हिंदी
भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई रविवार को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। अपने कार्यकाल में उन्होंने अनुच्छेद 370, चुनावी बॉन्ड और बुलडोजर कार्रवाई जैसे कई ऐतिहासिक मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दिलचस्प है कि रिटायरमेंट के अगले दिन 24 नवंबर को उनका जन्मदिन भी है।
CJI बी. आर. गवई
New Delhi: देश के 52वें सीजेआई (CJI) के के रूप में दायित्व संभाले वाले भारत के मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई रविवार (23 नवंबर) को अपने पद से सेवानिवृत्त हो रहे हैं। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में उनका अंतिम कार्य दिवस था। अब आपको जानकर हैरानी होगी कि रिटायरमेंट के अगले दिन यानी कि 24 नवंबर को बी. आर. गवई का जन्मदिन है।
कब हुआ था जन्म?
दरअसल, 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में जन्मे गवई देश के उन चुनिंदा न्यायाधीशों में से एक हैं, जिन्होंने न्यायपालिका में सामाजिक न्याय की परंपरा को मजबूती प्रदान की। वे अनुसूचित जाति समुदाय से आने वाले भारत के दूसरे मुख्य न्यायाधीश भी रहे।
DN Exclusive: जानें कैसे बनते हैं CJI
सामाजिक न्याय की परंपरा को मजबूत करने वाले न्यायाधीश
सीजेआई बनने से पहले गवई बॉम्बे हाई कोर्ट में न्यायाधीश रहे और कई राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में भी अपनी भूमिका निभाई। मुख्य न्यायाधीश रहते हुए वे राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) के पदेन संरक्षक भी रहे, जहां उन्होंने मुफ्त कानूनी सहायता की पहुंच को व्यापक बनाने की दिशा में काम किया।
अमरावती से सर्वोच्च न्यायालय तक की यात्रा
न्यायमूर्ति गवई का प्रारंभिक जीवन सादगी और संघर्ष से भरा रहा। उन्होंने अमरावती के नगरपालिका प्राथमिक विद्यालय से शिक्षा शुरू की। इसके बाद उन्होंने शिरोलकर माध्यमिक शाला और मुंबई के होली नेम हाई स्कूल से आगे की पढ़ाई की। अमरावती विश्वविद्यालय से कॉमर्स और लॉ में स्नातक करने के बाद वर्ष 1985 में उन्होंने विधि व्यवसाय में कदम रखा। अपनी मेहनत और क्षमता के दम पर वे धीरे-धीरे न्यायिक सेवा के शीर्ष पद तक पहुंचे।
CJI गवई का बड़ा बयान, कहा- भारत कानून से चलता है, बुलडोजर से नहीं
ऐतिहासिक निर्णयों में प्रमुख भूमिका
मुख्य न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति गवई ने कई ऐसे फैसलों में अहम भूमिका निभाई, जिन्होंने भारतीय संवैधानिक व्यवस्था और लोकतंत्र पर स्थायी प्रभाव छोड़ा।
1. अनुच्छेद 370 निरसन को संवैधानिक ठहराया
वे उस पांच-न्यायाधीश संविधान पीठ के सदस्य थे, जिसने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के केंद्र सरकार के निर्णय को सर्वसम्मति से वैध ठहराया। निर्णय में यह निर्देश भी शामिल था कि राज्य का दर्जा बहाल किया जाए और सितंबर 2024 तक चुनाव कराए जाएं।
2. चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द करने वाली पीठ में शामिल
न्यायमूर्ति गवई उस ऐतिहासिक निर्णय का भी हिस्सा रहे, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक घोषित किया। अदालत ने माना कि यह योजना नागरिकों के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है।
3. बिना उचित प्रक्रिया बुलडोजर कार्रवाई पर कड़ी टिप्पणी
उन्होंने उस फैसले का सह-लेखन किया, जिसमें राज्यों द्वारा आरोपी व्यक्तियों के घरों को बिना कानूनी प्रक्रिया के ध्वस्त करने की कार्रवाई पर गंभीर सवाल उठाए गए। कोर्ट ने इसे विधि के शासन और शक्तियों के पृथक्करण के खिलाफ माना।
4. अनुसूचित जातियों में उप-वर्गीकरण की अनुमति
सात-न्यायाधीशों की संविधान पीठ में शामिल रहते हुए उन्होंने सकारात्मक कार्रवाई की नीति को और न्यायसंगत बनाने की दिशा में मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने एससी/एसटी वर्गों में क्रीमी लेयर की पहचान और उसे बाहर करने की आवश्यकता पर बल दिया।
5. राहुल गांधी की दोषसिद्धि पर रोक
2023 में वे उस पीठ का हिस्सा थे जिसने आपराधिक मानहानि मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की दोषसिद्धि पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने कहा कि दोषसिद्धि के गंभीर राजनीतिक प्रभाव-विशेषकर संसद सदस्यता से अयोग्यता को देखते हुए तत्काल राहत देना आवश्यक था।