

अमेरिका और रूस के बीच बढ़ते तनाव ने एक बार फिर दुनिया को 1962 के क्यूबा मिसाइल संकट की याद दिला दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हालिया फैसले और रूस के पूर्व राष्ट्रपति मेदवेदेव के बयानों के बीच परमाणु संघर्ष की आशंका बढ़ती दिखाई दे रही है।
अमेरिका-रूस तनाव
New Delhi: अमेरिका और रूस के बीच हालिया बयानबाजी और सैन्य गतिविधियों ने एक बार फिर वैश्विक स्तर पर चिंता बढ़ा दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा दो परमाणु पनडुब्बियों को रूस की सीमा के पास तैनात करने के आदेश ने दुनिया को 1962 के क्यूबा मिसाइल संकट की भयावह याद दिला दी है। ट्रंप ने इस कदम को "फाइनल अल्टीमेटम" तक कहा है, जो अंतरराष्ट्रीय समुदाय में तनाव और भय का कारण बन गया है।
ट्रंप का जवाब और रूस की चेतावनी
रूस के पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव ने हाल में दिए एक बयान में अमेरिका को अप्रत्यक्ष परमाणु हमले की चेतावनी दी थी। जवाब में, ट्रंप ने कड़ा रुख अपनाते हुए दो न्यूक्लियर सबमरीन को रूस के करीब भेजने का आदेश दिया। इस कदम को रूस ने "उकसावे की कार्यवाही" कहा है।
क्यूबा मिसाइल संकट: इतिहास की एक झलक
वर्तमान तनाव ने दुनिया को 1962 के क्यूबा मिसाइल संकट की ओर मोड़ दिया है। उस समय अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ (अब रूस) के बीच परमाणु युद्ध की आशंका चरम पर थी। सोवियत संघ ने क्यूबा में गुप्त रूप से परमाणु मिसाइलें तैनात की थीं, जिससे अमेरिका की सुरक्षा को सीधा खतरा था।
14 अक्टूबर 1962 को अमेरिकी जासूसी विमान ने मिसाइल साइट्स की तस्वीरें लीं, जिसके बाद राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी ने समुद्री नाकेबंदी की घोषणा कर दी। नौ दिनों तक दुनिया ने सांस रोककर इंतज़ार किया कि क्या अगला कदम परमाणु युद्ध की ओर ले जाएगा।
तब कैसे टला था संकट?
बैकचैनल बातचीत और समझदारी से हल निकाला गया। सोवियत नेता निकिता क्रुश्चेव ने अमेरिका को प्रस्ताव दिया कि यदि अमेरिका तुर्की से अपनी मिसाइलें हटा ले और क्यूबा पर हमला न करे, तो रूस अपनी मिसाइलें हटा लेगा। कैनेडी ने यह प्रस्ताव स्वीकार किया और संकट समाप्त हुआ।
सबक और आज की स्थिति
उस संकट के बाद अमेरिका और रूस के बीच हॉटलाइन बनाई गई, ताकि भविष्य में संचार की कमी से युद्ध न हो। साथ ही, Partial Nuclear Test Ban Treaty (1963) भी अस्तित्व में आया।
लेकिन आज, जब ट्रंप और रूस फिर से परमाणु विकल्पों की बात कर रहे हैं, तो इतिहास खुद को दोहराता प्रतीत हो रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि युद्ध नहीं, वार्ता ही समाधान है और दोनों देशों को संयम से काम लेना चाहिए।