

हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहे नेपाल को लेकर बड़ा अपडेट सामने आया है। सुशीला कार्की अब नेपाल की कमान संभाल सकती है। उसको देश के एक वर्ग का बड़ा समर्थन मिला है।
सुशीला कार्की
Kathmandu: नेपाल पिछले कुछ दिनों से हिंसा की चपेट में है। आगजनी, तोड़फोड़ और हिंसा के कारण नेपाल के हालात बेहद भयावह हैं। अब नेपाल राजनीतिक अस्थिरता से जूझने लगा है। नेपाल की कमान कौन संभालेगा, यह सबसे बड़ा सवाल है। नेपाल को लेकर बड़ा अपडेट सामने आया है। सुशीला कार्की अब नेपाल की कमान संभाल सकती है। उसको देश के एक वर्ग का बड़ा समर्थन मिला है।
दरअसल, नेपाल में हिंसा के बाद स्थिति अब सामान्य हो रही है। इस बीच देश के राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि सुशीला कार्की को नेपाल का अंतरिम प्रधानमंत्री बनाया जा सकता है। सुशीला कार्की नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रही हैं और उनका नाम इस संकट की घड़ी में स्थिरता लाने के लिए विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।
सुशीला कार्की का जन्म 7 जून 1952 को मोरंग जिले के बिराटनगर में हुआ। उन्होंने महेन्द्र मोरंग कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की और इसके बाद बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में मास्टर्स की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उन्होंने नेपाल की त्रिभुवन यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री लेकर वकालत शुरू की। 1979 से उन्होंने कानूनी पेशे में कदम रखा और अपनी काबिलियत से धीरे-धीरे न्यायिक क्षेत्र में नाम कमाया।
2007 में सुशीला कार्की को वरिष्ठ अधिवक्ता का दर्जा मिला और 2009 में वे नेपाल सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता न्यायाधीश बनीं। 2010 में उन्हें स्थायी न्यायाधीश बनाया गया। उनके न्यायिक जीवन का सबसे महत्वपूर्ण अध्याय 2016 से 2017 तक का है जब वे नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यरत रहीं। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े कदम उठाए और न्यायपालिका में सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण फैसले दिए।
उनके फैसलों में महिलाओं को अपने बच्चों को नागरिकता देने का अधिकार देना, पुलिस नियुक्ति में पारदर्शिता लाना, फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना और भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में सख्ती शामिल है। इन कदमों के चलते उन्हें जनता के बीच लोकप्रियता मिली, लेकिन कुछ राजनीतिक दलों ने उन पर पूर्वाग्रह और कार्यपालिका में हस्तक्षेप का आरोप लगाते हुए 2017 में महाभियोग प्रस्ताव भी पेश किया था। हालांकि, जन समर्थन और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते यह प्रस्ताव वापस ले लिया गया।
रिटायरमेंट के बाद सुशीला कार्की ने साहित्यिक क्षेत्र में भी अपनी सक्रियता दिखाई। उन्होंने ‘न्याय’ नाम से अपनी आत्मकथा लिखी, जिसमें उन्होंने अपने जीवन के संघर्षों, न्यायिक लड़ाइयों और राजनीतिक दबावों का विस्तृत वर्णन किया। इसके अलावा उन्होंने ‘कारा’ नामक उपन्यास भी लिखा, जो उनके हिरासत काल से प्रेरित है और महिलाओं के सामाजिक संघर्षों को उजागर करता है।
नेपाल में हाल ही में हुए तख्तापलट के बाद राजनीतिक अस्थिरता ने देश को गहरे संकट में डाल दिया है। विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच मतभेद और जनसंघर्ष के कारण सरकार का संचालन प्रभावित हुआ है। इस स्थिति में सुशीला कार्की का नाम एक संतुलित और न्यायप्रिय नेतृत्व के रूप में सामने आ रहा है, जो देश को स्थिरता और विकास के मार्ग पर ले जा सके।