

शरद पूर्णिमा की रात मां लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है और अमृत वर्षा करता है। मान्यता है कि देवी लक्ष्मी इस रात पृथ्वी पर आती हैं और अपने भक्तों को धन, समृद्धि और सौभाग्य का आशीर्वाद देती हैं।
शरद पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी की पूजा का महत्व
New Delhi: आज 6 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा का शुभ पर्व मनाया जा रहा है। यह दिन न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि ज्योतिष और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं के साथ पूर्ण होता है, इसलिए इसे वर्ष की सबसे पवित्र और ऊर्जावान पूर्णिमा माना गया है। इसी रात मां लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है, क्योंकि यह रात समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक मानी जाती है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात मां लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और यह देखती हैं कि कौन व्यक्ति जागकर उनकी आराधना कर रहा है। जो लोग इस रात सच्चे मन से मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं, उनके घर में स्थायी सुख-समृद्धि का वास होता है। इसीलिए इस दिन को “कोजागरी पूर्णिमा” भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है “कौन जाग रहा है?”
कहा जाता है कि जो भक्त इस रात देवी लक्ष्मी की आराधना करते हैं, उनके घर में धन, सौभाग्य और आरोग्य का आशीर्वाद मिलता है। इस रात दीप जलाकर घर को रोशन करना, मां लक्ष्मी को गुलाब या कमल के फूल अर्पित करना और लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
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शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा से अमृत की वर्षा होती है। इस अमृत को ग्रहण करने के लिए लोग दूध और चावल से बनी खीर बनाकर चांदनी में रखते हैं। माना जाता है कि चंद्रमा की किरणों में औषधीय गुण होते हैं, जो खीर में समा जाते हैं। अगले दिन इस खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण करने से शरीर में नई ऊर्जा आती है और मानसिक शांति मिलती है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, चंद्रमा मन, प्रेम और शांति का कारक है, जबकि मां लक्ष्मी धन, सौंदर्य और समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी हैं। जब चंद्रमा अपनी पूर्ण अवस्था में होता है, तब उसकी ऊर्जाएं धरती पर विशेष प्रभाव डालती हैं। इसीलिए इस दिन लक्ष्मी पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में मानसिक स्थिरता और आर्थिक प्रगति दोनों प्राप्त होती हैं।
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शरद पूर्णिमा की रात मां लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र के सामने घी का दीपक जलाएं, गुलाब या कमल का फूल चढ़ाएं और “इंद्रकृत लक्ष्मी स्तोत्र” का पाठ करें। फिर खीर बनाकर रात 10:37 से 12:09 के बीच चांदनी में रखें। सुबह इस खीर को परिवार के साथ प्रसाद के रूप में ग्रहण करें।