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30 अक्टूबर को दक्षिण कोरिया के बुसान में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की ऐतिहासिक मुलाकात होगी। यह बैठक APEC समिट से अलग रखी गई है और इसमें Rare Earth Minerals सबसे बड़ा मुद्दा होगा। इन खनिजों पर चीन के नियंत्रण और अमेरिका की निर्भरता ने नई वैश्विक प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया है।
डोनाल्ड ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग
New Delhi: इंतजार खत्म! वैश्विक राजनीति में एक ऐतिहासिक पल आने वाला है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बहुप्रतीक्षित मुलाकात 30 अक्टूबर को दक्षिण कोरिया के बुसान में होने जा रही है। यह बैठक APEC समिट से इतर आयोजित की जा रही है और इस पर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हुई हैं।
यह मुलाकात केवल दो देशों के बीच बातचीत नहीं होगी, बल्कि यह इस बात की परीक्षा भी होगी कि 21वीं सदी की वैश्विक शक्ति संतुलन किस दिशा में झुकेगा। अमेरिका और चीन दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं, और अब यह बैठक तय कर सकती है कि आने वाले वर्षों में दुनिया की “सुपर पावर” कौन बनेगी।
अमेरिका बनाम चीन: नई सदी की ‘सुपरपावर रेस’
बीते कुछ दशकों तक अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी ताकत रहा, लेकिन अब चीन उसकी स्थिति को चुनौती दे रहा है। बीते कुछ वर्षों में दोनों देशों के बीच व्यापार युद्ध, तकनीकी प्रतिस्पर्धा, सैन्य वर्चस्व और वैश्विक प्रभाव को लेकर तनाव लगातार बढ़ा है। जहां चीन का लक्ष्य है अमेरिका को पीछे छोड़कर “दुनिया की नंबर वन ताकत” बनना, वहीं अमेरिका अपनी मौजूदा स्थिति बनाए रखने के लिए हर स्तर पर संघर्ष कर रहा है। इस मुलाकात का उद्देश्य सिर्फ संवाद नहीं, बल्कि यह दिखाना भी होगा कि कौन झुकता है और कौन अपनी स्थिति पर डटा रहता है।
Rare Earth Minerals: नई वैश्विक जंग का ईंधन
विशेषज्ञों का मानना है कि बुसान में ट्रंप और शी जिनपिंग की मुलाकात का सबसे बड़ा एजेंडा होगा “Rare Earth Minerals” यानी दुर्लभ खनिज। ये खनिज मोबाइल, कंप्यूटर, मिसाइल, सोलर पैनल, इलेक्ट्रिक वाहन और हर आधुनिक तकनीक में जरूरी होते हैं। लेकिन इनकी सबसे बड़ी खासियत है- इन पर चीन का एकछत्र अधिकार। आज की स्थिति में दुनिया के 70% Rare Earth Minerals का खनन चीन में होता है।जबकि 90% प्रोसेसिंग और रिफाइनिंग चीन में ही होती है। अमेरिका अपने 70% Rare Earth Minerals चीन से आयात करता है और जापान भी 60% तक चीन पर निर्भर है। अमेरिका में इन खनिजों के भंडार मौजूद हैं, लेकिन उसकी सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि वह इन खनिजों को खुद रिफाइन नहीं कर सकता। इसीलिए उसे चीन से मदद लेनी पड़ती है।
तेल से लेकर दुर्लभ खनिजों तक: इतिहास खुद को दोहरा रहा है
20वीं सदी में दुनिया में तेल को लेकर 180 से ज्यादा युद्ध और सैन्य संघर्ष हुए। अब ऐसा ही परिदृश्य Rare Earth Minerals को लेकर बनता दिख रहा है। तेल जहां ऊर्जा का स्रोत था, वहीं दुर्लभ खनिज अब 21वीं सदी की तकनीकी ऊर्जा बन चुके हैं। चीन ने तीन दशक पहले ही यह समझ लिया था कि भविष्य का नियंत्रण “खनिजों की शक्ति” से तय होगा। इसी सोच के तहत उसने खनन से लेकर प्रोसेसिंग तक इस सेक्टर में भारी निवेश किया।
किम जॉन्ग उन की भूमिका: ट्रंप के लिए नया संदेश
इस मुलाकात से पहले उत्तर कोरिया के नेता किम जॉन्ग उन, जो शी जिनपिंग के करीबी माने जाते हैं, ने राष्ट्रपति ट्रंप को एक “खास संदेश” भेजा है। विश्लेषकों का कहना है कि यह संदेश दरअसल चीन की कूटनीतिक रणनीति का हिस्सा हो सकता है, जिसके जरिए ट्रंप पर दबाव बनाया जा रहा है।
बदलता वैश्विक समीकरण: अब दुनिया Bipolar नहीं, Multipolar है
एक समय था जब दुनिया सिर्फ दो महाशक्तियों अमेरिका और सोवियत संघ में बंटी हुई थी। लेकिन अब वैश्विक परिदृश्य पूरी तरह बदल गया है। आज भारत, चीन, यूरोपीय संघ, रूस, जापान और अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं के कारण दुनिया Multipolar बन चुकी है। इस नए दौर में किसी एक देश का दबदबा टिकाना मुश्किल होता जा रहा है, और यही बात इस मुलाकात को और महत्वपूर्ण बना देती है।
क्या बुसान की मुलाकात से बदलेगा भविष्य?
विश्लेषकों का कहना है कि यह बैठक “समझौतों से ज्यादा रणनीति” पर केंद्रित होगी। यह देखने की बात होगी कि कौन-सा देश पहले समझौता करता है और कौन मजबूती से अपनी बात रखता है। यदि Rare Earth Minerals पर कोई निर्णायक कदम उठता है, तो यह बैठक आने वाले दशकों की वैश्विक अर्थव्यवस्था और राजनीति को दिशा दे सकती है।