नेपाल में Gen-Z के गुस्से ने खोली अर्थव्यवस्था की पोल: सोशल मीडिया बैन बना फ्यूज़, नुकसान बेहिसाब

नेपाल में हाल ही में हुए Gen-Z विरोध प्रदर्शनों ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। सोशल मीडिया बैन से शुरू हुआ आंदोलन संसद जलाने तक पहुंच गया। राजनीतिक अस्थिरता, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से परेशान युवा पीढ़ी ने तीखी प्रतिक्रिया दी।

Post Published By: Nidhi Kushwaha
Updated : 10 September 2025, 6:12 PM IST
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Kathmandu: नेपाल में हाल ही में हुए विरोध प्रदर्शनों ने देश की राजनीतिक और आर्थिक जड़ों को झकझोर कर रख दिया है। सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने के सरकार के फैसले ने युवाओं, खासकर जेन-ज़ेड (Gen-Z) वर्ग को सड़कों पर उतरने को मजबूर कर दिया। इस पीढ़ी के लिए डिजिटल स्पेस सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति, संवाद और दुनिया से जुड़ने का जरिया है।

संसद भवन में लगाई आग

सरकार ने जैसे ही सोशल मीडिया पर पाबंदी लगाई, पूरे देश में प्रदर्शन भड़क उठे। संसद भवन को आग के हवाले कर दिया गया, जिसकी लागत 43.5 मिलियन डॉलर बताई जाती है। इसके अलावा, नेपाल में विदेशी मदद से चल रहे कई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स भी ठप पड़ गए हैं। अनुमान है कि इससे सरकार को करोड़ों का नुकसान हुआ है।

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पीएम ओली को देना पड़ा इस्तीफा

हालात इतने बिगड़े कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को पद से इस्तीफा देना पड़ा। लेकिन सवाल सिर्फ सोशल मीडिया तक सीमित नहीं था। युवाओं का कहना है कि यह केवल बहाना है, असल मुद्दा है भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और वर्षों से चला आ रहा राजनीतिक अस्थिरता का दर्द। प्रदर्शन के दौरान 22 लोगों की मौत हो गई, जिसने सरकार के रवैये पर और सवाल खड़े कर दिए।

नेपाल का राजनीतिक इतिहास हमेशा ही उथल-पुथल से भरा रहा है। 2008 में राजशाही समाप्त होने के बाद लोकतंत्र आया, लेकिन राजनीतिक स्थिरता आज तक नहीं आ सकी। सत्ता में बैठे नेता लगातार बदलते रहे और आम जनता के जीवन में कोई खास सुधार नहीं हुआ। मौजूदा समय में भी किसी एक पार्टी के पास स्पष्ट बहुमत नहीं है, जिससे नीति निर्धारण और शासन दोनों प्रभावित होते हैं।

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कितनी है नेपाल की जीडीपी

राजनीतिक अस्थिरता के बीच नेपाल ने गरीबी उन्मूलन के मोर्चे पर कुछ हद तक सफलता पाई है। 1995 में जहां 55% आबादी अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा से नीचे थी, वहीं 2023 तक यह घटकर 0.4% रह गई। हालांकि, यह उपलब्धि घरेलू अर्थव्यवस्था के दम पर नहीं, बल्कि विदेशों में काम कर रहे नेपाली नागरिकों की कमाई से हासिल हुई है। आज नेपाल की जीडीपी का करीब 30% हिस्सा रेमिटेंस से आता है।

हर चौथे घर से कोई सदस्य विदेश में काम करता है और सोशल मीडिया उनके संपर्क का सबसे सस्ता और कारगर साधन है। सरकार के बैन से न केवल युवाओं की अभिव्यक्ति छिनी, बल्कि परिवारों के संवाद का जरिया भी खतरे में पड़ गया। यही कारण है कि आंदोलन इतनी तेजी से फैला और हिंसक हो गया।

तीन चरणों में बंटी अर्थव्यवस्था

विश्व बैंक के अनुसार, नेपाल की अर्थव्यवस्था तीन चरणों में बंटी रही है, माओवादी संघर्ष काल, पुनर्गठन काल और संकटों से घिरा वर्तमान काल। इन सभी दौर में नेपाल की विकास दर अपने पड़ोसियों की तुलना में कमजोर रही है। हाई रेमिटेंस फ्लो से भले ही विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत हुआ हो, लेकिन इसका असर घरेलू उत्पादकता और निर्यात पर नकारात्मक रहा है। अब जब प्रवासी लौटते हैं, तो उन्हें स्थानीय अर्थव्यवस्था में रोजगार या अवसर नहीं मिलते। यह दिखाता है कि नेपाल की अर्थव्यवस्था ऊपरी तौर पर स्थिर दिखती है, लेकिन अंदर से बेहद कमजोर है। और यह हालिया Gen-Z प्रदर्शन इसी छिपी हुई विस्फोटक स्थिति का इशारा है।

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