

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अमेरिका पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि अमेरिका भारत और चीन पर दबाव बनाकर रूस से ऊर्जा संबंध तोड़वाना चाहता है, लेकिन यह रणनीति उलटा असर डालेगी। रूस से सस्ती ऊर्जा खरीदना उनके लिए फायदेमंद है और वे अमेरिकी दबाव में ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे जिससे देश को नुकसान हो।
पुतिन का अमेरिका पर हमला
Moscow: रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अमेरिका की कड़ी आलोचना करते हुए कहा है कि वाशिंगटन भारत और चीन जैसे देशों पर अनावश्यक दबाव डाल रहा है और उन्हें रूस के साथ ऊर्जा संबंध तोड़ने के लिए मजबूर कर रहा है। गुरुवार, 2 अक्टूबर को एक बयान में, पुतिन ने चेतावनी दी कि यह नीति न केवल विफल होगी, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी इसके गंभीर परिणाम होंगे।
पुतिन ने कहा, 'भारत और चीन खुद को अपमानित नहीं होने देंगे। ये दोनों प्राचीन और आत्मनिर्भर सभ्यताएँ हैं जो किसी भी बाहरी दबाव में अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेंगी।'
रूसी राष्ट्रपति ने अमेरिकी नीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि एक ओर अमेरिका खुद रूस से संवर्धित यूरेनियम आयात करता है, वहीं दूसरी ओर वह अन्य देशों से रूसी ऊर्जा से दूर रहने का आग्रह करता है। उन्होंने इस दोहरे रवैये को वैश्विक राजनीति के लिए खतरनाक बताया।
पुतिन ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी पूरा भरोसा जताया। उन्होंने कहा कि भारत सरकार और जनता जानती है कि रूस से सस्ती ऊर्जा खरीदना उनके लिए फायदेमंद है और वे अमेरिकी दबाव में ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे जिससे देश को नुकसान हो।
भारत-चीन नहीं झुकेंगे: पुतिन
हाल ही में अमेरिका ने कुछ भारतीय निर्यातों पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाया, जिससे कुल टैरिफ 50% हो गया। इसे भारत पर रूस से तेल और गैस खरीदना बंद करने का दबाव बनाने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।
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पुतिन ने चेतावनी दी कि अगर अमेरिका अपने व्यापारिक साझेदारों पर इतने ऊँचे टैरिफ लगाता है, तो इससे वैश्विक कीमतें और बढ़ेंगी। इसलिए अमेरिकी फेडरल रिजर्व को ब्याज दरें ऊँची रखने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, जिससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को ही नुकसान हो सकता है।
इससे पहले पुतिन ने अमेरिका की "औपनिवेशिक मानसिकता" पर सवाल उठाया था। उन्होंने कहा था कि उपनिवेशवाद का युग समाप्त हो चुका है और भारत और चीन जैसे देश किसी भी "अल्टीमेटम" के आगे नहीं झुकेंगे।
रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने पुतिन के विचारों को दोहराते हुए कहा कि भारत और चीन जैसे देश स्वतंत्र विदेश नीतियाँ अपनाते हैं और अमेरिकी शर्तों पर काम नहीं करेंगे।