Justice Yashwant Varma का क्या होगा भविष्य? कैसे करेंगे खुद को बेदाग साबित

जस्टिस यशवंत वर्मा पर मंडरा रही मुसीबत कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। डाइनामाइट न्यूज़ की इस खास रिपोर्ट में जानिए कि जस्टिस यशवंत वर्मा का आगे क्या होगा

Post Published By: Growthreiki
Updated : 19 August 2025, 11:24 AM IST
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नई दिल्ली: कैश कांड में फंसे दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। जस्टिस यशवंत वर्मा से जुड़े कैश कांड की जांच के लिये सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर तीन सदस्यीय समिति गठित की गई। इस समिति ने देश के मुख्य न्यायाधीश को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है और इस रिपोर्ट के आधार पर सीजेआई संजीव खन्ना में जस्टिस वर्मा पर लगे आरोपों की पुष्टि की है।

डाइनामाइट न्यूज़ के एडिटर-इन-चीफ मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने स्पेशल शो में बताया, सीजेआई ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के आधार पर जस्टिस वर्मा से अपने पद से इस्तीफा देने को कहा है। हम आज आपको बताएंगे आखिर क्या है वो पूरा कैश कांड, जिसने एक न्यायमूर्ति को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है। इसके साथ ही हम बताएंगे जस्टिस वर्मा का पूरा इतिहास और इसके साथ ही बताएंगे की आखिर क्या-क्या कार्रवाई हो सकती है जस्टिस वर्मा के खिलाफ।

कौन हैं जस्टिस वर्मा

न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा मूल रूप से उत्तर प्रदेश के रहने वाले हं। उनका जन्म 6 जनवरी 1969 को इलाहाबाद यानि अबके प्रयागराज में हुआ था। लेकिन कॉलेज की पढ़ाई के लिये उन्होंने दिल्ली का रुख किया और दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से बीकॉम (ऑनर्स) की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने 1992 में मध्य प्रदेश के रीवा विश्वविद्यालय से LL.B. की डिग्री हासिल की। 8 अगस्त 1992 को उन्होंने बतौर एक वकील काम करना शुरू किया। एक अधिवक्ता के रूप में उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत की, जहां उन्होंने संवैधानिक, औद्योगिक विवाद, कॉर्पोरेट, कराधान, पर्यावरण और अन्य दीवानी मामलों में विशेषज्ञता हासिल की। 2006 से 2014 तक वे इलाहाबाद हाई कोर्ट के विशेष वकील भी रहे। इसके बाद उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त किया गया। कैश कांड में फंसने के बाद उनको वापस इलाहाबाद हाई कोर्ट भेजा गया।

तीन-सदस्यीय समिति ने रिपोर्ट CJI को सौंपी

दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन जज जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास पर आग लगने के बाद कथित रूप से नकदी जलाए जाने का मामला अब सुप्रीम कोर्ट की इन-हाउस जांच तक पहुंच चुका है। इस मामले की जांच के लिए गठित तीन-सदस्यीय समिति ने अपनी रिपोर्ट 4 मई को मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना को सौंप दी है। समिति में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जीएस संधावालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट की जस्टिस अनु शिवरामन शामिल थे।

जांच समिति ने 25 मार्च से अपनी प्रक्रिया शुरू की थी। यह मामला 14 मार्च की शाम का है, जब जस्टिस वर्मा के घर में आग लग गई थी। आरोप है कि फायर ब्रिगेड को मौके पर जली हुई नकदी के बंडल मिले, जिसकी सूचना दिल्ली पुलिस कमिश्नर ने दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को दी। बाद में एक वीडियो भी सामने आया जिसमें जलती हुई नकदी दिखाई दी। उस समय जस्टिस वर्मा और उनकी पत्नी दिल्ली में नहीं थे, वे मध्य प्रदेश गए हुए थे। घर में केवल उनकी बेटी और वृद्ध मां मौजूद थीं।

जस्टिस वर्मा ने सभी आरोपों से किया इनकार

इस घटना के बाद जस्टिस वर्मा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। उन्होंने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि उन्हें फंसाने की साजिश रची जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने इन आरोपों की जांच के लिए 22 मार्च को एक इन-हाउस जांच समिति गठित की। इस बीच, सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट की प्रारंभिक रिपोर्ट और जस्टिस वर्मा के जवाब को भी सार्वजनिक कर दिया।

इलाहाबाद हाई कोर्ट में तबादला

आरोपों के चलते जस्टिस वर्मा को उनके मूल स्थान इलाहाबाद हाई कोर्ट भेज दिया गया है, जहां उन्होंने हाल ही में पद और गोपनीयता की शपथ ली है। हालांकि, CJI के निर्देश पर उनका न्यायिक कार्य अस्थायी रूप से रोक दिया गया है। उनके तबादले के विरोध में इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने हड़ताल भी की थी।

कानूनी सलाह

जांच शुरू होते ही जस्टिस वर्मा ने वरिष्ठ वकीलों की एक टीम से कानूनी सलाह ली। इस टीम में वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ अग्रवाल, अरुंधति काटजू, तारा नरूला और स्तुति गुजराल शामिल थे। इन-हाउस जांच लंबित होने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ FIR दर्ज करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया।

मुख्य न्यायाधीश खन्ना के कार्यकाल में हो सकती है अंतिम कार्रवाई

CJI संजीव खन्ना 13 मई को सेवानिवृत्त हो रहे हैं और वे इस मामले में कार्रवाई अपने कार्यकाल के भीतर ही पूरी करना चाहते हैं। यदि जस्टिस वर्मा इस्तीफा नहीं देते, तो अगला कदम राष्ट्रपति की सिफारिश पर संसद में महाभियोग प्रस्ताव हो सकता है। प्रस्ताव लाने के लिए लोकसभा में 100 और राज्यसभा में 50 सांसदों का समर्थन जरूरी होगा। दोनों सदनों में प्रस्ताव दो-तिहाई बहुमत से पास होने पर राष्ट्रपति जज को पद से हटा सकते हैं।

अब क्या होंगे अगले कदम?

अगर जांच समिति की रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा के खिलाफ आपराधिक आचरण की पुष्टि होती है, तो CBI, प्रवर्तन निदेशालय (ED) या आयकर विभाग जांच शुरू कर सकते हैं। चूंकि वे एक मौजूदा जज हैं, इसलिए उनके खिलाफ अभियोजन शुरू करने के लिए राष्ट्रपति की अनुमति आवश्यक होगी। यदि दोषी साबित होते हैं और महाभियोग के तहत पद से हटाए जाते हैं, तो उन्हें पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभों से वंचित किया जा सकता है।

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