और असमंजस की स्थिति को भी रोकता है।
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अदालत ने इस फैसले के माध्यम से यह भी संदेश दिया है कि धर्म परिवर्तन को लेकर किसी प्रकार की हिंसा या दवाब, चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक, को सहन नहीं किया जाएगा। धर्म का पालन और उसकी स्वतंत्रता व्यक्तिगत अधिकार है, लेकिन जब धर्म परिवर्तन में किसी प्रकार की हिंसा या जबरदस्ती होती है, तो वह एक अपराध बन जाता है, जिससे समाज में असहमति और तनाव पैदा होता है।
भारत में धर्म परिवर्तन को लेकर कानूनी व्यवस्था पर काफी बहस होती रही है। जबकि संविधान धर्म की स्वतंत्रता को एक मौलिक अधिकार मानता है, यह सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है कि धर्म परिवर्तन के नाम पर किसी प्रकार का दबाव, लालच या धोखाधड़ी न हो। गुजरात हाईकोर्ट का यह फैसला भारत में धर्म परिवर्तन के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण मिसाल प्रस्तुत करता है।