

डोनाल्ड ट्रंप के उस दावे पर भारत ने स्पष्ट प्रतिक्रिया दी है, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत ने रूस से तेल खरीदना बंद कर दिया है। सरकारी सूत्रों ने इस बयान को भ्रामक बताते हुए कहा कि भारत अब भी रूस से तेल आयात कर रहा है और उसकी ऊर्जा नीति पूरी तरह राष्ट्रीय हित पर आधारित है।
भारत रूस तेल व्यापार
New Delhi: 2 अगस्त 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस बयान पर भारत की कड़ी प्रतिक्रिया सामने आई है, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत अब रूस से तेल नहीं खरीद रहा। भारत सरकार के आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि यह दावा भ्रामक और तथ्यहीन है। भारत की तेल आयात नीति किसी भी एक देश के दबाव में नहीं, बल्कि आर्थिक, रणनीतिक और ऊर्जा सुरक्षा की प्राथमिकताओं के आधार पर तय होती है।
भारत ने क्यों नकारा ट्रंप का दावा?
डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में कहा था, "मुझे जानकारी मिली है कि भारत रूस से तेल खरीदना बंद करेगा। अगर यह सच है तो यह एक अच्छा कदम है।" हालांकि, भारत के सरकारी सूत्रों ने स्पष्ट किया कि ऐसा कोई निर्णय नहीं लिया गया है। भारत अब भी रूस से तेल खरीद रहा है और यह आयात पूरी तरह से मूल्य, गुणवत्ता, लॉजिस्टिक्स और मौजूदा ज़रूरतों के आधार पर किया जा रहा है।
भारत की ऊर्जा नीति और वैश्विक तेल बाजार
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है और अपनी 85% कच्चे तेल की ज़रूरतें आयात से पूरी करता है। रूस वर्तमान में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है और वह प्रतिदिन 9.5 मिलियन बैरल कच्चा तेल पैदा करता है। भारत ने हमेशा यह स्पष्ट किया है कि वह G7 और यूरोपीय संघ द्वारा निर्धारित $60 प्रति बैरल के प्राइस कैप का पालन करते हुए ही रूसी तेल खरीदता है।
दोहरा मापदंड: यूरोप और LNG आयात
भारत के सूत्रों ने यह भी बताया कि जब पश्चिमी देश रूस से तेल खरीद पर भारत की आलोचना करते हैं, वहीं यूरोपीय संघ खुद रूस से LNG (तरलीकृत प्राकृतिक गैस) का सबसे बड़ा खरीदार बना हुआ है। यूरोप ने 2025 की पहली छमाही में रूस से निर्यात होने वाले LNG का 51% हिस्सा खरीदा, जबकि चीन और जापान क्रमशः 21% और 18% हिस्सेदारी के साथ पीछे रहे।
अगर भारत नहीं खरीदता, तो क्या होता?
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, यदि भारत ने रूसी तेल नहीं खरीदा होता, तो OPEC+ देशों द्वारा की गई 5.86 मिलियन बैरल प्रतिदिन की कटौती के चलते वैश्विक तेल कीमतें $137 प्रति बैरल से भी ऊपर जा सकती थीं। इसका सीधा असर वैश्विक महंगाई और आपूर्ति संकट पर पड़ता।