

बिहार चुनाव में भ्रष्टाचार एक प्रमुख मुद्दा बन चुका है, जो चुनावी परिणामों को प्रभावित कर सकता है। विभिन्न दलों के बीच सत्ता के लिए होड़ में यह मुद्दा चिंताओं का केंद्र बन गया है। बिहार की जनता भ्रष्टाचार पर कार्रवाई की मांग कर रही है।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025
New Delhi: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में भ्रष्टाचार एक प्रमुख राजनीतिक और सामाजिक मुद्दा बन चुका है। बिहार, जो हमेशा से ही अपने राजनीतिक मामलों में विवादों और भ्रष्टाचार से जुड़ा रहा है, इस बार भी यह मुद्दा चुनावी चर्चा का केंद्र बना हुआ है। भ्रष्टाचार के आरोप विभिन्न दलों पर लगते रहे हैं और अब यह मुद्दा चुनावी प्रचार का हिस्सा बन चुका है।
बिहार में भ्रष्टाचार का इतिहास लंबे समय से जुड़ा हुआ है, जहां सरकारी योजनाओं और नीतियों में घोटाले आम बात हैं। चाहे वह नौकरी में भ्रष्टाचार हो, विकास योजनाओं का फर्जी खर्च हो या फिर सड़क निर्माण, सड़क डिवाइडर जैसे छोटे-मोटे मामलों में घोटाले हो, यह हर स्तर पर देखा गया है। सत्ता में बैठे नेताओं और सिस्टम के बीच साठ-गांठ के कारण आम जनता को इससे भारी नुकसान उठाना पड़ता है।
राजनीतिक दलों के नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप आए दिन लगाए जाते रहे हैं। इससे चुनावी माहौल भी गरमाता है। नीतीश कुमार, लालू यादव और बीजेपी जैसे दलों के नेताओं पर भी अलग-अलग घोटालों के आरोप हैं, जिनका चुनावी प्रचार में असर देखा जाता है। यही नहीं, कई बार इन नेताओं के खिलाफ सीबीआई, ईडी और अन्य एजेंसियों की जांच भी चलती रही है, लेकिन इसके बावजूद चुनावी माहौल में इससे कोई खास असर नहीं पड़ा है।
लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार पर रेलवे जमीन घोटाला जैसे आरोप कई बार उभर चुके हैं। वहीं, नीतीश कुमार की सुशासन बाबू की छवि भी समय-समय पर कृत्रिम भ्रष्टाचार की छाया में आई है। और बीजेपी द्वारा लगाए गए आरोप भी कम नहीं हैं, जैसे नोटबंदी के बाद कथित विकास के नाम पर भ्रष्टाचार।
बिहार में युवा मतदाता की संख्या लगातार बढ़ रही है और उनका वोट बेहद अहम है। इन युवा मतदाताओं के बीच करप्शन और सुशासन पर चर्चा होने के साथ-साथ, वे भ्रष्टाचार को लेकर संवेदनशील होते जा रहे हैं। उनकी उम्मीदों के मुताबिक, एक साफ और पारदर्शी शासन प्रणाली चाहिए, जो उन्हें रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर प्रदान कर सके। यह चुनावी मुद्दा नीतीश कुमार के लिए खतरे की घंटी हो सकता है।
बिहार के चुनावी मौसम में जहां एक ओर विकास और शराबबंदी जैसे मुद्दे गूंजते हैं, वहीं दूसरी ओर भ्रष्टाचार का मुद्दा भी छाया हुआ है। मतदाता भ्रष्टाचार को एक गंभीर मुद्दा मानते हैं क्योंकि इससे उनकी रोज़मर्रा की जिंदगी प्रभावित होती है। चाहे वह महंगाई, नौकरी का अवसर या सामाजिक कल्याण योजनाओं में धन का दुरुपयोग हो, इन सभी मामलों में भ्रष्टाचार का दखल रहता है। जनता का कहना है कि भले ही विकास के नाम पर सरकारें बड़े-बड़े दावे करती हों, लेकिन जब तक भ्रष्टाचार पर काबू नहीं पाया जाता, तब तक असली विकास संभव नहीं है।
चुनाव प्रचार के दौरान, सभी प्रमुख राजनीतिक दल भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के वादे कर रहे हैं। बीजेपी, राजद और जेडीयू जैसे दल चुनावी मंचों पर यह दावा करते हुए दिख रहे हैं कि वे सत्ता में आने पर भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेकेंगे। परंतु, इन वादों के बारे में जनता का कहना है कि इन दलों की घोषणाएं केवल चुनावी रणनीति का हिस्सा होती हैं और ये चुनाव के बाद नजरअंदाज हो जाती हैं।
बिहार की जनता लंबे समय से भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त और प्रभावी कानून की मांग करती रही है। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए लोकपाल जैसी संस्थाओं का गठन और सरकारी योजनाओं में पारदर्शिता लाने की बातें भी चुनावी बहस में आती रही हैं। बिहार में शराबबंदी और नौकरी में भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर भी राजनीतिक दलों के बीच तीखी बहस देखी गई है।
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चुनाव में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा बन सकता है और विपक्ष इस मुद्दे को तूल देने के लिए तैयार है। कांग्रेस, राजद और अन्य विपक्षी दल, बिहार की जनता को यह समझाने में जुटे हैं कि बिहार में भ्रष्टाचार और प्रशासनिक ढांचागत खामियां आखिर क्यों बढ़ी हैं। इस मामले में वे नीतीश कुमार को भी घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं।
जब राज्य में चुनावी माहौल गर्म होता है, तब भ्रष्टाचार का मुद्दा विकास के साथ जुड़ जाता है। पार्टियां दावा करती हैं कि अगर भ्रष्टाचार पर काबू पाया गया तो बिहार के विकास की राह और आसान हो जाएगी। यह मुद्दा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि बिहार देश के सबसे गरीब राज्यों में से एक है और विकास की उम्मीदें भ्रष्टाचार के बढ़ते प्रभाव से धुंधली हो जाती हैं।
भ्रष्टाचार एक ऐसा मुद्दा है जिसे विभिन्न दल अपने तरीके से पेश करते हैं। कुछ इसे सत्ता में रहते हुए नेताओं के फायदे के रूप में प्रस्तुत करते हैं, तो वहीं कुछ इसे बिहार की राजनीति की कुरीति के रूप में देखते हैं। यही कारण है कि जब भ्रष्टाचार पर कोई कड़ा कदम उठाने की बात होती है, तो कुछ दल इसे चुनावी स्टंट के रूप में स्वीकार करते हैं, जबकि कुछ इसे अपने अभियान का हिस्सा बनाते हैं।