नई दिल्ली में तालिबान प्रेस कॉन्फ्रेंस: आखिर क्यों हुआ महिला पत्रकारों पर बैन? सुर्खियों में सियासी गरमाहट

तालिबान ने दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों को शामिल करने से मना कर दिया, जिससे भारत में व्यापक आलोचना हुई। यह घटना महिलाओं की भागीदारी पर तालिबान के प्रतिबंधों को फिर से उजागर कर रही है। तालिबान के इस फैसले पर राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर कड़ी प्रतिक्रिया आई है।

Updated : 11 October 2025, 12:51 PM IST
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New Delhi: शुक्रवार को नई दिल्ली में अफगान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी की प्रेस कॉन्फ्रेंस एक विवाद के कारण सुर्खियों में आई, लेकिन यह विवाद उनके शब्दों से नहीं बल्कि महिला पत्रकारों को कार्यक्रम में प्रवेश न दिए जाने से जुड़ा था। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में कोई महिला पत्रकार मौजूद नहीं थी, जो तालिबान के कड़े लैंगिक प्रतिबंधों की एक बार फिर से पुष्टि करता है। भारत सरकार द्वारा महिला पत्रकारों को भी शामिल करने का सुझाव दिया गया था, लेकिन यह प्रस्ताव तालिबान अधिकारियों द्वारा ठुकरा दिया गया।

महिला पत्रकारों पर प्रतिबंध: क्या वजह थी?

तालिबान शासन के तहत महिलाओं के अधिकारों पर लंबे समय से प्रतिबंध और बहस होती आ रही है। अफगानिस्तान में महिलाओं की सार्वजनिक जगहों, शिक्षा, रोजगार और मीडिया में भागीदारी पर कड़ी पाबंदियां हैं। मुत्ताकी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिलाओं को प्रवेश न देने का फैसला भी इसी पारंपरिक और धार्मिक दृष्टिकोण का हिस्सा माना जा रहा है। तालिबान अधिकारियों का तर्क है कि यह निर्णय स्थानीय रीति-रिवाजों और कानूनों के अनुरूप था।

हालांकि, भारतीय पक्ष ने महिला पत्रकारों को भी शामिल करने का आग्रह किया, लेकिन इस पर कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली। माना जा रहा है कि यह निर्णय तालिबान के साथ मौजूद अधिकारियों ने ही लिया था, जो महिलाओं की भागीदारी पर प्रतिबंध के प्रति सख्त रुख रखते हैं।

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इस फैसले की आलोचना

भारत में इस घटना पर कड़ी प्रतिक्रिया देखी गई। पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि पुरुष पत्रकारों को उस वक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस छोड़ देनी चाहिए थी जब उन्हें पता चला कि महिला पत्रकारों को शामिल नहीं किया गया। चिदंबरम ने एक्स पर लिखा, "मैं इस बात से स्तब्ध हूँ कि महिला पत्रकारों को बाहर रखा गया। यह असहनीय है।"

वहीं, कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस मामले पर अपनी स्पष्ट स्थिति जाहिर करने को कहा। उन्होंने कहा कि महिलाओं के अधिकारों को केवल चुनावों के दौरान दिखावा न बनाएं। उन्होंने पूछा कि भारत में महिला पत्रकारों का अपमान कैसे सहन किया जा सकता है, जबकि देश में महिलाएं देश की रीढ़ हैं।

Taliban Press Conference

तालिबान का दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस

तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि तालिबान के मंत्री को महिला पत्रकारों को बाहर रखने की अनुमति देना भारत की हर महिला का अपमान है। उन्होंने इसे "रीढ़विहीन पाखंडियों का शर्मनाक समूह" बताया।

विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया

इस तीखी आलोचना के बीच, भारत के विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में भारत की कोई भूमिका नहीं थी। विदेश मंत्रालय ने मीडिया को बताया कि मुत्ताकी द्वारा आयोजित प्रेस वार्ता पूरी तरह तालिबान अधिकारियों के निर्णय पर आधारित थी। भारत ने महिला पत्रकारों को शामिल करने का सुझाव जरूर दिया था, लेकिन तालिबान की ओर से उसे अस्वीकार कर दिया गया।

तालिबान की सफाई

प्रेस कॉन्फ्रेंस में, मुत्ताकी ने महिलाओं के अधिकारों पर सवालों को टालते हुए कहा कि हर देश के अपने रीति-रिवाज, कानून और सिद्धांत होते हैं, जिन्हें सम्मान देना चाहिए। उन्होंने दावा किया कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद अफगानिस्तान में स्थिति में सुधार हुआ है और वहां शांति स्थापित हुई है।

उन्होंने कहा, "तालिबान के शासन से पहले हर दिन 200-400 लोग मारे जाते थे। अब कानून लागू हैं और सभी के अधिकार सुरक्षित हैं। जो दुष्प्रचार कर रहे हैं, वे गलत हैं।" मुत्ताकी की यह सफाई आधी आबादी की आवाज को अनदेखा करती है, क्योंकि महिला पत्रकारों की गैरमौजूदगी इस बात का सूचक है कि तालिबान शासन में महिलाओं की भागीदारी सीमित है।

क्या यह फैसला सही था?

महिला पत्रकारों को प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल न करना न केवल भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के लिए एक संवेदनशील मुद्दा है, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तालिबान के प्रति प्रश्न भी खड़े करता है। प्रेस की स्वतंत्रता और महिला अधिकारों को सुनिश्चित करना आधुनिक समाज की बुनियादी आवश्यकता है।

तालिबान का यह निर्णय महिला पत्रकारों की आवाज को दबाने और उनकी भूमिका को सीमित करने जैसा माना जा सकता है, जो मानवाधिकारों के लिए एक बड़ा झटका है। भारत जैसे देश के लिए, जहां महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया जाता है, यह घटना असहनीय और अपमानजनक है।

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दूसरी ओर, तालिबान का तर्क है कि वे अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार काम कर रहे हैं, जिसे हर देश की संप्रभुता का हिस्सा माना जाना चाहिए। लेकिन वैश्विक मानकों के हिसाब से यह दृष्टिकोण अविकसित और लैंगिक असमानता को बढ़ावा देने वाला है।

यह सवाल भी खड़ा होता है कि क्या किसी देश की सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं के नाम पर महिलाओं की आवाज दबाई जा सकती है? इस मामले में वैश्विक समुदाय की भी भूमिका महत्वपूर्ण है कि वह लैंगिक समानता और प्रेस की स्वतंत्रता के लिए लगातार आवाज उठाए।

तालिबान की यह नीति न केवल अफगानिस्तान की अंतरराष्ट्रीय छवि को धूमिल कर रही है, बल्कि उस देश की आधी आबादी के लिए विकास और न्याय के रास्ते भी बंद कर रही है। महिला पत्रकारों की अनुपस्थिति इस बात का प्रतीक है कि तालिबान की शांति आधी आबादी की अनदेखी पर आधारित है, जो लंबे समय तक टिकाऊ नहीं हो सकती।

Location : 
  • New Delhi

Published : 
  • 11 October 2025, 12:51 PM IST